उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘वे पुलिस इन्स्पेक्टर
से बात कर रहे हैं। आप कहाँ थे?’’
‘‘मैं यहीं पर था। आज
प्रातःकाल से मैं कहीं गया ही नहीं।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘मेरे सिर में पीड़ा हो
रही है।’’
अब
तो गजराज की हँसी निकल गई। फोन पर हँसने की आवाज़ से कतस्तूरीलाल पहचान
गया था कि यह उसके पिताजी की आवाज़ है। इस पर उसने पूछ लिया, ‘‘पिताजी,
क्या बात है?’’
‘‘बात यह है कि तुरन्त
यहाँ चले आओ। कुछ भारी गड़बड़ हो गई है।’’
‘‘अभी आया पिताजी!’’
इतना
कह कस्तूरीलाल ने फोन बन्द कर दिया। मोहिनी समीप खड़ी सुन रही। ‘पिताजी’
कहते हुए कस्तूरीलाल को उसने भी सुना था। इससे उसने कस्तूरीलाल की ओर
प्रश्न-भरी दृष्टि से देखा।
कस्तूरीलाल ने बताया,
‘‘पिताजी ने तुरन्त बुलाया है।’’
‘‘यह बात क्या है? पहले
उन्होंने सुमित्रा के पिता के विषय में पूछा था, पश्चात् मेरे विषय में और
फिर तुम्हारे विषय में।’’
कुछ बात तो है मामीजी! पर
मैं कह नहीं सकता कि क्या हो सकती है।’’
|