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चन्द्रकान्ता सन्तति - 3

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8401
आईएसबीएन :978-1-61301-028-0

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चन्द्रकान्ता सन्तति 3 पुस्तक का ई-संस्करण...

तीसरा बयान

 

कुँअर आनन्दसिंह के जाने के बाद इन्द्रजीतसिंह देर तक उनके आने की राह देखते रहे। जैसे-जैसे देर होती थी, जी बेचैन हो जाता था। यहाँ तक कि तमाम रात बीत गयी, सवेरा हो गया, और पूरब तरफ़ से सूर्य भगवान दर्शन देकर धीरे-धीरे आसमान पर चढ़ने लगे। जब पहर-भर से ज्यादे दिन चढ़ गया, तब इन्द्रजीतसिंह बहुत ही बेताब हुए और उन्हें निश्चय हो गया कि आनन्दसिंह जरूर किसी आफत में फँस गये!

कुँअर इन्द्रजीतसिंह सोच ही रहे थे कि स्वयं चलके आनन्दसिंह का पता लगाना चाहिए कि इतने ही में लाडिली को साथ लिये हुए कमलिनी वहाँ आ पहुँची। इन्हें देख कुमार की बेचैनी कुछ कम हुई और आशा की सूरत दिखायी देने लगी। कमलिनी ने जब कुमार को उस जगह अकेले और उदास देखा तो उसे ताज्जुब हुआ, मगर वह बुद्धिमान औरत तुरन्त ही समझ गयी कि इनके छोटे भाई आनन्दसिंह इनके साथ नहीं दिखायी देते, जरूर वे किसी मुसीबत में पड़ गये हैं, और ऐसा होना कोई ताज्जुब की बात नहीं है, क्योंकि यह तिलिस्म का मौका है और यहाँ का रहने वाला थोड़ी भूल में तकलीफ उठा सकता है।

कमलिनी ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह से उदासी का कारण और कुँअर आनन्दसिंह के न दिखने का सबब पूछा, जिसके जवाब में इन्द्रजीतसिंह ने जो कुछ हुआ था, बयान करके कहा कि, ‘आनन्द को गये हुए नौ घण्टे के लगभग हो गये’।

इस समय कोई लाडिली की सूरत गौर से देखता तो बेशक समझ जाता कि आनन्दसिंह का हाल सुनकर उसको हद्द से ज्यादे रंज हुआ है। ताज्जुब नहीं कि कमलिनी और इन्द्रजीतसिंह भी उसके दिल की हालत जान गये हों, क्योंकि वह अपनी आँखों को डबडबाने और आँसू के निकलने को बड़े परिश्रमपूर्वक रोक रही थी। यद्यपि उसे निश्चय था कि दोनों कुमार इस तिलिस्म को अवश्य तोड़ेंगे, तथापि उसका दिल दुःख गया था। कौन ऐसा है, जो अपने प्यारे पर आयी हुई मुसीबत का हाल सुनकर बेचैन न हो?

कमलिनी : (सब बातें सुनकर) किसी का आना ताज्जुब नहीं है, हाँ किसी औरत का आना बेशक ताज्जुब है, क्योंकि (इन्द्रजीतसिंह की तरफ़ इशारा करके) आप कहते हैं कि एक औरत के रोने की आवाज़ आयी थी।

लाडिली : ठीक है, जहाँ तक मैं समझती हूँ कि सिवाय तुम्हारे, मायारानी के और मेरे, किसी चौथी औरत को यहाँ आने का रास्ता मालूम नहीं है, हाँ, मर्दों में कई जरूर ऐसे हैं, जो यहाँ आ सकते हैं।

कमलिनी : मगर इस देवमन्दिर के अन्दर हम लोगों के अतिरिक्त राजा गोपालसिंह के सिवाय और कोई भी नहीं आ सकता। खैर, इन बातों को जाने दो, अब यहाँ से चलकर कुँअर साहब का पता लगाना बहुत ज़रूरी है। यद्यपि यहाँ किसी दुश्मन का आना बहुत कठिन है, तथापि खुटका लगा ही रहता है। जब दोनों कुमारों को मायारानी के कैदखाने से छुड़ाकर हम लोग सुरंग-ही-सुरंग तिलिस्मी बाग से बाहर हो रहे थे तो उस हरामजादे के आ पहुँचने की कौन उम्मीद थी, जिसने कुमार को जख्मी किया था! इसी तरह कौन ठिकाना यहाँ भी कोई दुष्ट आ पहुँचा हो।

आख़िर कुँअर आनन्दसिंह को खोजने के लिए तीनों वहाँ से रवाना हुए और देवमन्दिर के नीचे उतर उसी तरफ़ चले जिधर आनन्दसिंह गये थे। जब एक मकान के दरवाजे़ पर पहुँचे तो कमलिनी रुकी और बड़े गौर से उस दरवाजे़ को जो बन्द था, देखने लगी, इसके बाद फिर आगे बढ़ी, दूसरे मकान के दरवाजे़ पर पहुँचकर उसे भी गौर से देखा और सिर हिलाती हुई फिर आगे बढ़ी। इसी तरह कुँअर इन्द्रजीतसिंह और लाडिली को साथ लिये हुए कमलिनी सात-आठ मकानों के दरवाजे़ पर गयी। हर-एक मकान का दरवाज़ा बन्द था और हरएक दरवाजे़ को कमलिनी ने गौर से देखा, लेकिन कुछ काम न चला, मगर जब उस मकान के दरवाजे़ पर पहुँची, जिसमें कुँअर आनन्दसिंह गये थे रुककर मामूली तौर पर उसके दरवाजो को भी बड़े गौर से देखने लगी और थोड़ी ही देर में बोल उठी, "बेशक, कुँअर आनन्दसिंह इसी मकान के अन्दर हैं। (उँगली से दरवाजे़ के ऊपरवाले चौखटे की तरफ़ इशारा करके) देखिए, वह स्याह पत्थर की तीन खूटियाँ नीचे की तरफ़ झुक गयी  हैं।"

कुमार : इन खूटियों से क्या मतलब है?

कमलिनी : इस मकान के अन्दर जितने आदमी जाँयगे, उतनी खूँटियाँ नीचे की तरफ़ झुक जाँयगी।

कुमार : (ऊपरवाले चौखटे के तरफ़ इशारा करके) ऊपर कुल बारह खूँटियाँ हैं, मान लिया जाय कि बारहों खूँटियाँ उस समय झुक जायँगी, जब बारह आदमी इस मकान के अन्दर जा पहुँचेंगे, मगर जब बारह से ज्यादे आदमी इस मकान के अन्दर जायँगे, तब क्या होगा?

कमलिनी : बारह से ज्यादे आदमी इस मकान के अन्दर जा ही नहीं सकते! तिलिस्मी बातों में किसी की जबर्दस्ती नहीं चल सकती।

कुमार : ठीक है, मगर तुमने यह कैसे जाना कि आनन्दसिंह इसी मकान के अन्दर हैं?

कमलिनी : सिर्फ अन्दाज से समझती हूँ कि आनन्दसिंह इसी मकान के अन्दर होंगे, क्योंकि इस बाग में एक आदमी का आना आपने बयान किया था, इसके बाद कहा था कि किसी औरत के रोने की आवाज़ आयी थी, दो तो हो चुके, तीसरे आनन्दसिंह भी पीछा किये हुए इधर ही आये हैं, और इस तरह इस मकान के अन्दर तीन आदमियों का होना साबित होता है। इन्हीं सब बातों से मुझे विश्वास होता है कि वे ही तीन आदमी इस मकान के अन्दर हैं।

कुमार : तुम्हारा सोचना बहुत ठीक है मगर जहाँ तक जल्द हो सके, इस बात का निश्चय करके आनन्द को छुड़ाना चाहिए, न मालूम वह किस आफ़त में फँस गया है।

कमलिनी : देखिए मैं बहुत जल्द इसका बन्दोबस्त करती हूँ।

इसके बाद कमलिनी ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह से कहा, "इस मकान का दरवाज़ा खोलना तो ज़रा मुश्किल है, मगर चौखट के ऊपर जो बारह खूँटियाँ हैं, उनमें से तीन नीचे की तरफ़ झुक गयी हैं, और बाकी नौ ऊपर की तरफ़ उठी हुई हैं, उनमें से किसी एक को आप उछलकर थाम लीजिए और जोर करके नीचे की तरफ़ झुकाइए, देखिए क्या होता है।" कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने वैसा ही किया। उछलकर एक खूँटी को थाम लिया और झटका देकर उसे नीचे की तरफ़ झुकाया तथा जब वह नीचे झुक गयी तो उसे छोड़कर अलग हो गये। यकायक मकान के अन्दर से इस तरह की आवाज़ आने लगी, जैसे बड़े-बड़े कल-पुर्जे और चरखे घूमते हों या कई गाड़ियाँ मकान के अन्दर दौड़ रही हों। तीनों आदमी दरवाजे़ से हटकर खड़े हो गये, और देखने लगे कि अब क्या होता है।

थोड़ी ही देर बाद मकान की छत पर से एक आवाज़ आयी—"इधर देखो," जिसे सुनते ही तीनों आदमी चौंके और ऊपर की तरफ़ देखने लगे। एक आदमी जो अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए था, छत पर से नीचे की तरफ़ झाँकता हुआ दिखायी दिया। उसने कमलिनी, लाडिली और कुँअर इन्द्रजीतसिंह को अपनी तरफ़ देखते-देख एक लपेटा हुआ कागज नीचे गिरा दिया, जिसे कमलिनी ने झट से उठा लिया और बढ़कर कुँअर इन्द्रजीतसिंह से कहा, "बस बस जिस तरह हो सके आप इस खूँटी को जिसे झुकाया है, ज्यों-का-त्यों सीधा कर दीजिए।"

इन्द्रजीत : आखिर इसका क्या सबब है? इस पुर्जे में क्या लिखा हुआ है?

कमलिनी : पहिले आप उसे कीजिए जो मैं कह चुकी हूँ, देर करने में हमारा ही हर्ज़ होगा।

लाचार कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने वैसा ही किया। उछलकर नीचे की तरफ़ से एक ऐसा झटका दिया कि वह खूँटी सीधी हो गयी, और इसके साथ ही मकान के अन्दर सन्नाटा छा गया, अर्थात् वह जोर-शोर की आवाज़ जो खूँटी झुकने के साथ आने लगी थी, एकदम बन्द हो गयी। इसके बाद कमलिनी ने वह कागज़ का पुरजा, जो मकान की छत पर से गिराया गया था, कुमार के हाथ में दे दिया। कुमार ने उसे देखा, यह लिखा हुआ था:—

1           2              3               4              5             6

एच        मेमचे        काटनो         केअरियां         डेह       नेपो

7            8            9             10             11            12

किमटू      च्वाला      मेम           कुम          नीपो        इत्ती

13    लव

14 कचीचा

15    टेप

इस चीठी का मतलब तो कुमार तुरन्त समझ गये, क्योंकि वह ऐयारी भाषा में लिखी हुई थी और कुमार ऐयारी भाषा बखूबी जानते थे, मगर यह उनकी समझ में न आया कि चीठी लिखने वाला कौन है क्येंकि उसने अपना नाम ‘टेप’ लिखा था। कुमार ने कमलिनी से ‘टेप’ का अर्थ पूछा, जिसके जवाब में उसने कहा, "थोड़ी देर सब्र कीजिए, आप-से-आप उस आदमी का पता लग जायगा।" कुमार चुप हो रहे और दरवाज़े की तरफ़ देखने लगे। हमारे पाठक महाशय ऐयारी भाषा शायद न जानते होंगे। अस्तु, उन्हें समझाने के लिए उस चीठी का अर्थ हम लिखे देते हैं—

1       2         3                 4                5              6

यहाँ      मैं हूँ     डरो मत     कुमार को     तकलीफ      न होगी

7       8         9           10             11               12

थोड़ी        देर      सब्र करो      मैं         स्वयं नीचे        आता हूँ

13    वही

14      दिलजला

15     टेप

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