लोगों की राय

इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316
आईएसबीएन :9781613010327

Like this Hindi book 11 पाठकों को प्रिय

55 पाठक हैं

संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

यह जवाब पाकर विल्सन की हिम्मत बढ़ गयी। नये साथियों को संबोधित करते हुए विल्सन ने कहा, ‘‘दिल्ली पर हमला करने के लिए हमें तीस-चालीस हजार सिपाहियों की जरूरत है। हम यहां से बागी सिपाहियों पर हमला कर रहे हैं। उनके पास बहुत बड़ी फौज है। हम उन पर हमला करने आगे बढ़ते हैं तो वे शहर का दरवाजा बंद कर देते हैं। हम पीछे हटने लगते हैं तो वे हमारा पीछा करते हैं। इसलिए शहर में घुस पाना मुश्किल हो गया है। हम यहां तोपखाने की बदौलत बेफिक्र हैं, वरना बागी सिपाही न जाने कब के पहुंच गये होते।’’

एक दिन विल्सन बिगड़ गया। उसकी पत्नी ने पूछा, ‘‘कितने दिन दिल्ली की मुहिम पिछड़ती रहेगी?’’ यह बात विल्सन को बहुत बुरी लगी। गुस्से में आकर उसने जवाब दिया— ‘‘तुम भी उन लोगों के समान बातें करती हो जो लोग बिना सोचे-समझे बतिया रहे हैं ! बागी सिपाहियों की चालीस हजार की फौज का सामना करना मुश्किल है। हमारे दो हजार सिपाही कब तक मुकाबला करते रहेंगे? शुक्र है कि हमने इस पहाड़ी को बचाकर रखा है। उल्टे आप हमें चिढ़ा रही हैं? मैं रात को सिर्फ तीन-चार घंटे सोता हूं। बाकी समय सोचता रहता हूं। अब यह मसहूस कर रहा हूं कि मेरी विचार करने की शक्ति ही नष्ट हो जायेगी।

अगस्त महीना शुरू हो चुका था। दिल्ली के बाहर रहते तीन महीने गुजर चुके थे। हालात में कुछ तब्दीलियां नहीं हुई थीं। विल्सन के मन में कुछ अलग विचार कौंध रहे थे। दिल्ली में वक्त बिताकर कुछ भी हासिल नहीं होगा। किसी दूसरी जगह जाकर बहादुरी दिखायेंगे। इस विचार में मेजर बेअर्ड स्मिथ को गंभीर धोखा महसूस हुआ। उसने कहा, ‘‘अगर हम दिल्ली छोड़ देंगे, तो हमारा पंजाब से संपर्क टूट जायेगा। यह हमारी सबसे बड़ी भूल होगी।’’ स्मिथ के इस तर्क में दम था। विल्सन चकित होकर आदरपूर्वक स्मिथ की बातें सुनने लगा— ‘‘दिल्ली कोई मामूली शहर नहीं है, बल्कि देश की राजधानी है। अगर हम दिल्ली छोड़ देंगे तो गलत संदेश फैल जायेगा। लोग समझ जायेंगे कि बागी सिपाहियों ने अंग्रेजों को राजधानी से भगा दिया है। इस बात पर पूरे देश में बगावत हो जायेगी। हमें और ज्यादा तोपें और गोला-बारूद चाहिए। हमारे दो हजार सिपाहियों के बलबूते लड़ाई जीतना नामुनकिन है। मैं मानता हूं कि हमें दस हजार सिपाहियों की जरूरत है, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली छोड़ना हमें बहुत महंगा पड़ेगा। हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिए।’’

विल्सन ने स्मिथ की बात मान ली। उसने सोचा, ‘हम होनी को टाल नहीं सकते। अगर दिल्ली छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे।’ कुछ दिन गुजरने के बाद 14 अगस्त को ब्रिगेडियर जॉन निकल्सन पंजाब की पलटन लेकर दिल्ली पहुंचा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book