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चन्द्रकान्ता सन्तति - 6

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :237
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8404
आईएसबीएन :978-1-61301-031-0

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चन्द्रकान्ता सन्तति 6 पुस्तक का ईपुस्तक संस्करण...

छठवाँ बयान


नानक जब चुनारगढ़ की सरहद पर पहुँचा, तब सोचने लगा कि दुश्मनों से क्योंकर बदला लेना चाहिए। वह पाँच आदमियों को अपना शिकार समझे हुए था और उन्हीं पाँचों की जान लेने का विचार करता था।

एक तो राजा गोपालसिंह, दूसरे इन्द्रदेव, तीसरा भूतनाथ, चौथा हरनामसिंह और पाँचवीं शान्ता। बस ये ही पाँच, उसकी आँखों में खटक रहे थे, मगर इनमें से दो अर्थात् राजा गोपालसिंह और इन्द्रदेव के पास फटकने की तो उसकी हिम्मत नहीं पड़ती थी, और वह समझता था कि ये दोनों तिलिस्मी आदमी हैं, इनके काम जादू की तरह हुआ करते हैं, और इनमें लोगों के दिल की बात समझ जाने की कुदरत है, मगर बाकी तीनों को वह निरा शिकार ही समझता था और विश्वास करता था कि इन तीनों को किसी-न-किसी तरह फँसा लेंगे। अस्तु, चुनारगढ़ की सरहद में आ पहुँचने के बाद उसने गोपालसिंह और इन्द्रदेव का खयाल तो छोड़ दिया और भूतनाथ की स्त्री और उसके लड़के हरनामसिंह की जान लेने के फेर में पड़ा। साथ ही इसके यह भी समझ लेना चाहिए कि नानक यहाँ अकेला नहीं आया था, बल्कि समय पर मदद पहुँचाने के लायक सात-आठ आदमी और भी अपने साथ लाया था, जिनमें से चार-पाँच तो उसके शागिर्द ही थे।

दोनों कुमारों की शादी में जिस तरह दूर-दूर के मेहमान और तमाशबीन लोग आये थे, उसी तरह साधु-महात्मा तथा साधु-वेषधारी पाखण्डी लोग भी बहुत से इकट्ठे हो गये थे, जिन्हें सरकार की तरफ से खाने-पीने को भरपूर मिलता था और इस लालच में पड़े हुए उन लोगों ने अभी तक चुनारगढ़ का पीछा नहीं छोड़ा था, तथा तिलिस्मी मकान के चारों तरफ तथा आस-पास के जंगलों में डेरा डाले पड़े हुए थे। नानक और उसके साथी लोग भी साधुओं ही के वेष में वहाँ पहुँचे और उसी मण्डली में मिल जुलकर रहने लगे।

नानक को यह बात मालूम थी कि भूतनाथ का डेरा तिलिस्मी इमारत के अन्दर है और वहाँ बड़ी कड़ी हिफाजत के साथ रहता है। इसलिए वह कभी-कभी यह सोचता था कि मेरा काम सहज ही में नहीं हो जायगा, बल्कि इसके लिए बड़ी भारी मेहनत करनी पड़ेगी। मगर वहाँ पहुँचने के कुछ ही दिन बाद (जब शादी-ब्याह से सबकोई निश्चिन्त होकर तिलिस्मी इमारत में आ गये) उसने सुना और देखा कि महाराज की आज्ञानुसार भूतनाथ ने स्त्री और लड़के सहित तिलिस्मी इमारत के बाहर एक बहुत बड़े और खूबसूरत खेमे में डेरा डाला है, अतएव वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसे विश्वास हो गया कि मैं अपना काम शीघ्र और सुभीते के साथ निकाल लूँगा।

नानक ने और भी दो-तीन रोज तक इन्तजार किया और इस बीच में यह भी जान लिया कि भूतनाथ के खेमे की कुछ विशेष हिफाजत नहीं होती और पहरे वगैरह का इन्तजाम भी साधारण-सा ही है तथा उसके शागिर्द लोग भी आजकल मौजूद नहीं हैं।

रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी थी। यद्यपि चन्द्रदेव के दर्शन नहीं होते थे, मगर आसमान साफ होने के कारण टुटपूँजिया तारागण अपनी नामवरी पैदा करने का उद्योग कर रहे और नानक जैसे बुद्धिमान लोगों से पूछ रहे थे कि यदि हम लोग इकट्ठे हो जाँय तो क्या चन्द्रमा से चौगुनी और पाँचगुनी चमक-दमक नहीं दिखा सकते तथा जवाब में यह भी सुना चाहते थे कि निःसन्देह’! ऐसे समय एक आदमी स्याह लबादा ओड़े रहने पर भी लोगों की निगाहों से अपने को बचाता हुआ भूतनाथ के खेमे की तरफ जा रहा है। पाठक समझ ही गये होंगे कि यह नानक है। अस्तु, जब वह खेमे के पास पहुँचा तो अपने मतलब का सन्नाटा देख खड़ा हो गया और किसी के आने का इन्तजार करने लगा। थोड़ी ही देर में एक दूसरा आदमी भी उसके पास आया और दो-चार सायत तक बातें करके चला गया। उस समय नानक जमीन पर लेट गया और धीरे-धीरे खिसकता हुआ खेमे की कनात के पास जा पहुँचा, तब उसे धीरे-से उठाकर अन्दर चला गया। यहाँ उसने अपने को गुलामगर्दिश में पाया मगर यहाँ बिल्कुल ही अन्धकार था, हाँ, यह जरूर मालूम होता था कि आगेवाली कनात के अन्दर अर्थात् खेमे में कुछ रोशनी हो रही है। नानक फिर वहाँ लेट गया और पहिले की तरह यह दूसरी कनात भी उठाकर खेमे के अन्दर जाने का विचार कर ही रहा था कि दाहिनी तरफ से कुछ खड़खड़ाहट की आवाज मालूम पड़ी। वह चौंका और उसी अँधेरे में तीन-चार कदम बायीं तरफ हटकर पुनः कोई आवाज सुनने और उसे जाँचने की नीयत से ठहर गया। जब थोड़ी देर तक किसी तरह की आहट नहीं मालूम हुई तो पहिले की तरह जमीन पर लेट गया और कनात उठा अन्दर जाया ही चाहता था कि दाहिनी तरफ फिर किसी के पैर पटक पटककर चलने की आहट मालूम हुई। वह खड़ा हो गया और पुनः चार-पाँच कदम पीछे की तरफ (बायीं तरफ) हट गया, मगर इसके बाद किसी तरह की आहट मालूम न हुई। कुछ देर तक इन्तजार करने के बाद वह पुनः जमीन पर लेट गया और कनात के अन्दर सिर डालकर देखने लगा। कोने की तरफ एक मामूली शमादान जल रहा था, जिसकी मद्धिम रोशनी में दो चारपाई बिछी हुई दिखायी पड़ी। कुछ देर तक गौर करने पर नानक को निश्चय हो गया कि इन दोनों चारपाईयों पर भूतनाथ तथा उसकी स्त्री शान्ता सोई हुई है। परन्तु उनका लड़का हरनामसिंह खेमे के अन्दर दिखायी न दिया और उसके लिए नानक को कुछ चिन्ता हुई, तथापि वह साहस करके खेमे के अन्दर चला ही गया।

डरता-काँपता नानक धीरे-धीरे चारपाई के पास पहुँच गया, चाहा कि खंजर से इन दोनों का गला काट डाले, मगर फिर यह सोचने लगा कि पहिले किस पर वार करूँ, भूतनाथ पर या शान्ता पर? वे दोनों सिर से पैर तक चादर ताने पड़े हुए थे, इससे यह मालूम करने की जरूरत थी कि किस चारपाई पर कौन सो रहा है, साथ ही नानक इस बात पर भी गौर कर रहा था कि रोशनी बुझा दी जाय या नहीं। यद्यपि वह वार करने के लिए खंजर हाथ में ले चुका था, मगर उसकी दिली कमजोरी ने उसका पीछा नहीं छोड़ा था और उसका हाथ काँप रहा था।

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