इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम 1857 का संग्रामवि. स. वालिंबे
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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन
अवध की स्थिति
दिल्ली के बाद अवध की
राजधानी लखनऊ को विशेष महत्त्व दिया जाता था। वहां के नवाबों की शानोशौकत
के किस्से मशहूर हो गये थे। कंपनी सरकार ने अवध की रियासत को अपने कब्जे
में कर लिया था। नवाब का हाल देखकर प्रजा नाराज थी। प्रजा के मन में
सरकार
के प्रति असंतोष बढ़ रहा था। लेकिन वे कुछ कर नहीं पा रहे थे। मेरठ,
दिल्ली, कानपुर और फतेहपुर के विद्रोह की खबरें सुनकर लखनऊ के लोगों में
उत्तेजना बढ़ गयी थी।कंपनी सरकार की फौज में नौजवानों की तादाद काफी अधिक
थी। इन नौजवानों को गांव में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। अवध की
गद्दी बरखास्त की गयी थी। इसके बाद देसी सिपाहियों की शान कम हुई थी। अवध
की प्रजा होने पर उन्हें गर्व था। अंग्रेजों के आने के बाद उनकी महिमा घट
गयी थी। उनके मन में विद्रोह की भावना भड़क उठी थी। विलियम स्लीमैन ने
देसी सिपाहियों की भावना जान ली थी। उसने गवर्नर जनरल डलहौजी को लिखा
था—‘‘अगर अवध की जनता को कोई कष्ट पहुंचा, तो बंगाल आर्मी विद्रोह करेगी।
कृपया इस बात को ध्यान में रखिये।’’डलहौजी घमंडी किस्म का आदमी था। वह
किसी की राय लेना पसंद नहीं करता था। वह पूरे हिंदुस्तान को अपने कब्जे
में करना चाहता था। हर एक रियासत को वह खत्म करते जा रहा था। उसे किसी की
फिक्र नहीं थी। मगर स्लीमैन के इशारे को नजरअंदाज करके उसने बड़ी भूल की
थी। अगर अंग्रेज समझदारी से काम लेते, तो अवध की जनता विद्रोह नहीं करती।
अवध में पहले सर जेम्स आउट्रम रेजिडेंट था। बीमार पड़ने पर वह इंग्लैंड गया था। उसके स्थान पर कोवली जैक्सन को अस्थायी रूप से भेजा गया था। जैक्सन मगरूर और तेज मिजाज किस्म का आदमी था। लखनऊ के प्रसिद्ध सरदारों, जागीरदारों का अपमान करना उसे अच्छा लगता था। लखनऊ आते ही उसने नवाब की हवेली पर कब्जा कर लिया और उसके पूरे खानदान को हवेली से हटा दिया। नवाब पर रैयत नाराज थी। लेकिन नवाब ही उनके अन्नदाता थे। नवाब की हालत देखकर रैयत में अंसतोष फैल गया था।
वित्त आयुक्त मार्टिन गबिंस भी घमंडी और गर्म मिजाज किस्म का आदमी था। न्यायिक आयुक्त सनकी और चिड़चिड़ा था। इन तीनों अधिकारियों ने अवध के लोगों का जीना हराम कर दिया था। यह बात हेनरी लॉरेंस ने अवध आते ही भांप ली थी।
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