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चन्द्रकान्ता सन्तति - 6

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :237
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8404
आईएसबीएन :978-1-61301-031-0

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चन्द्रकान्ता सन्तति 6 पुस्तक का ईपुस्तक संस्करण...

पाँचवाँ बयान


कुँअर इन्द्रजीतसिंह इस छोटे-से दरबार से उठकर महल में गये और किशोरी के कमरे में पहुँचे। इस समय कमलिनी भी उसी कमरे में मौजूद किशोरी से हँसी-खुशी की बातें कर रही थी। कुमार को देखकर दोनों उठ खड़ी हुईं और जब हँसते हुए कुमार बैठ गये, तो किशोरी भी उनके सामने बैठ गयी, मगर कमलिनी कमरे के बाहर की तरफ चल पड़ी। उस समय कुमार ने उसे रोका और कहा, ‘‘तुम कहाँ चलीं? बैठो बैठो, इतनी जल्दी क्या पड़ी है?’’

कमलिनी : (बैठती हुई) बहुत अच्छा बैठती हूँ, मगर क्या आज रात को सोना नहीं है?

कुमार : क्या यह बात मेरे आने के पहिले नहीं सूझी थी?

किशोरी : आपको देखके सोना याद आ गया।

किशोरी की बात ने दोनों को हँसा दिया और फिर कमलिनी ने कहा–

‘‘दलीपशाह के किस्से ने मेरे दिल पर ऐसा असर किया है कि कह नहीं सकती। देखना चाहिए दुष्टों को महाराज क्या सजा देते हैं? सच तो यों है कि उनके लिए कोई सजा है ही नहीं!’’

कुमार : तुम ठीक कहती हो, इस समय मैं महाराज के पास से ही चला आता हूँ, वहाँ एक छोटा-सा निज का दरबार लगा हुआ था और कैदियों ही के विषय में बातचीत हो रही थी, बल्कि यों कहना चाहिए कि उन बदमाशों का फैसला लिखा जा रहा था।

कमलिनी : (उत्कण्ठा से) हाँ! अच्छा बताइए तो सही दारोगा और जैपाल के लिए क्या सजा तजबीज की गयी है!

कुमार : उन्हें क्या सजा दी जायगी, इसका निश्चय गोपाल भाई करेंगे, क्योंकि महाराज ने इस समय यही हुक्म लिखा है कि दारोगा, जैपाल, शिखण्डी हरनाम, बिहारी, मनोरमा और नागर वगैरह जितने जमानिया और गोपाल भाई से सम्बन्ध रखनेवाले कैदी हैं, सब उनके हवाले किये जाँय, और वे जोकुछ मुनासिब समझें उन्हें सजा दें।

कमलिनी : चलिए यह भी अच्छा हुआ, क्योंकि मुझे इस बात का बहुत बड़ा खयाल बना हुआ था कि हमारे रहमदिल महाराज इन कैदियों के लिए कोई अच्छी सजा नहीं तजबीज कर सकेंगे, अगर वे लोग जीजाजी के सुपुर्द किये गये हैं तो उन्हें सजा भी वाजिब ही मिल जायगी।

कुमार : (हँसकर) अच्छा तुम ही बताओ कि अगर सजा देने के लिए सब कैदी तुम्हारे सुपुर्द किये जाते तो तुम उन्हें क्या सजा देतीं?

कमलिनी : मैं? (कुछ सोचकर) मैं पहिले तो इन सभों के हाथ-पैर कटवा डालती, फिर इनके जख्म आराम करवाकर बड़े-बड़े लोपे के पिंजड़ों में इन्हें बन्द करके और सदर चौमुहानी पर लटकाकर हुक्म देती कि जितने आदमी इस राह से जायें वे सब इनके मुँह पर थूककर तब आगे बढ़े।

कुमार : (मुस्कुराकर) सजा तो बहुत अच्छी सोची है, तो बस अपने जीजा साहब को समझा देना कि उन्हें ऐसी ही सजा दें।

कमलिनी : जरूर कहूँगी, बल्कि इस बात पर जोर दूँगी, यह बताइए कि नानक के लिए क्या हुक्म हुआ है?

कुमार : केवल इतना ही कि जन्म-भर के लिए कैदखाने भेज दिया जाय। बाकी के और कैदियों के लिए भी यही हुक्म हुआ होगा।

किशोरी : भीमसेन के लिए भी यही हुक्म हुआ होगा?

कुमार : नहीं उसके लिए दूसरा ही हुक्म हुआ।

किशोरी : वह क्या?

कुमार : वह तुम्हारा भाई है, इसलिए हुक्म हुआ कि तुमसे पूछकर, वह एकदम छोड़ दिया जाय, बल्कि शिवदत्तगढ़ की गद्दी पर बैठा दिया जाय।

किशोरी : जब उसे छोड़ देने का हुक्म हुआ, तो मुझसे पूछना कैसा!

कुमार : यही कि शायद तुम उसे छोड़ना न चाहो तो कैद ही में रक्खा जाय।

किशोरी : भला मैं इस बात को कब पसन्द करूँगी कि मेरा भाई जन्म-भर के लिए कैद रहे? मगर हाँ, इतना खयाल जरूर है कि कहीं वह छूटने के बाद पुनः आपसे दुश्मनी न करे।

कुमार : खैर, अगर पुनः बदमाशी करेगा तो देखा जायगा।

कमलिनी : (मुस्कुराती हुई) उसके विषय में तो चपला चाची से पूछना चाहिए, क्योंकि वह असल में उन्हीं का कैदी है। जब सूअर के शिकार में उन्होंने उसे गिरफ्तार किया था* तो तरह-तरह की कसमें खिलाकर छोड़ा था कि भविष्य में पुनः दुश्मनी पर कमर न बाँधेगा। (* देखिए  पहिला भाग, आठवाँ बयान।)

कुमार : बात तो ऐसी ही थी, मगर नहीं अब वह दुश्मनी का बर्ताव न करेगा। (किशोरी से) अगर कहो तो तुम्हारे पास उसे बुलवाऊँ? जोकुछ तुम्हें कहना-सुनना हो कह-सुन लो।

किशोरी : नहीं नहीं, मैं बाज आयी, मैं स्वप्न में भी उससे मिलना नहीं चाहती, जोकुछ उसकी किस्मत में बदा होगा, भोगेगा।

कुमार : आखिर उसे छोड़ने के विषय में तुमसे पूछा जायगा, तो क्या जवाब दोगी?

किशोरी : (कमलिनी की तरफ देखकर और मुस्कुराकर) बस कह दूँगी कि मेरे बदले चपला चाची से पूछ लिया जाय, क्योंकि वह उन्हीं का कैदी है।

कुमार : खैर, इन बातों को जाने दो। (कमलिनी से) जमानिया तिलिस्म के अन्दर मायारानी और माधवी के मरने का सबब मुझे अभी तक मालूम न हुआ। इसका पता न लगा कि वे दोनों खुद मर गयीं या गोपाल भाई ने उन्हें मार डाला और अगर भाई साहब ही ने उन्हें मार डाला तो ऐसा क्यों किया?

कमलिनी : इसका असल हाल तो मुझे भी मालूम नहीं है, मैंने दो दफे जीजाजी से इस विषय में पूछा था, तो यह कहकर रह गये कि फिर कभी बता देंगे।

किशोरी : बहिन लक्ष्मीदेवी को इसका हाल जरूर मालूम होगा।

कमलिनी : उन्हें बेशक, मालूम होगा, उन्होंने भुलावा देकर जरूर पूछ लिया होगा। इस समय तो वे अपने रंगमहल में होंगी, नहीं तो मैं जरूर बुला लाती।

कुमार : नहीं, आज तो अकेली ही अपने कमरे में बैठी होगी, क्योंकि इस समय गोपाल भाई इन्द्रदेव को साथ लेकर कहीं बाहर गये हैं, मुझसे कह गये हैं कि कल पहर दिन तक आवेंगे।

कमलिनी : तब तो कहिए मैं जाकर बुला लाऊँ?

कुमार : अच्छा जाओ।

कमलिनी उठकर चली गयी और थोड़ी ही देर में लक्ष्मीदेवी को साथ लिये हुए आ पहुँची।

लक्ष्मीदेवी : (मुस्कुराती हुई) कहिए क्या है, जो इतनी रात गये मेरी याद हुई है?

कुमार : मैंने सोचा कि आज आप अकेली उदास बैठी होंगी, अतएव मैं ही बुलाकर आपका दिल खुश करूँ।

लक्ष्मीदेवी : (हँसकर) क्या बात है! बेशक, आपकी मेहरबानी मुझ पर बहुत ज्यादे रहती है? (बैठकर) यह बताइये कि आप लोगों में किसी तरह की हुज्जत-तकरार तो नहीं हुई है, जो फैसला करने के लिए बुलाया है!

कुमार : ईश्वर न करे ऐसा हो। हाँ इतना जरूर है कि माधवी और मायारानी की मौत के विषय में तरह-तरह की बातें हो रही हैं, क्योंकि उन दोनों के मरने का असल हाल तो किसी को मालूम नहीं है और न भाई साहब ने पूछने पर किसी को बताया ही, इसलिए आपको तकलीफ दी है, क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि आपने किसी-न-किसी तरह यह हाल जरूर पूछ लिया होगा।

लक्ष्मीदेवी : (मुस्कुराकर) बेशक बात तो ऐसी ही है, मैंने जिद्द करके किसी-न-किसी तरह उनसे पूछ तो लिया, मगर सुनने से घृणा हो गयी। इसीलिए वे भी यह हाल किसी से खुलकर नहीं कहते और समझते हैं कि जो कोई सुनेगा उसी को घृणा होगी। इसी खयाल से आपको भी उन्होंने टाल दिया होगा।

कुमार: आखिर उसमें क्या बात है, कुछ भी तो बताओ!

लक्ष्मीदेवी : माधवी को तो उन्होंने नहीं मारा मगर मायारानी को जरूर मारा और इस बेइज्जती और तकलीफ से मारा कि सुनने से रोंगटे खड़े होते हैं। यद्यपि माधवी को उन्होंने कुछ भी नहीं कहा, मगर मायारानी की मौत की कार्रवाई वह देख न सकी, जो उसके सामने की जाती थी और उसी डर से वह बेहोश होकर मर गयी। इसमें कोई ऐसी अनूठी बात नहीं है, जो सुनने लायक हो। मुझे वह हाल बयान करते लज्जा और घृणा होती है, अस्तु...

कुमार : बस बस, मैं समझ गया, इससे ज्यादे सुनने की मुझे कोई जरूरत नहीं है, केवल इतना ही जानना था कि उनकी मौत के विषय में कोई अनूठी बात तो नहीं हुई।

लक्ष्मीदेवी : जी नहीं। अच्छा यह तो बताइए कि कल कैदी लोगों के विषय में क्या किया जायगा। दलीपशाह का किस्सा तो समाप्त हो गया और अब कोई ऐसी बात मालूम करने लायक भी नहीं रह गयी है।

कुमार : कैदियों का मामला तो कब का साफ हो गया, इस समय तो महाराज ने उनके विषय में हुक्म भी लिख दिया है, जो कल या परसों के दरबार में सभी को सुना भी दिया जायगा।

लक्ष्मीदेवी : किस-किस के लिए क्या हुक्म हुआ है?

इसके जवाब में कुमार ने फैसले का सब हाल बयान किया, जो थोड़ी देर पहिले किशोरी और कमलिनी को सुना चुके थे।

लक्ष्मीदेवी : बहुत अच्छा फैसला हुआ है।

किशोरी : (हँसकर) क्यों न कहोगी। तुम्हारे दुश्मन हमारे कब्जे में दे दिये गये, अब तो दिल खोलकर बदला लोगी।

लक्ष्मीदेवी : बेशक! (कुमार से) हाँ, यह तो बताइए कि भूतनाथ ने अपनी जीवनी लिखकर दे दी या नहीं?

कुमार : नहीं, आज देनेवाला है?

लक्ष्मीदेवी : और हम लोगों को उस तिलिस्मी मकान का तमाशा कब दिखाया जायगा, जिसमें लोग हँसते-हँसते कूद पड़ते हैं?

कुमार : परसों या कल उसका भेद भी सभों पर खुल जायगा।

लक्ष्मीदेवी : अच्छा यह तो बताइए कि आपके भाई साहब कहाँ गये हैं?

किशोरी : (हँसकर, ताने के ढंग पर) आखिर रहा न गया! पूछे बिना जी न माना।

इतने ही में बाहर की तरफ से आवाज आयी, ‘‘इसमें भी क्या किसी का इजारा है? ये अपनी चीज की खबरदारी करती हैं, किसी दूसरे की जमा नहीं छीनतीं! बहुत दिनों के बाद जो कोई चीज मिलती है, उसके लिए अकारण खो जाने का खटका बना ही रहता है, इसलिए अगर इन्होंने पूछा तो बुरा ही क्या किया!’’

इस आवाज के साथ-ही-साथ कमला पर सभों की निगाह पड़ी जो मुस्कुराती हुई कमरे के अन्दर आ रही थी।

किशोरी : (हँसती हुई) यह आयी लक्ष्मी बहिन की तरफदार बीबी नक्को, तुमको यहाँ किसने बुलाया था?

कमला:(मुस्कुराती हुई) बुलावेगा कौन? क्या मेरा रास्ता देखा हुआ नहीं है? यह तो बताओ कि तुम लोग इस आधी रात के समय इतना गुलशोर क्यों मचा रही हो!

किशोरी : (मसखरेपन के साथ हाथ जोड़कर) जी हम लोगों को इस बात की खबर न थी कि इस शोर-गुल में आपकी नींद उचट जायगी और फिर सादी चारपाई पर पड़े रहना मु्श्किल होगा।

कुमार : यह क्यों नहीं कहती कि अकेले जी नहीं लगता, लोगों को खोजती फिरती हूँ।

कमला : जी हाँ, आप ही को खोज रही थी।

कुमार : अच्छा तो फिर बैठ जाओ और समझ लो कि मैं मिल गया।

कमला : (बैठकर किशोरी से) आज तुम्हें कोई आराम न करने देगा। (कुमार से) कहिए दलीपशाह का किस्सा तो खतम हो गया, अब कैदियों को कब सजा दी जायगी?

कुमार : कैदियों का फैसला हो गया, उसमें किसी को ऐसी सजा नहीं दी गयी जो तुम्हारे पसन्द हो।

इतना कहकर कुमार ने पुनः सब हाल बयान किया।

कमला : तो मैं बहिन लक्ष्मीदेवी के साथ जरूर जमानिया जाऊँगी और दारोगा वगैरह की दुर्दशा अपनी आँखों से देखूँगी।

थोड़ी देर इसी तरह की हँसी-दिल्लगी होती रही, इसके बाद लक्ष्मीदेवी और कमला अपने-अपने ठिकाने पर चली गयीं।

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