उपन्यास >> चंद्रकान्ता चंद्रकान्तादेवकीनन्दन खत्री
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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण
तेइसवां बयान
महाराज जयसिंह, कुंवर वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषीजी खण्डहर की सैर करने के लिए उसके अन्दर गये। जाते ही यकीन हो गया कि बेशक यह तिलिस्म है। हर एक तरफ वे लोग घुसे और एक-एक चीज़ को अच्छी तरह देखते-भालते बीच वाले बगुले के पास पहुंचे। चपला की जुबानी यह तो सुन ही चुके थे कि वही बगुला कुमारी को निगल गया था, इसलिए तेजसिंह ने किसी को उसके पास न जाने दिया, खुद गये। चपला ने जिस तरह इस बगुले को अजमाया था उसी तरह तेजसिंह ने भी अजमाया।
महाराज इस बगुले का तमाशा देखकर बहुत हैरान हुए। इसका मुंह खोलना, पर फैलाना, और अपनी पीछे वाली चीज़ को उठाकर निगल जाना सभी ने देखा और अचम्भे में आकर बनाने वाले की तारीफ करने लगे। इसके बाद उस तहखाने के पास आये जिसमें चपला उतरी थी। किवाड़ के पल्ले को कमन्द से बंधा हुआ देख तेजसिहं को मालूम हो गया कि यह चपला की कार्रवाई है और ज़रूर यह कमन्द भी चपला की है, क्योंकि उसके एक सिरे पर उसका नाम खुदा हुआ है, मगर इस किवाड़ का बांधना बेफायदा हुआ क्योंकि इसमें घुसकर चपला न निकल सकी।
कुएं को भी बखूबी देखते हुए उस चबूतरे के पास आये जिस पर पत्थर का आदमी हाथ में किताब लिये सोया हुआ था। चपला की तरह तेजसिंह ने भी यहां धोखा खाया। चबूतरे के ऊपर चढ़ने वाली सीढ़ी पर पैर रखते ही उसके ऊपर का पत्थर आवाज़ देकर पल्ले की तरह खुला और तेजसिंह धम्म से ज़मीन पर गिर पड़े। इनके गिरने पर कुमार को हंसी आ गई, मगर देवीसिंह बड़े गुस्से में आये। कहने लगे, ‘‘सब शैतानी इसी आदमी की है जो इस पर सोया है, अभी मैं इसकी खबर लेता हूं।’’ यह कह उछल के एक बड़े ज़ोर से धौल उसके सिर पर जमाई। धौल का लगना था कि वह पत्थर का आदमी उठ बैठा, मुंह खोल दिया, हाथी की तरह उसके मुंह से हवा निकलने लगी, थोड़ी ही देर में बड़ी भारी आवाज़ हुई और सारा मकान हिलने लगा। मालूम होता था कि भूकम्प आया है, सभी की तबीयत घबरा गई। ज्योतिषीजी ने कहा, ‘‘जल्दी इस मकान के बाहर भागो, ठहरने का मौका नहीं है!’’
इस दालान-से दूसरे दालान में होते हुए सब-के-सब भागे। भागने के वक़्त ज़मीन हिलने के सबब से किसी का पैर सीधा नहीं पड़ता था। खण्डहर के बाहर हो दूर से खड़े होकर उसकी तरफ देखने लगे। पूरे मकान को हिलता देखा। दो घण्टे तक यही कैफियत रही और तब तक खण्डहर की इमारत का हिलना बन्द न हुआ।
तेजसिंह ने ज्योतिषीजी से कहा, ‘‘आप रमल और नजूम से पता लगाइए कि यह तिलिस्म किस तरह और किसके हाथ से टूटेगा?’’ ज्योतिषीजी ने कहा, ‘‘आज दिन भर आप लोग सब्र कीजिए और जो कुछ सोचना हो सोचिए, रात को मैं सब हाल रमल से दरियाफ्त कर लूंगा, फिर कल जैसा मुनासिब होगा किया जायेगा। मगर यहां कई रोज़ लगेंगे, महाराज का रहना ठीक नहीं है, बेहतर है कि ये विजयगढ़ जायें।’’ इस राय को सभी ने पसन्द किया। कुमार ने महाराज से कहा, ‘‘आप सिर्फ इस खण्डहर को देखने आये थे सो देख चुके, अब जाइए। आपका यहां रहना मुनासिब नहीं।’’
महाराज विजयगढ़ जाने पर राजी न थे, मगर सभी के जिद करने से कबूल किया। कुमार की जितनी फौज़ थी उसको, और अपनी जितनी फौज़ साथ आई थी उसमें से भी आधी फौज़ उसी जगह छोड़ बाकी साथ ले विजयगढ़ रवाना हुए।
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