उपन्यास >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘और
किसका हो सकता है? उसका विवाह १९२॰ में हुआ था। अपने खाविन्द के साथ वह दस
वर्ष तक रही है, मगर उसके कोई संतान नहीं हुई। उसे मेरे पास आये एक वर्ष
हो गया है और उसके एक बच्चा हो गया है।’’
‘‘ठीक है, वह तुम्हारे
बच्चे की माँ है, इस कारण उसे तुम्हारी कोठी में जाकर रहना चाहिए।’’
‘मैं मोहिनी को दुःखी
करना नहीं चाहता।’’
‘‘मोहिनी को बताना तो
पड़ेगा।’’
‘‘परन्तु जीजाजी, वह यदि
वहीं रहे, जहाँ इस समय रहती है, तो हानि क्या है?’’
‘‘हानि यह है कि यदि
तुमसे अधिक धनी कोई उसे मिल गया तो उसके साथ भी सम्बन्ध बना लेगी।’’
‘‘वह ऐसी प्रतीत नहीं
होती।’’
‘‘अच्छा, इस विषय में
विचार करेंगे। परन्तु चरण, सुमित्रा ने झूठ बोला है, मैं जानना चाहता हूँ
क्यों?’’
‘‘क्या झूठ बोला है
उसने?’’
‘‘उसने
बताया था कि कस्तूरी उस समय, जब मैंने फोन किया था, वहाँ पर नहीं था।
किन्तु वह वहीं पर था। मुझे कुछ दाल में काला प्रतीत होता है।’’
‘‘क्या हो सकता है?’’
‘‘मैं
क्या जानूँ? यह तो सुमित्रा से पूछने पर पता चलेगा। फिर आज तो मोहिनी ने
भी झूठ बोला है। यह क्या हो रहा है तुम्हारे घर में? मैं समझना चाहता
हूँ।’’
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