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उपन्यास >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


इसके अतिरिक्त जितना सुख और आराम उसको इस जीवन में मिल रहा था, वह भी बचपन के संस्कारों को मिटा देने के लिए पर्याप्त था। इस कारण वह मौन हो गई।

यमुना और सुभद्रा अभी दिल्ली में ही थीं कि शरीफन की घटना घट गई। वह दिल्ली में ही एस्प्लेनेड रोड पर एक मकान में रहने लग गई। चरणदास साधारण रूप से बीमा कम्पनी के कार्य से देश-भर में भ्रमण पर आया-जाया करता था। शरीफन के दिल्ली में आने के बाद ये भ्रमण बहुत बढ़ गए और सायंकाल जाकर प्रातः लौट आने वाले भ्रमण सप्ताह में दो तीन होने लगे।

चरणदास प्रातः कार्यालय से सायंकाल कोठी पर लौटता। चाय वहाँ पीता और अपना सूटकेस उठा स्टेशन के लिए चल देता। मोटर को स्टेशन पर छोड़ वहाँ से ताँगा करके वह एस्प्लेनेड रोड पर जा पहुँचता। वहाँ शरीफन उसकी प्रतीक्षा में उपस्थित मिलती। रात-भर वहाँ रहकर वह प्रातःकाल स्टेशन पहुँच जाता और वहाँ रैस्तराँ में प्रातःकाल का अल्पाहार करता। ठीक दस बजे वह स्टेशन से निकलता। उस समय उसकी गाड़ी उसको वहाँ से लेने के लिए पहुँची होती। स्वयं वह कम्पनी के कार्यालय में चला जाता और अपना सूटकेस कार में घर पर भिजवा देता।

चरणदास के प्रायः घर से बाहर रहने पर कस्तूरीलाल और भी अधिक मामी के घर में रहने लगा और सुभद्रा के प्रायः अपनी बूआ के घर में रहने से कस्तूरीलाल को सुमित्रा की संगति अधिक प्राप्त होने लगी। मोहिनी जितना अधिक अकेली रह रही थी, उतना ही वह पूजा-पाठ, रामायण अथवा भागवत पुराण पढ़ने में समय व्यय करने लगी थी।

इस सब प्रबन्ध को चलते हुए एक वर्ष से अधिक हो गया था। एक दिन मध्याह्न के समय गजराज सुभद्रा के इंग्लैण्ड के कॉलेज में प्रवेश मिलने की सूचना लेकर बीमा कम्पनी के दफ्तर में टेलीफोन करने लगा। वह चरणदास कहना चाहता था कि सुभद्रा को जाने के लिए तैयार कर दें, परन्तु वहाँ फोन करने पर विदित हुआ कि उस दिन चरणदास घर से आये ही नहीं हैं। गजराज ने घर पर फोन किया तो पता चला कि वे दो दिन से दौरे पर गये हुए हैं। यह समाचार देने वाली सुमित्रा थी। गजराज ने पूछा,

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