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चन्द्रकान्ता सन्तति - 6

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :237
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8404
आईएसबीएन :978-1-61301-031-0

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चन्द्रकान्ता सन्तति 6 पुस्तक का ईपुस्तक संस्करण...

पाँचवाँ बयान


एक सुन्दर पाँवोंवाली मसहरी पर महाराज सुरेन्द्रसिंह लेटे हुए हैं। ऐयारों के सिरताज जीतसिंह, उसी मसहरी के पास फर्श पर बैठे तथा दाहिने हाथ से मसहरी पर ढासना लगाये धीरे-धीरे बातें कर रहे हैं।

महाराज : इन्द्रदेव का स्थान बहुत ही सुन्दर और रमणीक है, यहाँ से जाने का जी नहीं चाहता।

जीत : ठीक है, इस स्थान की तरह इन्द्रदेव का बर्ताव भी चित्त को प्रसन्न करता है, परन्तु मेरी राय यही है कि जहाँ तक जल्द हो यहाँ से लौट चलना चहिए।

महाराज : हम भी यही सोचते हैं। इन लोगों की जीवनी और आश्चर्य-भरी कहानी तो वर्षों तक सुनते ही रहेंगे, परन्तु इन्द्रजीत और आनन्द की शादी जहाँ तक जल्द हो सके कर देना चाहिए, जिसमें और किसी तरह के विघ्न पड़ने का फिर डर न रहे।

जीत : जरूर ऐसा होना चाहिए, इसीलिए मैं चाहता हूँ कि यहाँ से जल्द चलिए। भरथसिंह वगैरह की कहानी वहाँ ही सुन लेंगे, या शादी के बाद और लोगों को भी यहाँ ले आवेंगे, जिसमें वे लोग भी तिलिस्म और इस स्थान का आनन्द ले लें।

महाराज : अच्छी बात है, खैर, यह बताओ कि कमलिनी और लाडली के विषय में भी तुमने कुछ सोचा।

जीत : उन दोनों के लिए जोकुछ आप विचार रहे हैं वही मेरी भी राय है, उनकी भी शादी दोनों कुमारों के साथ कर देना चाहिए।

महाराज : है न यही राय?

जीत : जी हाँ, मगर किशोरी और कामिनी की शादी के बाद क्योंकि किशोरी एक राजा की लड़की है, इसलिए उसी की औलाद को गद्दी का हकदार होना चाहिए, यदि कमलिनी के साथ पहिले शादी हो जायेगी तो उसी का लड़का गद्दी का मालिक समझा जायगा, इसी से मैं चाहता हूँ कि पटरानी किशोरी ही बनायी जाय।

महाराज : यह बात तो ठीक है, अस्तु, ऐसा ही होगा और साथ ही इसके कमला की शादी भैरो के साथ और इन्दिरा की तारा के साथ कर दी जायगी।  

जीत : जो मर्जी।

महाराज : अच्छा तो अब यही निश्चय रहा कि दलीपशाह और भरथसिंह की बीती यहाँ चलने के बाद घर ही पर सुनना चाहिए।

जीत : जी हाँ, सच तो यों है कि ऐसा करना ही पड़ेगा, क्योंकि इन लोगों की कहानी दारोगा और जैयपाल इत्यादि कैदियों से घना सम्बन्ध रखती है, बल्कि यों कहना चाहिए कि इन्हीं लोगो के इजहार पर उन लोगों के मुकदमें का दारोमदार (हेस-नेस) है और यही लोग उन कैदियों को लाजवाब करेंगे।    

महाराज : निःसन्देह ऐसा ही है, इसके अतिरिक्त उन कैदियों ने हम लोगों तथा हमारे सहायकों को बड़ा दुःख दिया है और दोनों कुमारों की शादी में भी बड़े-बड़े विघ्न डाले हैं, अतएव उन कमबख्तों को कुमारों की शादी का जल्सा भी दिखा देना चाहिए, जिसमें ये लोग भी अपनी आँखों से देख लें कि जिन बातों को वे बिगाड़ा चाहते थे, वे आज कैसी खूबी और खुशी के साथ हो रही हैं, इसके बाद उन लोगों को सजा देना चाहिए। मगर अफसोस तो यह है कि मायारानी और माधवी जमानिया ही में मार डाली गयीं, नहीं तो वे दोनों भी देख लेतीं कि...

जीत : खैर, उनकी किस्मत में यही बदा था।

महाराज : अच्छा तो एक बात का और खयाल करना चाहिए।

जीत : आज्ञा?

महाराज : भूतनाथ वगैरह को मौका देना चाहिए कि वे अपने सम्बन्धियों से बखूबी मिल-जुलकर अपने दिल का खुटका निकाल लें, क्योंकि हम लोग तो उनका हाल वहाँ चलकर सुनेंगे।

जीत : बहुत खूब।

इतना कहकर जीतसिंह उठ खड़े हुए और कमरे से बाहर चले गये।

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