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नाटक-एकाँकी >> चन्द्रहार (नाटक) चन्द्रहार (नाटक)प्रेमचन्द
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‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्य–रूपांतर’ है
देवीदीन– इधर तो बहुत भीड़ है भैया। सारा कलकत्ता आ गया है। पीछे से चलो। आओ, आओ।
(वह शीघ्रता से जाता है और वे सब उसके पीछे– पीछे जाते हैं। बाहर का शोर तीव्र से तीव्रतर हो उठता है। यहीं पर्दा गिरता है।)
।। समाप्त।।
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