इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम 1857 का संग्रामवि. स. वालिंबे
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संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन
मौलवी की हत्या के बाद रोहिलखंड में शांति छा गयी। कंपनी सरकार के नियंत्रण से अवध अब तक काफी दूर था। अवध के बागी चोरी-छिपे अंग्रेजों पर छोटे-मोटे हमले करते रहे। इन हमलों से अंग्रेज सिपाही तंग आ गये थे। जब कोई बागी सिपाही हाथ लग जाता, अंग्रेज सिपाही उसे तलवार से काट देते। अंग्रेज सिपाहियों ने कॉलीन कैंपबेल और होप ग्रांट के नेतृत्व में अवध की छानबीन शुरू की। बागी सिपाहियों को मुंह छिपाना मुश्किल हो गया। गांव-गांव जाकर अंग्रेजों ने बागी सिपाहियों की खोज शुरू की। बागियों को मजबूर होकर घर में छिपकर दिन गुजारने पड़े। खौफ के कारण कुछ बागी नेपाल भाग गये।
सभी जगहों पर कंपनी सरकार के खिलाफ बगावत हो रही थी। अवध में हुई सबसे बड़ी बगावत के कारण कंपनी सरकार ने अपनी पूरी ताकत यहां लगा दी। अन्य जगहों पर भी बगावत होने लगी। अंग्रेज सरकार की परेशानी बढ़ रही थी।
बिहार के कुंवर सिंह ने आजमगढ़ का लश्करी थाना घेर लिया था। थाने के बचाव के लिए मार्क केर को आजमगढ़ भेजा गया। मार्क केर की बड़ी फौज को देखकर कुंवर सिंह ने घेरा उठा लिया। किंतु लड़ाकू बहादुर कुंवर सिंह ने हार नहीं मानी। उन्होंने जान लिया था कि केर की पलटनों का मुकाबला खुले मैदान में करना बहुत मुश्किल है। उन्होंने बिहार के जगदीशपुर के जंगलों में शरण ली। अमर सिंह (कुंवर सिंह के भाई) का मुकाबला करने के लिए मार्क केर ने एडवर्ड लुगर्ड को नियुक्त किया।
जगदीशपुर का जंगली इलाका अंग्रेजों के लिए सिर दर्द साबित हुआ। अमर सिंह के किसानों के पास बंदूकें नहीं थीं किंतु आजादी की इस लड़ाई में किसानों ने हाथों में तलवार उठा लीं। लश्करी थाने पर हमला करते समय उन्हें सावधानी बरतनी पड़ती थी। उन्हें मालूम था कि दुश्मन ताकतवर और हथियारबंद है। इसलिए उन्होंने हमलों के ठिकाने और दिन निश्चित कर लिये थे। बागियों के छापामार दस्ते के हमलों से लुगर्ड काफी परेशान हुआ। आखिर लुगर्ड की जगह पर ब्रिगेडियर डगलस को भेजा गया। जगदीशपुर के जंगलों में छिपकर कुवंर सिंह और अमर सिंह ने अंग्रेजों को बहुत परेशान किया। कंपनी सरकार को अपनी फौज की बढ़ोत्तरी करनी पड़ी। डगलस अपने सात हजार सिपाहियों को लेकर जगदीशपुर पहुंचा।
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