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चन्द्रकान्ता सन्तति - 2

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8400
आईएसबीएन :978-1-61301-027-3

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चन्द्रकान्ता सन्तति 2 पुस्तक का ई-पुस्तक संस्करण...

पाँचवाँ बयान

रात आधी से कुछ ज़्यादे जा चुकी है। चारों तरफ़ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भूँकने की आवाज़ के सिवाय और किसी तरह की आवाज़ सुनायी नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी जिनमें एक औरत और दूसरा मर्द है, घूमते हुए दिखायी देते हैं। ये दोनों कमलिनी और भूतनाथ हैं, जो त्रिलोचनेश्वर महादेव के पास मनोरमा के मकान पर पहुँचने की धुन में कदम बढ़ाये हुए तेजी के साथ जा रहे हैं। जब वे दोनों एक चौमुहानी के पास पहुँचे तो देखा कि दाहिनी तरफ़ से एक आदमी पीठ पर गट्ठर लादे आया और उसी तरफ़ को घूमा, जिधर ये दोनों जानेवाले थे। कमलिनी ने धीरे से भूतनाथ के कान में कहा, "इस गठरी में ज़रूर कोई आदमी है।"

भूतनाथ : बेशक ऐसा ही है। इस आदमी की चाल पर भी मुझे कुछ शक पड़ता है, ताज्जुब नहीं कि यह मनोरमा का नौकर श्यामलाल हो।

कमलिनी : तुम्हारा शक ठीक हो सकता है क्योंकि तुम बहुत दिनों तक मनोरमा के मकान पर रह चुके हो और वहाँ के हर एक आदमी को बखूबी जानते हो।

भूतनाथ : कहो तो इसे रोकूँ।

कमलिनी : हाँ हाँ, रोको, जाने न पावे।

भूतनाथ लपककर उस आदमी के सामने गया और कमर से खंजर निकाल उसके सामने चमकाया। उसकी चमक में भूतनाथ और कमलिनी ने उस आदमी को पहिचान लिया, मगर वह इन दोनों को अच्छी तरह न देख सका, क्योंकि बिजली की तरह चमकनेवाली रोशनी ने उसकी आँखें बन्द कर दीं और वह घबड़ाकर बैठ गया। भूतनाथ ने खंजर उसके बदन से लगाया, जिसकी तासीर से वह एक दफे काँपा और बेहोश होकर ज़मीन पर लम्बा हो गया। भूतनाथ ने उसे उसी तरह छोड़ दिया और गठरी का कोना खोलकर देखा तो उसमें एक कमसिन औरत बँधी हुई पायी। कमलिनी के हुक्म से भूतनाथ ने वह गठरी अपनी पीठ पर लाद ली और मनोरमा के घर का रास्ता छोड़ दोनों आदमी गंगा किनारे की तरफ़ रवाना हुए।

बात-की-बात में दोनों गंगा किनारे जा पहुँचे। इस समय चन्द्रमा की रोशनी अच्छी तरह फैली हुई थी। एक मढ़ी के ऊपर बैठने के बाद भूतनाथ ने वह गठरी खोली। उस बेहोश औरत के चेहरे पर चन्द्रमा की रोशनी पड़ते ही भूतनाथ चौंककर बोला, "ओफ, यह तो कमला है!"

कमला होश में लायी गयी। जब उसकी निगाह भूतनाथ के ऊपर पड़ी तो वह एकदम काँप उठी। कमला को उस दिन की बात याद आ गयी, जिस दिन खँडहर के तहख़ाने में अपने चाचा शेरसिंह के पास भूतनाथ को देखा था, कमला को शक हो गया कि इस समय वह जिसके हुक्म से बेहोश करके लायी गयी, वह भूतनाथ ही है। कमला की दूसरी निगाह कमलिनी पर पड़ी, मगर वह कमलिनी को पहिचान न सकी। यद्यपि कमला, कमलिनी को रोहतासगढ़ पहाड़ी पर देख चुकी थी, परन्तु इस समय कमलिनी उस भयानक राक्षसी के भेष में न थी, रंग काला ज़रूर था, परन्तु लम्बे-लम्बे दाँत उसके मुँह में न थे, इसी से वह कमलिनी को पहिचान न सकी।

कमलिनी ने जब देखा कि कमला बहुत डरी हुई और हैरान मालूम पड़ती है तो उसने कमला का हाथ पकड़ लिया और धीरे से दबाकर कहा, "कमला, तू डर मत। हम लोगों ने इस समय तुझे एक दुश्मन के हाथ से छुड़ाया है।"

कमला : अब मेरा जी ठिकाने हुआ, मुझे उम्मीद है कि आप लोगों की तरफ़ से मुझे तकलीफ न पहुँचेगी। परन्तु आप लोगों को जानने के लिए मेरा जी बेचैन हो रहा है।

कमलिनी : ठीक है, ज़रूर तेरा जी चाहता होगा कि हम लोगों का हाल जाने और इसी तरह मैं भी तुझसे बहुत कुछ पूछा चाहती हूँ मगर इस समय केवल चार-पाँच घण्टे के लिए तुझसे जुदा होती हूँ, तब तक तू (भूतनाथ की तरफ़ इशारा करके) इनके साथ रह। किसी तरह से डर मत, सवेरा होने के पहिले ही मैं तुझसे आकर मिलूँगी और बातचीत के बाद कुँअर इन्द्रजीतसिंह के छुड़ाने का उद्योग करूँगी।

कमला: मैं आपके हुक्म के खिलाफ कुछ न करूँगी। मैं आपसे हर तरह पर भलाई की आशा रखती हूँ, क्योंकि आपने मुझे एक ऐसे दुश्मन के हाथ से छुड़ाया है, जिसका हाल मैं ही जानती हूँ।

कमलिनी : अच्छा तो अब बातों में समय नष्ट करना ठीक नहीं है। (भूतनाथ की तरफ़ देखकर) भूतनाथ, यहाँ छोटी-छोटी बहुत-सी डोंगियाँ बँधी हुई हैं, सन्नाटा और मौका देखकर कोई एक डोंगी खोल लो और कमला को साथ लेकर गंगा पार चले जाओ। मैं मनोरमा के घर पर जाती हूँ, वहाँ से अपना मतलब साधकर सवेरा होने के पहिले ही तुमसे आ मिलूँगी।

कमला : (चौंककर) क्या नाम लिया, मनोरमा! हाय हाय, वह तो बड़ी शैतान है, हम लोगों को तो उसने तबाह कर डाला! क्या तुम उसके...

कमलिनी: डर मत, मनोरमा को मैंने क़ैद कर लिया है और अब एक ज़रूरी काम के लिए उसके घर पर जा रही हूँ। (आसमान की तरफ़ देखकर) ओफ, बहुत विलम्ब हुआ, ख़ैर, अब मैं विदा होती हूँ, पुनः मिलने पर सब हाल कहूँगी।

कमलिनी वहाँ से रवाना हुई और थोड़ी ही देर में उस बाग के फाटक पर जा पहुँची, जिसमें मनोरमा का मकान था। फाटक के साथ लोहे की एक जंजीर लगी हुई थी, जिसे हिलाने से दरबान ने एक छोटे से सुराख में से बाहर की तरफ़ देखा जो इसी काम के लिए बना हुआ था। केवल एक औरत को दरवाज़े पर मौजूद पाकर दरबान ने फाटक खोल दिया और जब कमलिनी अन्दर चली गयी तो फाटक उसी तरह बन्द कर दिया और तब कमलिनी से पूछा, "तुम कौन हो और यहाँ किसलिए आयी हो?"

कमलिनी : मुझे मनोरमा ने पत्र देकर अपनी सखी नागर के पास भेजा है, तुम मुझे नागर के पास बहुत जल्द ले चलो।

दरबान : वह तो यहाँ नहीं है, किसी दूसरी जगह गयी हैं।

कमलिनी : कब आवेंगी?

दरबान : सो मैं ठीक नहीं कह सकता।

कमलिनी : क्या तुम यह भी नहीं कह सकते कि वे आज या कल तक लौट आवेंगी या नहीं?

दरबान : हाँ, यह तो मैं कह सकता हूँ कि पाँच-चार दिन तक वे न आवेंगी इसके बाद चाहे जब आवें।

कमलिनी : अफसोस, अब बेचारी मनोरमा नहीं बच सकती।

दरबान : (चौंककर) क्यों क्यों, उन पर क्या आफ़त आयी?

कमलिनी : यह एक गुप्त बात है जो मैं तुमसे नहीं कह सकती, हाँ इतना कहने में कोई हर्ज़ नहीं कि यदि तीन दिन के अन्दर उन्हें बचाने का उद्योग न किया जायगा तो चौथे दिन कुछ नहीं हो सकता, वे अवश्य मार डाली जाँयगी।

दरबान : अफसोस, यदि आप एक दिन तक यहाँ अटकना मंजूर करें तो मैं नागरजी के पास जाकर उन्हें बुला लाऊँ, आपको यहाँ किसी तरह की तकलीफ न होगी।

कमलिनी : (कुछ सोचकर) मुझे एक ज़रूरी काम है, इसलिए अटक तो नहीं सकती, परन्तु कल शाम तक अपना काम करके लौट आ सकती हूँ।

दरबान : यदि आप ऐसा भी करें तो काम चल सकता है, परन्तु आप अटक न जाँय! यदि आपका काम ऐसा हो, जिसे हम लोग कर सकते हैं तो आप कहें, उसका बन्दोबस्त कर दिया जायगा।

कमलिनी : नहीं, बिना मेरे गये वह काम नहीं हो सकता, मगर कोई चिन्ता नहीं, मैं कल शाम तक अवश्य आ जाऊँगी।

दरबान : जैसी मर्जी, आपकी मेहरबानी से यदि हमारे मालिक की जान बच जायगी तो हम लोग जन्म-भर के लिए गुलाम रहेंगे।

कमलिनी : मैं अवश्य आऊँगी और उनके लिए हर तरह का उद्योग करूँगी, तुम जाती समय इसका बन्दोबस्त कर जाना कि यदि तुम्हारे लौट आने के पहिले ही मैं यहाँ पहुँच जाऊँ तो मुझे यहाँ रहने में किसी तरह का तरद्दुद न हो।

दरबान : इससे आप बेफिक्र रहें, मैं पूरा-पूरा इन्तजाम करके जाऊँगा और नागरजी को लेकर बहुत जल्द लौटूँगा।

फाटक खोल दिया गया और कमलिनी बाग के बाहर हो गयी। वह अभी बीस कदम भी आगे न गयी होगी कि एक आदमी बदहवास और दौड़ता हुआ उसी बाग के फाटक पर पहुँचा और दरवाज़ा खुलवाने का उद्योग करने लगा। कमलिनी जान गयी कि यह वही आदमी है, जिसके हाथ से अभी थोड़ी ही देर हुई है कमला को छुड़ाया है। कमलिनी उसी जगह आड़ में खड़ी होकर उसे देखने और कुछ सोचने लगी। जब बाग का फाटक खुल गया और वह आदमी अन्दर चला गया तो न मालूम क्या सोचती-विचारती कमलिनी भी वहाँ से रवाना हुई और थोड़ी रात बाकी थी, जब कमला और भूतनाथ के पास पहुँची, जो गंगा पार उसके आने की राह देख रहे थे। कमलिनी को बहुत जल्द लौट आते देख भूतनाथ को ताज्जुब हुआ और उसने कहा—

भूतनाथ : मालूम होता है कि कुछ काम न हुआ और आपको खाली ही लौट आना पड़ा।

कमलिनी : हाँ, इस समय तो खाली ही लौटना पड़ा, मगर काम हो जायगा। नागर घर पर मौजूद न थी, उसका आदमी उसे बुलाने के लिए गया है। मैं कल शाम तक फिर वहाँ पहुँचने का वादा कर आयी हूँ, इच्छा तो यही थी कि वहाँ अटक जाऊँ, क्योंकि ऐसा करने से और भी कुछ काम निकलने की उम्मीद थी परन्तु कमला के खयाल से लौट आना पड़ा। मैं चाहती हूँ कि कमला को रोहतासगढ़ रवाना कर दूँ, क्योंकि उसकी जुबानी कुछ हाल सुनकर राजा बीरेन्द्रसिंह को ढाढस होगी और लड़कों के सोच में बहुत व्याकुल न रहेंगे। (कमला की तरफ़ देखकर) तेरी क्या राय है?

कमला : जो कुछ आप हुक्म दें मैं करने को तैयार हूँ, परन्तु इस समय मैं बहुत-सी बातों का असल भेद जानने के लिए बेचैन हो रही हूँ और सिवाय आपके कोई दूसरा मेरी दिलजमई नहीं कर सकता।

कमलिनी : कोई हर्ज़ नहीं, मैं हर तरह से तेरी दिलजमई कर दूँगी।

इतना सुनकर कमला भूतनाथ की तरफ़ देखने लगी। कमलिनी समझ गयी कि यह निराले में मुझसे कुछ पूछा चाहती है अस्तु, उसने भूतनाथ को वहाँ से हट जाने के लिए कहा और जब वह कुछ दूर चला गया तो कमला से बोली, "अब निराला हो गया, जो कुछ पूछना हो पूछो।"

कमला : मुझे आपका कुछ हाल भूतनाथ की जुबानी मालूम हुआ है, परन्तु उससे पूरी दिलजमई नहीं होती। मुझे पूरा-पूरा पता लग चुका था कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह आपके यहाँ क़ैद हैं, फिर न मालूम उन पर क्या आफ़त आयी और उनके साथ आपने क्या सलूक किया। यद्यपि उस समय हम लोग आपके नाम से डरते थे, परन्तु जब आपने कई दफे हम लोगों के साथ नेकी की, जिसका हाल आज मालूम हुआ है तो वह बात अब मेरे दिल से जाती रही, फिर भी कुँअर इन्द्रजीतसिंह के बारे में शक बना ही रहा है।

कमलिनी : सुन, मैं तुझसे पूरा-पूरा हाल कहती हूँ। यह तो तुझे मालूम हो ही चुका कि मैं कमलिनी हूँ।

कमला : जी हाँ, यह तो (भूतनाथ की तरफ़ इशारा करके) इनकी कृपा से मालूम हो गया और इन्हीं की जुबानी यह भी जान गयी कि रोहतासगढ़ में उस कब्रिस्तान के अन्दर हाथ में चमकता हुआ नेजा लेकर आपही ने हम लोगों की मदद की थी और बेहोश करके रोहतासगढ़ किले के अन्दर पहुँचा दिया था। दूसरी दफे राजा बीरेन्द्रसिंह वगैरह को रोहतासगढ़ के कैदख़ाने से आपही ने छुड़ाया था, और तीसरी दफे उस खँडहर में यकायक विचित्र रीति से आप ही को पहुँचते हम लोगों ने देखा था।

कमलिनी : यद्यपि कुछ लोगों ने मुझे बदनाम कर रक्खा है, परन्तु वास्तव में मैं वैसी नहीं हूँ। मैं नेकों के साथ नेकी करने के लिए हरदम तैयार रहती हूँ, इसी तरह दुष्टों को मजा चखाने की भी नीयत रहती है। मैंने कुँअर इन्द्रजीतसिंह के साथ किसी तरह की बुराई नहीं की, बल्कि उनके साथ नेकी की और उन्हें एक बहुत बड़े दुश्मन के हाथ से छुड़ाया। जब वे तुम लोगों से मिलेंगे और मेरा हाल कहेंगे तब मालूम होगा कि कमलिनी ने सच कहा था!

इसके बाद कमलिनी ने इन्द्रजीतसिंह का अपने लश्कर से गायब होना और उन्हें दुश्मन के हाथ से छुड़ाना, कई दिनों तक अपने मकान में रखना, माधवी को गिरफ़्तार करना, किशोरी का रोहतासगढ़ के तहख़ाने से निकलना और धनपति के कब्जे में पड़ना, तारा के ख़बर पहुँचाने पर इन्द्रजीतसिंह को साथ लेकर किशोरी को छुड़ाने के लिए जाना, रास्ते में शेरसिंह और देवीसिंह से मिलना, अग्निदत्त का हाल और अन्त में उस तिलिस्मी मकान के अन्दर सभों का कूद जाना, कमला से पूरा-पूरा बयान किया। कमला ताज्जुब से सब बातें सुनती रही और अब कमलिनी पर उसे पूरा-पूरा विश्वास हो गया।

कमला : फिर किशोरी और कुँअर इन्द्रजीतसिंह उस खँडहरवाले तहख़ाने में क्योंकर पहुँचे।

कमलिनी : वह खँडहर एक छोटे-से तिलिस्म से सम्बन्ध रखता है। एक औरत जो मायारानी के नाम से पुकारी जाती है और जिसका हाल कुछ दिन बाद तुम लोगों को मालूम होगा, उस तिलिस्म पर राज्य करती है। मैं उसकी सगी बहिन हूँ। हमारी तिलिस्मी किताब से साबित होता है कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह उस तिलिस्म को तोड़ेंगे क्योंकि तिलिस्म तोड़नेवालों के जो-जो लक्षण उस किताब में लिखे हैं, वे सब इन दोनों भाइयों में पाये जाते हैं, परन्तु मायारानी चाहती है कि तिलिस्म टूटने न पावे और इसीलिए वह दोनों कुमारों को अपने क़ैद में रखने अथवा मार डालने का उद्योग कर रही है। मैंने उसे बहुत कुछ समझाया और कहा कि तिलिस्म बनानेवालों के खिलाफ़ चलने और इन दोनों भाइयों से दुश्मनी रखने का नतीजा अच्छा न होगा, परन्तु उसने न माना, बल्कि मेरी भी दुश्मन बन बैठी, अन्त में लाचार होकर मुझे उसका साथ छोड़ देना पड़ा। मैंने उस तालाब वाले मकान पर अपना कब्ज़ा कर लिया और उसी में रहने लगी। उस मकान में मैं बेफिक्र रहती हूँ। मायारानी के कई आदमी ने जो नेक और ईमानदार थे मेरा साथ दिया। तिलिस्म का जितना हाल उसे मालूम है, उतना ही मुझे भी मालूम है, यही सबब है कि वह अर्थात् तिलिस्म महारानी (मायारानी) बीरेन्द्रसिंह और उनके खानदान के साथ दुश्मनी कर रही है और मैं हर तरह से उसकी मदद कर सकती हूँ। उस तिलिस्मी मकान के अन्दर इन्द्रजीतसिंह और उनके साथियों तथा मेरे नौकरों का हँसते-हँसते कूद जाना, उसी तिलिस्मी महारानी की कार्रवाई थी और उस खँडहरवाले तहख़ाने में जो कुछ तुम लोगों ने देखा, वह सब भी उसी की बदौलत था। अफसोस, गुप्त राह से मायारानी के बहुत से आदमियों के पहुँच जाने के कारण मैं कुछ कर न सकी। ख़ैर, कोई हर्ज़ नहीं, कुँअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और किशोरी तथा कामिनी वगैरह का मायारानी कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती क्योंकि उसकी असल जमा-पूँजी जो थी, वह मेरे हाथ लग चुकी है, जिसका खुलासा हाल इस समय मैं नहीं कह सकती, हाँ इतना प्रतिज्ञा-पूर्वक कहती हूँ कि उन लोगों को मैं बहुत जल्द क़ैद से छुड़ाऊँगी।

कमला : मैं समझती हूँ कि वह मकान भी तिलिस्मी होगा, जिसके अन्दर कुँअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह हँसते-हँसते कूद पड़े थे।

कमलिनी : नहीं, उस मकान का तिलिस्म से कोई सम्बन्ध नहीं, वह नया बनाया गया है। मुझे उसकी ख़बर न थी। इसी से मैं धोखे में आ गयी, पीछे पता लगाने से मालूम हुआ कि वह भी मायारानी की कार्रवाई थी।

कमला : अब मेरा जी ठिकाने हुआ और आपकी बदौलत अपनी प्यारी सखी किशोरी और कुँअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह के छूटने की उम्मीद हुई। अब आशा है कि आपकी कृपा से एक दफे मायारानी को भी देखूँगी।

कमलिनी : इसके लिए जल्दी करना मुनासिब नहीं, मैं आज-ही-कल में तुझे अपने साथ मायारानी के घर ले चलती, क्योंकि मुझे वहाँ जाने की बहुत जल्दी है, परन्तु इस समय तेरा रोहतासगढ़ लौट जाना ही ठीक है, क्योंकि राजा बीरेन्द्रसिंह लड़कों की जुदाई में हद से ज़्यादे दुखी होंगे, तेरे लौट जाने से उन्हें ढाढ़स होगा और मेरी जुबानी जो कुछ तूने सुना है, जब उनसे बयान करेगी तो उन्हें एक प्रकार की आशा हो जायगी, हाँ एक बात तुझसे पूछना मैं भूल गयी।

कमला : वह क्या?

कमलिनी : तू कहती है कि मैं मायारानी को देखा चाहती हूँ, तो क्या तूने उसे नहीं देखा? उसी के आदमी तो तुझे गिरफ़्तार करके ले गये थे, जहाँ तक मैं समझती हूँ तू उसके पास ज़रूर पहुँचायी गयी होगी।

कमला : हाँ हाँ, मैं एक जनाने दरबार में पहुँचायी गयी थी, मगर यह नहीं कह सकती कि वह मायारानी ही का दरबार था या कोई दूसरा और यदि मायारानी ही का दरबार था तो...

कमलिनी : पहिले तू अपना हाल कह जा कि जब खँडहर के अन्दर तहख़ाने में घुसी तो क्या हुआ और क्योंकर गिरफ़्तार होकर कहाँ गयी?

कमला : जब हम लोग राजा बीरेन्द्रसिंह के साथ कुमार को निकालने के लिए उस खँडहरवाले तहख़ाने में गये तो वहाँ किसी को न पाया। सीढ़ी के नीचे एक छोटी कोठरी थी, मैं उसमें घुस गयी। देखा कि पत्थर की एक सिल्ली दीवार से अलग होकर ज़मीन पर पड़ी हुई है और उस जगह एक आदमी के जाने लायक रास्ता है। उस दरवाज़े के दूसरी तरफ़ एक और कोठरी नज़र आयी, जिसमें चिराग जल रहा था। मैंने आनन्दसिंह और तारासिंह को पुकारा, जब वे आ गये तो तीनों आदमी उस कोठरी के अन्दर घुसे, जब दो-तीन कदम आगे गये तो यकायक पीछे से खटके की आवाज़ आयी, घूमकर देखा तो उस रास्ते को बन्द पाया जिधर से आये थे। ताज्जुब में आकर हम लोग सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। यकायक कई आदमी एक तरफ़ से निकल आये और उन लोगों ने फुर्ती के साथ एक-एक चादर हम लोगों के ऊपर डाल दी। मुझे उस चादर की तेज़ महक कभी न भूलेगी। सिर पर चादर पड़ते ही अजब हालत हो गयी एक प्रकार की तेज़महक नाक के अन्दर घुसी और उसने तनोबदन की सुध भुला दी। न मालूम उसी दिन या दूसरे या कई दिन के बाद जब मैं होश में आयी तो अपने को रात के समय एक जनाने दरबार में पाया।

कमलिनी : वह दरबार कैसा था?

कमला : वह दरबार एक बारहदरी में था। जड़ाऊ सिंहासन पर एक नौजवान औरत दक्षिणी ढंग की पोशाक पहिने बैठी थी, मैं कह सकती हूँ कि सिवाय किशोरी के उसके मुकाबले की खूबसूरत औरत आज तक किसी ने न देखी होगी।

कमलिनी : बस बस, मैं समझ गयी, वही मायारानी थी, हाँ, और क्या देखा?

कमला : उसके दाहिने तरफ़ सोने की एक चौकी पर मृगछाला बिछा हुआ था, मगर उस पर कोई बैठा न था।

कमलिनी : वह तिलिस्म के दारोगा की जगह थी, जो वृद्ध साधू के भेष में रहता है, मगर आजकल उसे राजा बीरेन्द्रसिंह ने क़ैद कर लिया है।

कमला : (ताज्जुब से) राजा बीरेन्द्रसिंह ने कब और किस दारोगा को क़ैद किया है?

कमलिनी : उस तिलिस्मी खँडहर में जब तुम लोग गये तो किसी साधू को बेहोश पाया था या नहीं?

कमला : (कुछ सोचकर) हाँ हाँ, एक कोठरी के अन्दर जिसमें एक मूरत थी। क्या वही तिलिस्मी दारोगा है।

कमलिनी : हाँ, वही दारोगा है, वही बहुत से आदमियों को साथ लेकर तहख़ाने में से कुमार को उठा लाने के लिए उस खँडहर में गया था, मगर तारासिंह की चालाकी से अपने साथियों के सहित बेहोश हो गया। उस समय भेष बदले मेरा भी एक आदमी वहाँ मौजूद था, मगर दूर ही से सबकुछ देख रहा था। हाँ, तो उस दरबार में और क्या देखा?

कमला : उस मृगछाला बिछी हुई चौकी के पास अर्धगोलाकार बीस जड़ाऊ कुर्सियाँ और थीं और उसी तरह सिंहासन के बायीं तरफ़ छोटे जड़ाऊ सिंहासन पर एक खूबसूरत औरत बैठी हुई थी, जिसके बाद फिर बीस या इक्कीस जड़ाऊ कुर्सियाँ थीं, और दोनों तरफ़ वाली जड़ाऊ कुर्सियों पर नौजवान और खूबसूरत औरतें बड़े ठाठ से बैठी हुई थीं*। मैं उस दरबार को कभी न भूलूँगी। (* इसी दरबार में रामभोली का आशिक नानक गया था।)

कमलिनी : ठीक है, तो अब तुझे मायारानी को देखने की कोई आवश्यकता नहीं, ख़ैर, मुख्तसर में कह कि फिर क्या हुआ?

कमला : पहिले यह बता दीजिए कि मायारानी के बगल में छोटे जड़ाऊ सिंहासन पर कौन औरत थी, क्योंकि वह बड़ी ही खूबसूरत थी।

कमलिनी : वह मेरी छोटी बहिन थी। सबसे बड़ी मायारानी, उससे छोटी मैं और मुझसे छोटी वही औरत है, उसका नाम लाडिली है।

कमला : आपकी और भी कोई बहिन है?

कमलिनी : नहीं, हम तीनों के सिवाय और कोई बहिन या भाई नहीं है। अब अपना हाल कह, फिर क्या हुआ?

कमला : मायारानी के सिंहासन के पीछे मनोरमा खड़ी थी। उन्हीं सभों की बातचीत से मुझे मालूम हुआ कि उसका नाम मनोरमा है। वह बड़ी दुष्ट थी?

कमलिनी : थी नहीं, बल्कि है, हाँ ख़ैर तब क्या हुआ?

कमला : ऐसे दरबार को देख मैं घबड़ा गयी। जिधर निगाह पड़ती थी उधर ही एक-से-एक बढ़के जड़ाऊ चीज़ें नज़र आती थीं। मैं हैरान थी कि इतनी दौलत इन लोगों के पास कहाँ से आयी और ये लोग कौन हैं। मैं ताज्जुब में आकर चारों तरफ़ देखने लगी। यकायक मेरी निगाह कुँअर आनन्दसिंह और तारासिंह पर पड़ी। कुँअर आनन्दसिंह हथकड़ी और बेड़ी से लाचार मेरे पीछे की तरफ़ बैठे थे, उनके पास उन्हीं की तरह हथकड़ी बेड़ी से बेबस तारासिंह भी बैठे थे, फर्क इतना था कि कुँअर आनन्दसिंह जख़्मी न थे, मगर तारासिंह बहुत ही जख़्मी और खून से तरबतर हो रहे थे। उनकी पोशाक खून से रँगी हुई मालूम पड़ती थी। यद्यपि उनके जख़्मोंपर पट्टी बँधी हुई थी, मगर सूरत-देखने से साफ़ मालूम पड़ता था कि उनके बदन से खून बहुत निकल गया है और इसी से वे सुस्त और कमजोर हो रहे हैं। कुमार की अवस्था देखकर मुझे क्रोध चढ़ आया मगर क्या कर सकती थी, क्योंकि हथकड़ी और बेड़ी ने मुझे भी लाचार कर रक्खा था। हाथ में नंगी तलवार लिये कई औरतें कुँअर आनन्दसिंह, तारासिंह और मुझको घेरे हुए थीं। यह जानने के लिए मेरा जी बेचैन हो रहा था कि जब हम लोग बेहोश करके यहाँ लाये गये तो तारासिंह को जख़्मी करने की आवश्यकता क्यों पड़ी। मायारानी ने मनोरमा की तरफ़ देखा और कुछ इशारा किया, मनोरमा तुरत मेरे पास आयी। उसके एक हाथ में कोई चीठी थी और दूसरे हाथ में कलम और दावात। मनोरमा ने वह चीठी मेरे आगे रख दी और उस पर हस्ताक्षर कर देने के लिए मुझे कहा, मैंने चीठी पढ़ी और क्रोध के साथ हस्ताक्षर करने से इनकार किया।

कमलिनी : उस चीठी में क्या लिखा हुआ था?

कमला : वह चीठी मेरी तरफ़ से राजा बीरेन्द्रसिंह के नाम लिखी गयी थी और उसमें यह लिखा हुआ थाः—

"आप चीठी देखते ही केवल एक ऐयार को लेकर इस आदमी के साथ बेखौफ चले आइए। कुँअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और किशोरी वगैरह इसी जगह क़ैद हैं। उनको छुड़ाने का पूरा-पूरा उद्योग मैं कर चुकी हूँ, केवल आपके आने की देर है। यदि आप तीन दिन के अन्दर यहाँ न पहुँचेंगे तो इन लोगों में से एक की भी जान न बचेगी।"

कमलिनी : अच्छा फिर क्या हुआ?

कमला : जब मैंने दस्तखत करने से इनकार किया तो मनोरमा बहुत बिगड़ी और बोली कि 'यदि तू हस्ताक्षर न करेगी तो तेरे सामने ही कुँअर आनन्दसिंह और तारासिंह का सिर काट लिया जायगा और उसके बाद तुझे भी सूली दे दी जायगी।' यह सुनकर मैं घबड़ा गयी और सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए, इतने ही में तारासिंह ने मुझे पुकारकर कहा, "कमला उस चीठी में जो कुछ लिखा है, मैं अन्दाज़ से कुछ-कुछ समझ गया, ख़बरदार इन लोगों के धमकाने में न आइयो और चाहे जो हो उस चीठी पर दस्तखत न कीजियो।" तारासिंह की बात सुनकर मायारानी की तो केवल भृकुटी ही चढ़कर रह गयी परन्तु मनोरमा बहुत ही उछली-कूदी और बकझक करने लगी। उसने मायारानी की तरफ़ देखकर कहा, "कम्बख्त तारासिंह को अवश्य सूली देनी चाहिए, उसने यहाँ का रास्ता भी देख लिया है, इसलिए उसका मारना आवश्यक हो गया है और इस नालायक कमला को सरकार मेरे हवाले करें, मैं इसे अपने घर ले जाऊँगी।" मायारानी ने इशारे से मनोरमा की बात मंजूर की। मनोरमा ने एक चोबदार औरत की तरफ़ देखकर कहा, "कमला को ले जाकर क़ैद में रक्खो। चार-पाँच दिन बाद काशीजी में हमारे घर पर भेजवा देना, क्योंकि इस समय मुझे एक ज़रूरी काम के लिए जाना है, जहाँ से तीन-चार दिन के अन्दर शायद न लौट सकूँगी।" हुक्म के साथ ही मुझ पर पुनः चादर डाल दी गयी, जिसकी तेज़ महक ने मुझको बेहोश कर दिया और फिर जब मैं होश में आयी अपने को एक अँधेरी कोठरी में क़ैद पाया। कई दिन तक उसी कोठरी में क़ैद रही और इस बीच में जो कुछ रंज और तकलीफ उठानी पड़ी, उसका कहना व्यर्थ है। आख़िर एक दिन भोजन में मुझे बेहोशी की दवा दी गयी और बेहोश होने के बाद जब मैं होश में आयी तो अपने को आपके कब्जे में पाया। अब न मालूम कुँअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, किशोरी और उनके ऐयार लोगों पर क्या मुसीबत आयी और वे लोग किस अवस्था में पड़े हुए हैं।

यहाँ तक कहकर कमला चुप हो गयी, मगर उसकी आँखों से आँसू की बूँदे बराबर जारी थीं। कमलिनी भी बड़े ग़ौर और अफसोस के साथ उसकी बातें सुनती जाती थी और जब वह चुप हो गयी तो बोली—

कमलिनी : कमला सब्र कर, घबड़ा मत, देख मैं उन लोगों को कैसा छकाती हूँ। उन लोगों की क्या मजाल जो मेरे हाथ से बचकर निकल जाँय। तिलिस्मी मकान के अन्दर जब कुँअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह हँसते-हँसते कूद गये थे, तो उन लोगों के पहिले मैंने अपने कई आदमी उस मकान के अन्दर कुदाए थे, जिसका हाल थोड़ी देर हुई, मैं तुझसे कह चुकी हूँ। मैंने उन आदमियों को बेसबब दुश्मनों के हाथ में नहीं फँसाया, कुछ समझ-बूझ के ही ऐसा किया था। वे लोग साधारण मनुष्य न थे, आशा है कि थोड़े दिन में तू सुन लेगी कि उन लोगों ने क्या-क्या कार्रवाई की।

कमला : आज आपके मिलने से और बहुत-सी बातें सुनकर मेरा जी ठिकाने हुआ। आप सरीखा मददगार पाकर मैं भी अपने जी का हौसला निकाला चाहती हूँ और...

कमलिनी : नहीं नहीं, इस समय तू और कुछ मत सोच और सीधे रोहतासगढ़ चली जा। तेरे वहाँ जाने से दो काम निकलेंगे, एक तो तेरी जुबानी सब हाल सुनकर राजा बीरेन्द्रसिंह को बहुत कुछ ढाढस होगी, दूरे तू इस बात से होशियार रहियो और सभों को भी होशियार कर दीजियो कि वह तिलिस्मी दारोगा अर्थात् बूढ़ा साधू धोखा देकर कहीं निकल न जाय। इसमें कोई शक नहीं कि मायारानी ने उसे छुड़ाने के लिए कई आदमी रोहतासगढ़ भेजे होंगे।

कमला : बहुत अच्छा, मैं रोहतासगढ़ जाती हूँ और उस बुड्ढे कम्बख्त से होशियार रहूँगी, मगर एक भेद बहुत दिनों से मेरे दिल में खटक रहा है, यदि आप चाहें तो मेरे दिल से वह खुटका निकाल सकती हैं।

कमलिनी : वह क्या है!

कमला : (भूतनाथ की तरफ़ इशारा करके) यह कौन हैं। इनका असल भेद मुझको बता दीजिए।

कमलिनी : (हँसकर) इसमें सन्देह नहीं कि भूतनाथ के बारे में तरह-तरह की बातें तू सोचती होगी, परन्तु लाचार हूँ कि इस समय इनका असल भेद तुझसे नहीं कह सकती, थोड़े ही दिनों में इनका हाल तुझे बल्कि सभों को मालूम हो जायगा। हाँ, इतना अवश्य कहूँगी कि तुझे अपने चाचा शेरसिंह की तरह इनसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं, ये तुझे किसी तरह की तकलीफ न देंगे, बल्कि जहाँ तक हो सकेगा मदद करेंगे।

कमलिनी से अपने सवाल का पूरा-पूरा जवाब न पाकर कमला चुप हो रही और कमलिनी की आज्ञानुसार उसको उसी समय रोहतासगढ़ चले जाना पड़ा।

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