इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम 1857 का संग्रामवि. स. वालिंबे
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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन
लोग कत्ल किये नरमुंड लेकर ढोल-बाजे के ताल पर लखनऊ में घूम रहे थे। रेजिडेंसी के अंग्रेज सिपाहियों में दहशत फैल गयी। शहर में जाकर जख्मी सिपाहियों को उठाकर रेजिंडेंसी में लाने की हिम्मत अब किसी में नहीं थी। रेजिडेंसी के लोग भूख के मारे बदहाल हुए जा रहे थे। आउट्रम रसद की कमी से लाचार था। आउट्रम ने लखनऊ छोड़ने की योजना बना ली। अक्टूबर गुजर गया था। उसके बाबजूद आउट्रम अपने लोगों के साथ रेजिडेंसी में जान बचाकर बाहर से आनेवाली रसद की प्रतीक्षा कर रहा था।
लॉर्ड कैनिंग फिर एक बार संकट में फंस गया। लखनऊ में बरबादी का सिलसिला जारी था। सर कॉलीन कैंपबेल ने मुख्य सेनापति का भार स्वीकार किया था। लखनऊ की बिगड़ी हुई हालत देखकर कैनिंग ने कैंपबेल को मुहिम की बागडोर सौंप दी।
कैंपबेल नवंबर के पहले हफ्ते में कानपुर पहुंचा। वह अब लखनऊ जाने की तैयारी कर रहा था। तभी उसे एक खबर मिली। इस खबर के अनुसार ग्वालियर के महाराज जयाजीराव सिंधिया अपनी फौज को लेकर नाना साहब की सहायता के लिए निकल पड़े हैं। यह फौज नाना साहब को कालपी में आकर मिलनेवाली थी। कैंपबेल चकरा गया। अब लखनऊ जाये या कालपी? उसने निर्णय लिया कि नाना साहब से बाद में निपट लेंगे। पहले लखनऊ पहुंचना जरूरी था। उसने पांच सौ अंगेज सिपाहियों को कानपुर की रक्षा के लिए भेज दिया। शेष सिपाहियों को लेकर कैंपबेल लखनऊ की ओर कूच कर गया।
मुख्य सेनापति को देखकर रेजिडेंसी के लोगों ने चैन की सांस ली। वहां के एक हजार जख्मी और बीमार सिपाहियों तथा औरतों, बच्चों को हटाकर कानपुर पहुंचना आवश्यक था। बीच राह में बागी सिपाहियों का खतरा था। बागी सिपाही कुछ स्थानों पर शरण पा रहे थे। लेकिन अब तक उन सिपाहियों पर नियंत्रण संभव नहीं हुआ था।
सभी अंग्रेज औरतें अपने बच्चों को लेकर बैलीगार्ड गेट पार करके लखनऊ से रवाना हुईं। दो दिनों के बाद अंग्रेज सिपाहियों ने भी कानपुर का रास्ता अपना लिया था। लखनऊ की रेजिडेंसी अब सुनसान हो गयी। बीच रास्ते में बीमार हैवलॉक की मौत हो गयी। कैंपबेल ने आउट्रम को आलमबाग रुकने का आदेश दिया। उसने कहा, ‘‘आप यहां रुकिये। सबको लेकर कानपुर पहुंचने में काफी वक्त लगेगा। मैं तुरंत कानपुर होकर आता हूं।
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