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चन्द्रकान्ता सन्तति - 6

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :237
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8404
आईएसबीएन :978-1-61301-031-0

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चन्द्रकान्ता सन्तति 6 पुस्तक का ईपुस्तक संस्करण...

तीसरा बयान


इस समय रात बहुत कम बाकी थी और सुबह की सुफेदी आसमान पर फैला ही चाहती थी। और लोग तो अपने-अपने ठिकाने चले गये और दोनों नकाबपोशों ने भी अपने घर का रास्ता लिया, मगर भूतनाथ सीधे देवीसिंह के डेरे पर चला गया। दरवाजे ही पर पहरेवालों की जुबानी मालूम हुआ कि वे सोये हैं, परन्तु देवीसिंह को न मालूम किस तरह भूतनाथ के आने की आहट मिल गयी (शायद जागते हों) अस्तु, वे तुरन्त बाहर निकल आये और भूतनाथ का हाथ पकड़के कमरे के अन्दर ले गये। इस समय यहाँ केवल एक शमादान की मद्धिम रोशनी हो रही थी, दोनों आदमी फर्श पर बैठ गये और यों बातचीत होने लगी–

देवी : कहो, इस समय तुम्हारा आना कैसे हुआ? या कोई नयी बात हुई?

भूतनाथ : बेशक नयी बात हुई और वह इतनी खुशी की हुई है, जिसके योग्य मैं नहीं था।

देवीः (ताज्जुब से) वह क्या?

भूतनाथ : आज महाराज ने मुझे अपना ऐयार बना लिया और इस इज्जत के लिए मुझे यह खंजर दिया है।

इतना कहकर भूतनाथ ने महाराज का दिया हुआ खंजर और जीतसिंह तथा गोपालसिंह का दिया हुआ बटुआ और तमंचा देवीसिंह को दिखाया और कहा, ‘‘इसी बात की मुबारकबाद देने के लिए मैं आया हूँ कि तुम्हारा एक नालायक दोस्त, इस दरजे को पहुँच गया।’’

देवी : (प्रसन्न होकर और भूतनाथ को गले से लगाकर) बेशक, यह बड़ी खुशी की बात है, ऐसी अवस्था में तुम्हें अपने पुराने मालिक रणधीरसिंह को भी सलाम करने के लिए जाना चाहिए।

भूतनाथ : जरूर जाऊँगा।

देवी : यह कार्रवाई कब हुई?

अभी : अभी थोड़ी देर ही हुई है। मैं इस समय महाराज के पास से ही आ रहा हूँ।

इतना कहकर भूतनाथ ने आज रात का बिल्कुल हाल देवीसिंह से बयान किया। इसके बाद भूतनाथ और देवीसिंह में देर तक बातचीत होती रही और जब दिन अच्छी तरह निकल आया, तब दोनों ऐयार वहाँ से उठे और स्नान-सन्ध्या की फिक्र में लगे।

जरूरी कामों से निश्चिन्ती पा और स्नान-पूजा से निवृत्त होकर भूतनाथ अपने पुराने मालिक रणधीरसिंह के पास चला गया। बेशक, उसके दिल में इस बात का खुटका लगा हुआ था कि उसका पुराना मालिक उसे देखकर प्रसन्न न होगा, बल्कि सामना होने पर भी कुछ देर तक उसके दिल में इस बात का गुमान बना रहा, मगर जिस समय भूतनाथ ने अपना खुलासा हाल बयान किया उस समय रणधीरसिंह को बहुत मेहरबांन और प्रसन्न पाया। रणधीरसिंह ने उसकी खिलअत और इनाम भी दिया और बहुत देर तक उससे तरह-तरह की बातें करते रहे।

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