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उपन्यास >> चंद्रकान्ता

चंद्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

दूसरा बयान

कुंवर वीरेन्द्रसिंह बैठे फतहसिंह से बातें कर रहे थे कि एक मालिन, जो जवान और कुछ खूबसूरत भी थी हाथ में जंगली फूलों की डाली लिए हुए कुमार के बगल से इस तरह निकली जैसे उसको यह न मालूम हो कि यहां कोई है। मुँह से कहती जाती थी–‘‘आज जंगली फूलों का गहना बनाने में देरी हो गई, जरूर कुमारी खफा होंगी, देखें क्या दुर्दशा होती है।’’

इस बात को दोनों ने सुना। कुमार ने फतहसिंह से कहा, ‘मालूम होता है उन्हीं की मालिन है, इसको बुलाकर पूछो तो सही।’’

फतहसिंह ने आवाज़ दी, उसने चौंककर पीछे देखा, फतहसिंह ने हाथ से फिर बुलाया, वह डरती-काँपती उनके पास आ गई। फतहसिंह ने पूछा, तू कौन है और फूलों के गहने किसके वास्ते ले जा रही है?’’

उसने जवाब दिया, ‘‘मैं मालिन हूं, यह नहीं कह सकती कि किसके यहां रहती हूं और ये फूलों के गहने किसके वास्ते लिये जाती हूँ? आप मुझे छोड़ दें, मैं बहुत गरीब हूँ, मेरे मारने से कुछ हाथ न लगेगा, हाथ जोड़ती हूं, मेरी जान मत लीजिए।’’

ऐसी-ऐसी बातें कह मालिन रोने और गिड़गिड़ाने लगी। फूलों की डालिया आगे रक्खी हुई थी जिनकी तेज़ खुशबू फैल रही थी। इतने में एक नकाबपोश वहाँ आ पहुँचा और कुमार की तरफ मुँह करके बोला, ‘‘आप इसके फेर में न पड़े यह ऐयार है, अगर थोड़ी देर फूलों की खुशबू दिमाग में चढ़ेगी तो आप बेहोश हो जायेंगे।’’

उस नकाबपोश ने इतना कहा ही था कि वह मालिन उठकर भागने लगी, मगर फतहसिंह ने झट हाथ पकड़ लिया, सवार उसी वक्त चला गया। कुमार ने फतहसिंह से कहा, मालूम नहीं सवार कौन है और मेरे साथ यह नेकी करने की उसको क्या ज़रूरत थी?’’ फतहसिंह ने जवाब दिया, ‘‘इसका हाल मालूम होना मुश्किल है क्यों कि वह खुद अपने को छिपा रहा है, खैर जो हो यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं, देखिये अगर यह सवार न आता तो हम लोग फँस ही चुके थे।’’

कुमार ने कहा, ‘‘तुम्हारा यह कहना बहुत ठीक है, खैर, अब चलो इसको अपने साथ लेते चलो, वहाँ चलकर पूछ लेंगे कि यह कौन है?’’ कुमार अपने खेंमें में फतहसिंह और उस ऐयार को लिए पहुँचे तो बोले, ‘‘अब इससे पूछो, इसका नाम क्या है?’’ फतहसिंह ने जवाब दिया, ‘‘भला यह ठीक-ठीक अपना नाम क्यों बतायेगा, देखिये मैं अभी मालूम किये लेता हूँ।’’ 

फतहसिंह ने गरम पानी मांगवा कर उस ऐयार का मुँह धुलाया, अब साफ पहचाने गये कि वह पंडित बद्रीनाथ है। कुमार ने पूछा क्यों अब तुम्हारे साथ क्या सलूक किया जाये? बद्रीनाथ ने जवाब दिया जो मुनासिब हो कीजिये।

कुमार ने फतहसिंह से कहा, इनकी तुम हिफाज़त करो, जब तेजसिंह आयेंगे तो वही इसका फैसला करेंगे। यह सुन फतहसिंह बद्रीनाथ को ले अपने खेमें में चले गये। शाम को बल्कि कुछ रात जाते तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषीजी लौटकर चले आये और कुमार के खेमे में गये। उन्होंने पूछा, कहो, कुछ पता लगा?’’

तेजसिंह : कुछ पता न लगा, दिन भर परेशान हुए मगर कोई काम न चला।

कुमार : (ऊँची साँस लेकर) फिर अब किया क्या जायेगा?

तेजसिंह : किया क्या जायेगा, आजकल में पता लगेगा ही।

कुमार : हमने भी एक ऐयार को गिरफ्तार किया है।

तेजसिंह : हैं, किसको! वह कहाँ है?

कुमार : फतहसिंह के पहरे में उसको बुला के देखो, कौन है?

देवीसिंह को भेज कर फतहसिंह को मय ऐयार के बुलवाया। जब बद्रीनाथ की सूरत देखी तो खुश हो गये और बोले–‘‘क्यों अब क्या इरादा है?’’

बद्रीनाथ : इरादा जो पहले था वही अब भी है।

तेजसिंह : अब भी शिवदत्त का साथ छोड़ोगे या नहीं?

बद्रीनाथ : महाराज शिवदत्त का साथ क्यों छोड़ने लगे?

तेजसिंह : तो फिर कैद हो जाओगे।

बद्रीनाथ : चाहे जो हो।

तेजसिंह : उस कैदखाने का हाल भी मालूम है, वहाँ भेजो भी तो सही।

देवीसिंह : वाह रे निडर!

तेजसिंह ने फतहसिंह से कहा, इसके ऊपर सख्त पहरा मुकर्रर कीजिए। अब रात हो गई है, कल इनको बड़े घर पहुँचाया जायेगा।’’

फतहसिंह ने अपने मातहत सिपाहियों को बुलाकर बद्रीनाथ को उनके सुपुर्द किया। इतने ही में चोबदार ने आकर एक चिट्ठी उनके हाथ में दी और कहा कि एक नकाबपोश सवार बाहर हाज़िर है जिसने यह चिट्ठी कुमार को देने के लिए दी है! तेजसिंह ने लिफाफे को देखा, यह लिखा हुआ था :

‘‘कुँवर वीरेन्द्रसिंह जी के चरण कमलों में–’’

तेजसिंह ने कुमार के हाथ में दिया, उन्होंने खोलकर पढ़ा,

*बरवा*

‘‘सुख संपति सब त्याग्यो जिनके हेत।

वे निरमोही ऐसे, सुधिहुं न लेत।।

राज छोड़ बन जोगी, भस्म रमाय।

विरह अनल की धूनी तापस हाय।।

–कोई वियोगिनी।

पढ़ते ही आँख डबडबा आयीं, रुधे गले से अटककर बोले, ‘‘उसको अन्दर बुलाओ जो चिट्ठी लाया है। हुक्म पाते ही चोबदार उस नकाबपोश सवार को लेने बाहर गया मगर तुरंत वापस आकर बोला–वह सवार तो मालूम नहीं कहाँ चला गया!’’

इस बात को सुनते ही कुमार के जी को कितना दुःख हुआ वे ही जानते होंगे। वह चिट्ठी तेजसिंह के हाथ में दे दी, उन्होंने भी पढ़ा, कहा, ‘‘इसके पढ़ने से मालूम होता है कि यह चिट्ठी उसी ने भेजी है जिसकी खोज में दिन भर हम लोग हैरान हुए और यह तो साफ ही है कि वह भी आपकी मुहब्बत में डूबी हुई है, फिर आपको इतना रंज न करना चाहिए।’’

कुमार ने कहा, ‘‘इस चिट्ठी ने तो इश्क की आग में घी का काम किया। उसका खयाल और भी बढ़ गया, घट कैसे सकता है। खैर, अब जाओ, तुम लोग भी आराम करो, कल जो कुछ होगा देखा जायेगा।’’

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