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इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316
आईएसबीएन :9781613010327

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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

लॉरेंस इस धमकी से गुस्सा हो गया। लखनऊ के अंग्रेज सिपाहियों को लेकर लॉरेंस देसी सिपाहियों की कालोनी पर हमला करने निकला। उसने दहशत फैलाने के लिए दो तोपें भी साथ ले रखी थीं। तोप की बारूद में जलती मशाल लगते देखकर कुछ देसी सिपाही भाग निकले। कुछ सिपाहियों ने अपने हथियार अफसरों को समर्पित कर दिये। फरार हुए कुछ सिपाही दो दिनों के बाद लौटे।

बिगड़ी हुई स्थिति को देखकर गबिंस ने सुझाव दिया, ‘‘हम रेजिडेंसी की सुरक्षा के लिए सिपाहियों का पहरा लगा देंगे।’’

इस पर लॉरेंस ने कहा, ‘‘मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। इससे देसी सिपाहियों को गलत संदेश मिल जायेगा। वे सोचेंगे कि हम डर गये हैं।’’

बाकी अधिकारियों ने गबिंस की बात उचित ठहरायी। लॉरेंस को भी यह बात माननी पड़ी। बयालीसवें पलटन के अंग्रेज सिपाही रेजिडेंसी में आकर रहने लगे। इससे अंग्रेज अधिकारी बेफिक्र हो गये।

लखनऊ की गली-मुहल्ले में पोस्टर चिपकाये गये थे, जिन पर लिखा था—‘‘फिरंगियों को यहां से भगा दो !’’

देसी सिपहियों की बस्ती में जाकर बागी सिपाही आह्वान कर रहे थे—‘‘हिंदुस्तान पर कब्जा करनेवाले अंग्रेजों को कुचल देना चाहिए।’’

इस तरह की खबरें रेजिडेंसी में पहुंच रही थी। अंग्रेज अधिकारियों में विचार-विमर्श होने लगा।

गबिंस ने कहा, ‘‘फिलहाल हमको देसी सिपाहियों से हथियार वापस लेने चाहिए। वे हमारा कोई नुकसान नहीं कर सकेंगे।’’

लॉरेंस ने गबिंस पर नाराज होकर कहा, ‘‘मुझे सिर्फ लखनऊ नहीं बल्कि पूरे अवध की चिंता है। मैं सिर्फ लखनऊ नहीं बल्कि पूरे अवध प्रांत का चीफ कमिश्नर हूं।’’

गबिंस के विचारों पर लॉरेंस को आश्चर्य हो रहा था। किसी सिपाही के हथियार वापस लेने का मतलब उसका अपमान करना होता है। इसलिए लॉरेंस ने गबिंस को समझाया, ‘‘अगर हम देसी सिपाहियों से हथियार वापस लेते हैं तो यह खबर अवध में फैल जायेगी। पूरा अवध इलाका हमसे नाराज हो जायेगा।’’

गबिंस इस बात पर सहमत नहीं हुआ। आखिर बिगड़कर लॉरेंस ने कहा, ‘‘लश्करी दांवपेंच की बातों में हमें प्रशासनिक अधिकारी की दखलअंदाजी बिलकुल पसंद नहीं है।’’ लॉरेंस को स्वयं पर पूरा भरोसा था।

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