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इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316
आईएसबीएन :9781613010327

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

इस घटना के बाद दूसरे दिन 10 मई को रविवार था। छुट्टी का दिन। घर में बैठे अंग्रेज अधिकारी गर्मी से तंग आ चुके थे। शाम को गर्मी कम हुई। अंग्रेज नागरिक चर्च जाने की तैयारी कर रहे थे। तब तक देसी सिपाहियों ने जेल तोड़ दिया था। सजा पाये सभी पचासी कैदी सिपाहियों को जेल से रिहा कर दिया गया। मेरठ में और एक जेल थी जिसमें शहर के खतनाक गुंडे बंद थे। इस जेल पर गांव वालों ने हमला बोल दिया। सभी गुंडो को रिहा कर दिया गया। उन्होंने रिहा होते ही गांव की दुकानों को लूटना शुरू किया।

देसी सिपाहियों ने अपना मोर्चा अंग्रेज कालोनी की ओर किया। यह खबर सुनकर ब्रिगेडियर विल्सन डर गया। उसने सोचा कि अंग्रेज सिपाही इस बगावत का सामना नहीं कर सकेंगे। दिल्ली की मदद मांगने वह तारघर दौड़ा। तार घर का संपर्क तोड़ दिया गया था। आगरा से संपर्क बनाने की कोशिश भी नाकामयाब रही। देसी सिपाहियों की पल्टन अंग्रेजों पर हमला करने लगी। शाम होने तक करीब पचास अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इस कामयाबी से खुश होकर देसी सिपाहियों ने अपना मोर्चा दक्षिण की ओर किया। बादशाह की राजधानी अब सिर्फ चालीस मील दूर रह गयी थी। सभी सिपाहियों ने एक स्वर से कहा —‘‘चलो दिल्ली  !’’

जब वे दिल्ली पहुँचे, वह दिन था—11 मई 1857। बादशाह बहादुरशाह लाल किले के परकोटे पर आ गया। किले के बाहर शोरगुल बढ़ गया था। उसने किले के नीचे नजर की। वहां अनेक सिपाही लश्करी पोशाक में थे कुछ सिपाहियों ने घरेलू पोशाक पहन रखी थी। बादशाह का दर्शन होते ही हवा में स्वर गूंजा—‘‘शहंशाह-ए-हिंद जिंदाबाद !’’ बादशाह ने बायां हाथ माथे तक लाकर अभिवादन करके नारों को स्वीकार किया।

घुड़सवारों का सरदार आगे बढ़ा। उसने बादशाह का अभिवादन किया और कहा, ‘‘जहांपनाह अपने धर्म की रक्षा के लिए हम लड़ाई लड़ना चाहते हैं। इस पवित्र कार्य में हमें आपका आशीर्वाद चाहिए। आप हमारी सहायता कीजिये। लोग हमारे पीछे आयेंगे। जब तक हम फिरंगियों को देश के बाहर नहीं कर देंगे, तब तक हम सुख चैन की नींद नहीं लेंगे। आप हम पर भरोसा रखिये।’’ देसी सिपाहियों का जोश देखकर बादशाह खुश हुआ। लेकिन उसे अपने थके शरीर पर भरोसा नहीं था। वह पशोपेश में पड़ गया। अब सिपाहियों को क्या जवाब दें?

कंपनी सरकार ने बादशाह की रक्षा के लिए सैनिकों की एक टुकड़ी तैनात की थी। बादशाह ने टुकड़ी के कैप्टन डगलस को अंदर बुला लिया और आदेश दिया, ‘‘जाइये, किले के बाहर पधारे सिपाहियों की अगवानी कीजिये तथा उन्हें क्या चाहिए, पूछताछ करके पता लगाइये।’’

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