लोगों की राय

इतिहास और राजनीति >> 1857 का संग्राम

1857 का संग्राम

वि. स. वालिंबे

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8316
आईएसबीएन :9781613010327

Like this Hindi book 11 पाठकों को प्रिय

55 पाठक हैं

संक्षिप्त और सरल भाषा में 1857 के संग्राम का वर्णन

दावानल भड़का


बैरकपुर के समान अंबाला भी एक बड़ा लश्करी थाना था। दोनों शहरों के बीच एक हजार मील का फासला है। अंग्रेज सेनानी बेखबर रहे। उन्होंने सोचा, बैरकपुर का किस्सा अंबाला तक पहुँचने में काफी समय लगेगा। लेकिन हकीकत कुछ और थी।

अंबाला के सैंतीसवें पलटन के हर एक देसी सिपाही को मंगल पांडे का बलिदान मालूम हो गया था। सभी के मन में उमंग की लहर दौड़ रही थी। ‘हमें भी मंगल पांडे जैसी बहादुरी दिखानी चाहिए !’

कंपनी का सेनानी जॉर्ज अन्सन गर्मी की लू से बचने के लिए शिमला की ठंडी हवा में आराम फरमा रहा था। एक दिन उसे अंबाला से कैप्टन मार्टिनी से पत्र  प्राप्त हुआ। पत्र में लिखा था—

‘‘यहां का माहौल नाजुक बनता जा रहा है। देसी सिपाहियों को हम किस तरह समझायें? हमारा उद्देश्य उनका धर्म भ्रष्ट करना नहीं है। ये लोग बेसब्र होते जा रहे हैं। किसी मामूली घटना से भी स्थिति बेकाबू हो सकती है।’’

पत्र पढ़कर सेनानी ने कहा, ‘‘देसी सिपाहियों के बीच कानाफूसी क्या हो गयी कि हमारे लोग बेवजह डर गये हैं !’’

अंबाला छावनी के अंग्रेज अधिकारियों के घरों पर सिपाहियों ने हमला बोल दिया। उन्होंने कुछ बंगलों में आग लगा दी। सरकारी कचहरियों को भी आग लगा दी गयी। अंबाला के सिपाहियों की बगावत खत्म करने के लिए शिमला से फौज बुलायी गयी। पूर्वी बैरकपुर और पश्चिमी अंबाला के बीच मेरठ शहर बसा हुआ है। मेरठ की छावानी से दिल्ली पर नजर रखी जाती थी। इस महत्त्वपूर्ण छावनी में ग्यारहवीं तथा बींसवीं पलटन तैनात थी।

मेरठ छावनी में अब भी अन्य जगहों की तरह एनफिल्ड बंदूकों की आपूर्ति होने लगी थी। पहले अंग्रेज सिपाहियों को यह बंदूक चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद देसी सिपाहियों को प्रशिक्षण देने की योजना तय हुई थी। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम 24  अप्रैल से शुरू होने वाला था। इसके बिलकुल पहली रात को हिंदू सिपाहियों ने गंगा जल की तथा मुसलमान सिपाहियों ने कुरान की कसम खायी—‘‘हम उसी बंदूक को हाथ लगायेंगे, जिस पर कोई चरबी नहीं लगायी गयी होगी।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book