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उपन्यास >> चंद्रकान्ता

चंद्रकान्ता

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8395
आईएसबीएन :978-1-61301-007-5

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चंद्रकान्ता पुस्तक का ई-संस्करण

बारहवां बयान

कुंवर वीरेन्द्रसिंह के गायब होने से उनके लश्कर में खलबली पड़ गई। तेजसिंह और देवीसिंह ने घबरा कर चारों तरफ खोज की मगर कुछ पता न लगा। दिन भर बीत जाने पर ज्योतिषीजी ने तेजसिंह से कहा, ‘‘मुझे रमल में जान पड़ता है कि कुमार को कई औरतें बेहोशी की दवा सुंघा बेहोश करके उठा ले गई हैं और नौगढ़ के इलाके में अपने मकान के अन्दर क़ैद कर रखा है। इससे ज़्यादा कुछ मालूम नहीं होता।’’

ज्योतिषीजी की बात सुन तेजसिंह बोले, ‘‘नौगढ़ में तो अपना ही राज्य है, वहां कुमार के दुश्मनों का कहीं ठिकाना नहीं। महाराज सुरेन्द्रसिंह अमलदारी से उनकी रियाया बहुत खुश तथा उनके और उनके खानदान के लिए वक़्त पर जान देने को तैयार है, फिर कुमार को वहां ले जाकर क़ैद करने वाला कौन हो सकता है?’’

बहुत देर तक सोच-विचार करते रहने के बाद तेजसिंह कुमार की खोज में जाने के लिए तैयार हुए। देवीसिंह और ज्योतिषीजी ने भी उनका साथ दिया और ये तीनों नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। जाते वक़्त महाराज शिवदत्त के दीवान को चुनार विदा करने गये जो कुंवर वीरेन्द्रसिंह की मुलाकात को महाराज शिवदत्त से तोहफा और सौगात लेकर आये थे, और तिलिस्मी किताब फतहसिंह सिपहसालार के सुपुर्द कर दी जो कुंवर वीरेन्द्रसिंह के गायब हो जाने के बाद उनके पलंग पर पड़ी हुई पाई थी।

ये तीनों ऐयार आधी रात गुज़र जाने के बाद नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। पांच कोस तक बराबर चलके गये, सवेरा होने पर तीनों एक घने जंगल में रुके और अपनी-अपनी सूरतें बदलकर फिर रवाना हुए। दिन भर चलकर भूखे-प्यासे शाम को नौगढ़ की सरहद पर पहुंचे। इन लोगों ने आपस में यह राय ठहराई कि किसी से मुलाकात न करें बल्कि जाहिर भी न होकर छिपे-ही-छिपे कुमार की खोज करें।

तीनों ऐयारों ने अलग-अलग होकर कुमार का पता लगाना शुरू किया। कहीं मकान में घुसकर, कहीं बाग में जाकर, कहीं आदमियों से बातें करके उन लोगों ने दरियाफ्त किया, मगर कहीं पता न लगा, दूसरे दिन तीनों इकट्ठे होकर सूरत बदले हुए राजा सुरेन्द्रसिंह के दरबार में गये और एक कोने में खड़े बातचीत सुनने लगे।

उसी वक़्त कई जासूस दरबार में पहुंचे जिनकी सूरत से घबराहट और परेशानी साफ मालूम होती थी।

तेजसिंह के पिता दीवान जीतसिंह ने उन जासूसों से पूछा, ‘‘क्या बात है जो तुम लोग इस तरह घबराये हुए हो?’’

एक जासूस ने कुछ आगे बढ़कर जवाब दिया, ‘‘लश्कर से कुमार की खबर लाया हूं।’’

जीतसिंह : क्या हाल है, जल्द कहो।

जासूस : दो रोज़ से उनका पता नहीं लगता।

जीतसिंह : क्या कहीं चले गये?

जासूस : जी नहीं, रात को खेमे में सोये हुए थे, उसी हालत में कुछ औरतें उन्हें उठा ले गईं, मालूम नहीं कहां क़ैद रखा है।

जीतसिंह : (घबराकर) यह कैसे मालूम हुआ कि उन्हें कई औरतें ले गई?

जासूस : उनके गायब हो जाने के बाद ऐयारों ने बहुत तलाश किया। जब कुछ पता न लगा तो ज्योतिषी जगन्नाथजी ने रमल से पता लगा के कहा कि कई औरतें उन्हें ले गई हैं और इस नौगढ़ के इलाके में ही कहीं क़ैद कर रखा है।

जीतसिंह : (ताज्जुब से) इसी नौगढ़ के इलाके में? यहां तो हम लोगों का कोई दुश्मन नहीं है।

जासूस : जो कुछ हो, ज्योतिषीजी ने तो ऐसा ही कहा है।

जीतसिंह : फिर तेजसिंह कहां गया?

जासूस : कुमार की खोज में कहीं गये हैं, देवीसिंह और ज्योतिषीजी भी उनके साथ हैं। मगर उन लोगों के जाते हमारे लश्कर पर आफत आ गई।

जीतसिंह : (चौंककर) हमारे लश्कर पर क्या आफत आ गई?

जासूस : मौका पाकर महाराज शिवदत्त ने हमला कर दिया।

हमले का नाम सुनते ही तेजसिंह वगैरह ऐयार लोग जो सूरत बदले हुए एक कोने में खड़े थे आगे की बातें बड़े गौर से सुनने लगे।

जीतसिंह : पहले तो तुम लोग यह खबर लाये थे कि महाराज शिवदत्त ने कुमार की दोस्ती कबूल कर ली और उसका दीवान बहुत कुछ नज़र लेकर आया है, अब क्या हुआ?

जासूस : उस वक़्त की वह खबर बहुत ठीक थी पर आखिर में उसने धोखा दिया और बेईमानी पर कमर बांध ली।

जीतसिंह : उसके हमले में क्या हुआ?

जासूस : पहर भर तक तो फतहसिंह सिपहसालार खूब जूझे, आखिर शिवदत्त के हाथ से जख्मी होकर गिरफ्तार हो गये। उनके गिरफ्तार होते ही बेसिर की फौज छितिर-बितिर हो गई।

अभी तक सुरेन्द्रसिंह चुपचाप बैठे इन बातों को सुन रहे थे। फतहसिंह के गिरफ्तार हो जाने और लश्कर के भाग जाने का हाल सुन आंखें लाल हो गयीं, दीवान जीतसिंह की तरफ देखकर बोले, हमारे यहां इस वक़्त फौज तो है नहीं थोड़े-बहुत सिपाही जो कुछ हैं उनको लेकर इसी वक़्त कूच करूंगा, ऐसे नामर्द को मारना कोई बड़ी बात नहीं है।

जीत : ऐसा ही होना चाहिए। सरकार के कूच की बात सुन भागी हुई फौज भी इकट्ठी हो जायेगी।

ये सब बातें हो रही थीं कि दो जासूस और दरबार में हाज़िर हुए। पूछने पर उन्होंने कहा, ‘‘कुमार का गायब होने, ऐयारों के उनकी खोज में जाने फतहसिंह के गिरफ्तार हो जाने और फौज के भाग जाने की खबर सुनकर महाराज जयसिंह अपनी कुल फौज लेकर चुनार पर चढ़ गये हैं। रास्ते में खबर ली की फतहसिंह के गिरफ्तार होने के दो ही पहर बाद रात को महाराज शिवदत्त भी कहीं गायब हो गये, और उसके पलंग पर एक पुर्जा पड़ा हुआ था कि ‘इस बेईमान को पूरी सजा दी जायेगी जन्म भर क़ैद से छुट्टी न मिलेगी’। बाद इसके सुनने में आया कि फतहसिंह भी छूटकर तिलिस्म के पास गये और कुमार की फौज फिर इकट्ठी हो रही है।’’

इस खबर को सुनकर राजा सुरेन्द्रसिंह ने दीवान जीतसिंह की तरफ देखा।

जीरसिंह : जो कुछ भी हो, महाराज जयसिंह ने चढ़ाई कर ही दी, मुनासिब है कि हम भी पहुंचकर चुनार का बखेड़ा ही तय कर दें, यह रोज़-रोज़ की खटपट अच्छी नहीं।

राजा : तुम्हारा कहना ठीक है, ऐसा ही किया जाये। क्या कहें, हमने सोचा था कि लड़के के हाथ से चुनार फतह हो जिससे उसका हौसला बढ़े, मगर अब बर्दास्त नहीं होता।

इन सब बातों की खबरों को सुन तीनों ऐयार वहां से रवाना हो गये और एकांत में जाकर आपस में सलाह करने लगे।

तेजसिंह : अब क्या करना चाहिए?

देवीसिंह : चाहे जो भी हो पहले तो कुमार को खोजना चाहिए।

तेजसिंह : मैं कहता हूं कि तुम लश्कर की तरफ जाओ, हम दोनों कुमार की खोज करते हैं।

ज्योतिषी : मेरी बात मानो तो पहले एक दफे उस तहखाने (खोह) में चलो जिसमें महाराज शिवदत्त को क़ैद किया गया था।

तेजसिंह : उसका तो दरवाज़ा ही नहीं खुलता।

ज्योतिषी : भला चलो तो सही, शायद किसी तरकीब से खुल जाये।

तेजसिंह : इसकी कोशिश तो आप बेफायदे करते हैं, अगर दरवाज़ा खुला भी तो क्या काम निकलेगा?

ज्योतिषी : अच्छा चलो तो!

तेजसिंह : खैर चलो!

तीनों ऐयार तहखाने की तरफ रवाना हुए।

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