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इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316
आईएसबीएन :9781613010327

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

मेटकाफ अपनी कचहरी में आ गया। वहां उसे कलकत्ता गेट की वारदात में कैप्टन डगलस और साइमन फ्रेजर की हत्या की खबर मिली। लाल किले के सामने कलेक्टर जॉन रॉस को हजारों लोगों के सामने पत्थरों से मारा गया। ‘दिल्ली गजट’ समाचार पत्र कार्यालय को आग लगा दी गयी। लंदन बैंक के स्थानीय मैनेजर जख्मी हुए उसकी पत्नी ने चिढ़कर बरछी लेकर भीड़ पर हमला किया। उसे भीड़ ने कुचलकर मार डाला।

अनुभवी मेटकाफ ने अब धीरज खो दिया था। बागी सिपाहियों को देखकर आम जनता में भी विद्रोह फैल गया। अंग्रेज कालोनी पर हमले बढ़ने लगे। अंग्रेजों के घरों को आग लगा दी गयी।

विद्रोही भीड़ ने पचास अंग्रेजों को पकड़कर एक मकान में बंद कर दिया। दम घुटने के कारण बंद मकान में कैद सभी अंग्रेज चिल्लाने लगे। बच्चे रोने लगे। शाम होने पर कार्यालय से अंग्रेज बाबू, अधिकारीगण जब घर लौटे तो औरतों और बच्चों को नदारद देखकर उनके होश उड़ गये। अंग्रेज अधिकारियों ने यमुना पुल पर बंदोबस्त बढ़ा दिया। किंतु देसी सिपाहियों ने वहां के थाने को ध्वस्त कर दिया। बागी सिपाहियों का झुंड उमड़ रहा था।

दिल्ली में अंग्रेज सिपाहियों के तीन पलटनें तैनात की गयी थीं। इनके नंबर थे—अड़तीस, चौवन और चौहत्तर। चौवनवें पलटन का लेफ्टिनेंट एड़वर्ड व्हीबर्ट नाश्ता कर रहा था। तभी हवलदार ने संदेश दिया, ‘‘ सर, मेरठ के बागी सिपाहियों ने शहर पर कब्जा करने के लिए दंगा शुरू कर दिया  है। उपद्रवग्रस्त इलाकों में शांति स्थापित करने का आदेश हमारी पलटन को मिला है।’’

यह सुनकर व्हीबर्ट तुरंत उठ खड़ा हुआ। उसने वर्दी ली और घोड़े पर सवार होकर कवायद मैदान की ओर कूच कर गया। उसके पीछे पलटन के सभी सिपाही वहां पहुंच गये। कर्नल रिप्ली सिपाहियों को आदेश दे रहा था। व्हीबर्ट के गुट का नेतृत्व मेजर पैटरसन कर रहा था। रिप्ली ने पैटरसन से कहा, ‘‘आप दो तोपें लेकर शहर जाइये। यह काम तुरंत करें। इन तोपों के गोला-बारूद के सामने बागी सिपाहियों का विद्रोह खत्म हो जायेगा। बाकी लोगों के साथ मैं कश्मीरी गेट जा रहा हूँ।’’

यमुना नदी का पुल ढह गया था। उसे पुनः लगाना जरूरी था। यह काम टायटलर और गार्डनर को सौंपा गया। दोनों अपनी फौज लेकर वहां दाखिल हुए। फौज के देसी सिपाहियों को गोला-बारूद देते समय आवश्यक खबरदारी के आदेश सुपरवाइजर को दिये गये थे।

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