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उपन्यास >> चंद्रकान्ता

चंद्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

ग्यारहवां बयान

क्रूरसिंह को बस एक यही फिक्र लगी हुई थी कि जिस तरह बने वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह को मार डालना ही नहीं चाहिए, बल्कि नौगढ़ का राज्य ही गारत कर देना चाहिए। नाज़िम को साथ लिए चुनार पहुँचा और शिवदत्त के दरबार में हाजिर होकर नजर दिया। महाराज इसे बखूबी जानते थे इसलिए नजर लेकर हाल पूछा। क्रूरसिंह ने कहा, ‘‘महाराज, जो कुछ हाल है मैं एकान्त में कहूंगा।’’

दरबार बर्खास्त हुआ, शाम को तखलिए (एकान्त) में महाराज ने क्रूर को बुलाया और हाल पूछा। उसने जितनी शिकायत महाराज जयसिंह की करते बनी, की, और यह भी कहा कि-‘‘लश्कर का इन्तजाम आजकल बहुत खराब है, मुसलमान सब हमारे मेल में हैं, अगर आप चाहें तो इस समय विजयगढ़ को फतह कर लेना कोई मुश्किल बात नहीं है। चन्द्रकान्ता महाराज जयसिंह की लड़की भी जो खूबसूरती में अपना कोई सानी नहीं रखती, आप ही के हाथ लगेगी।’’

ऐसी-ऐसी बहुत-सी बातें कह उसने महाराज शिवदत्त को पूरे तौर से भड़काया। आखिर महाराज ने कहा, ‘‘हमको लड़ने की अभी कोई जरूरत नहीं, पहले हम अपने ऐयारों से काम लेंगे फिर जैसा होगा देखा जाएगा। मेरे यहाँ छः ऐयार हैं जिनमें से चारों ऐयारों के साथ पण्डित जगन्नाथ ज्योतिषी को तुम्हारे साथ कर देते हैं। इन सभी को लेकर तुम जाओ, देखो तो ये लोग क्या करते हैं। पीछे जब मौका होगा हम भी लश्कर लेकर पहुंच जायेंगे।’’

उन ऐयारों के नाम थे–पण्डित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, भगवानदत्त और घसीटासिंह। महाराज ने पण्डित बद्रीनाथ, रामनारायण, और भगवान दत्त इन चारों को जो मुनासिब था कहा और इन लोगों को क्रूरसिंह के हवाले किया।

अभी ये लोग बैठे ही थे कि एक चोबदार ने आकर अर्ज किया, ‘‘महाराज ड्योढ़ी पर कई आदमी फरियादी खड़े हैं, कहते हैं हम लोग क्रूरसिंह के रिश्तेदार हैं, इनके चुनार जाने का हाल सुनकर महाराज जयसिंह ने घर-बार लूट लिया और हम लोगों को निकाल दिया। उन लोगों के लिए क्या हुक्म होता है?’’

यह सुनकर क्रूरसिंह के होश उड़ गये। महाराज शिवदत्त ने सभी को अन्दर बुलाया और हाल पूछा। जो कुछ हुआ था उन्होंने बयान किया! इसके बाद क्रूरसिंह और नाज़िम की तरफ देखकर कहा, ‘‘अहमद भी तो आपके पास आया है!’’ नाज़िम ने पूछा, अहमद! वह कहाँ है? यहाँ तो नहीं आया! ’’ सभी ने कहा, ‘‘वाह, वहाँ तो घर पर गया था और यह कहकर चला गया कि मैं भी चुनार जाता हूँ!’’

नाज़िम ने कहा, ‘‘बस, मैं समझ गया, वह ज़रूर तेजसिंह होगा इसमें कोई शक नहीं! उसी ने महाराज को भी खबर पहुंचाई होगी, यह सब फसाद उसी का है!’’ यह सुन क्रूरसिंह रोने लगा। महाराज शिवदत्त ने कहा, ‘‘जो होना था सो हो गया, सोच मत करो। देखो इसका बदला जयसिंह से मैं लेता हूँ। तुम इसी शहर में रहो, हमाम के सामने वाला मकान तुम्हें दिया जाता है, उसी में अपने कुटुम्ब को रक्खो, रुपये की मदद सरकार से हो जायेगी। क्रूरसिंह ने महाराज के हुक्म के मुताबिक उसी मकान में डेरा ज़माया।’’

कई दिन बाद दरबार में हाज़िर होकर क्रूरसिंह ने महाराज से विजयगढ़ जाने के लिए अर्ज़ किया। सब इन्तज़ाम हो ही चुका था, महाराज ने मय चारों ऐयार और पण्डित जगन्नाथ ज्योतिषी के साथ क्रूरसिंह और नाज़िम को विदा किया। ऐयार लोग भी अपने-अपने सामान से लैस हो गये। कई तरह के कपड़े लिए। बटुआ ऐयारी का अपने-अपने कन्धे से लटका लिया, खंजर बगल में लिया। ज्योतिषीजी ने भी पोथी-पत्रा आदि और कुछ ऐयारी का सामान ले लिया क्योंकि वह थोड़ी-बहुत ऐयारी भी जानते थे। अब यह शैतान का झुण्ड विजयगढ़ की तरफ रवाना हुआ। इन लोगों का इरादा नौगढ़ जाने का भी था। देखिए कहाँ जाते हैं और क्या करते हैं?

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