अतिरिक्त >> दरिंदे दरिंदेहमीदुल्ला
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दरिंदे पुस्तक का ई-पुस्तक संस्करण
राहुल : मी लार्ड, उसके बाद उर्मिला उस तीन मंजिली इमारत के कमरे की
खिड़की से नीचे कूद गयी। मौत से पहले उसने पुलिस को बयान दिया कि एक
दुःशासन ने उसके चीरहरण की कोशिश की थी। लेकिन रवि इसके लिए बिल्कुल
जिम्मेदार नहीं है। मैंने ही रवि से ऐसा करने को कहा था। मैं उस लेबिल को
अपनी पेशानी से हटा देना चाहता था, जिसपर ‘नपुसंक’
लिखा था। इस खोखलेपन को छुपाने के लिए हमारे देश में नियोग की प्रथा रही
है। मैं नहीं जानता, मैं कहाँ ग़लत था ? क्यों गलत था ? उर्मिला
की हत्या का कौन जिम्मेदार है ? नैतिकता, अनैतिकता, नियोग-प्रथा या कोई
और? लोग अपनी सहूलियत से हर बात को अपने हित में एक नाम दे देते
हैं। आप अगर मेरी जगह होते, तो इस स्थिति में वही करते, जो मैंने किया,
क्योंकि सिर्फ चेहरे बदलते हैं, स्थितियाँ वही रहती हैं।
(प्रकाश खण्डित होकर राहुल के चेहरे पर केन्द्रित हो जाता है। पार्श्व से
‘आर्डर, आर्डर, आर्डर’ की आवाज़। प्रकाश लुप्त। दो
दृश्यों को जोड़ने वाला पार्श्व संगीत। पुनः प्रकाश आने पर मंच खाली।
लोमड़ी का तेज़ी से उछलते हुए प्रवेश। उसकी आवाज़ सुनकर शेर और दार्शनिक
का दूसरी ओर से प्रवेश।)
लोमड़ी : पचपन करोड़ ! छप्पन करोड़ ! साठ करोड़
! अस्सी करोड़ ! नब्बे करोड़ ! एक अरब
! दो अरब ! तीन अरब !
शेर : क्या हुआ लोमड़ी ? आँकड़ों की भाषा क्यों बोल रही हो ?
लोमड़ी : चार अरब ! पाँच अरब ! सात अरब ! आठ
अरब! दस अरब !
वि.दा. : लगता है इसने किसी सत्ताधारी का भाषण सुन लिया है। वह अपने बचाव
में आँकड़ों की भाषा बोलता है।
शेर : कोई फ़ेमली-प्लैनिंग का चक्कर तो नहीं है ?
लोमड़ी : बारह अरब ! तेरह अरब ! बीस अरब ! चालीस अरब
! अस्सी अरब !
वि.दा. : इस अरब का सम्बन्ध कहीं अरब-इसराईल-विवाद से तो नहीं है ?
लोमड़ी : शहर से आ रही हूँ मैं।
वि.दा. : मैंने कहा था न, इसने किसी सत्तधारी का भाषण सुना है।
शेर : क्या नसबन्दी सेण्टर से आयी हो ?
लोमड़ी : नहीं, मैं शहर से एक ख़बर सुनकर आयी हूँ।
शेर : गधों को पकड़कर बन्द किया जा रहा है, यही न ?
लोमड़ी : इससे भी बुरी ख़बर है।
शेर : इससे भी बुरी ?
लोमड़ी : बहुत जरूरी।
शेर : बहुत जरूरी ?
लोमड़ी : उसका हम पर सीधा प्रभाव पड़ने वाला है।
शेर : सीधा प्रभाव ! ऐसी क्या ख़बर है ?
लोमड़ी : अभी बताती हूँ। पहले यह बताओ वह कौन प्राणी है ?
शेर : वह, वह एक ऐसा प्राणी है, जिसे दो-पाँव वाले हममें से एक
मानते हैं।
वि.दा : मैं भी मानता हूँ। वे मुझे अर्द्धविक्षिप्त कहते हैं।
लोमड़ी :वह क्या होता है ?
शेर : जो मुझसे नहीं डरता।
वि.दा. : जो उनकी समझ से समझ में न आनेवाली बातें करें।
लोमड़ी : राजनीति की भाषा में यह हमारा मित्र राष्ट्र हुआ। तो हमें इससे
कुछ नहीं छुपाना ?
शेर : हाँ। तो ख़बर क्या है ?
लोमड़ी : आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। पचपन करोड़। छप्पन करोड़। साठ करोड़।
अस्सी करोड़। नब्बे करोड़। एक अरब। दो अरब। तीन अरब। चार अरब। पाँच अरब।
सात अऱब। आठ अरब। (लोमड़ी चौकी का चक्कर काटने लगती है।)
संसार के सारे जंगल तेज़ी से काटे जा रहे हैं। इतनी तेज़ी से कि कुछ दिनों
में जंगल का नामोनिशान नहीं रहेगा।
वि.दा. : जब शहर की मौत आती है, तो वह जंगल की तरफ़ भागता है।
लोमड़ी : कहते हैं आदमी के रहने के लिए जगह की कमी है सारे जंगल कट गये
तो, हम कहाँ रहेंगे ?
शेर : हम अपना अलग सूबा बनाएँगे। जानवरों का सूबा उसमें आदमी को रहने की
इजाजत नहीं होगी।
वि.दा. :(खँखारता है।)
शेर : हाँ, उसमें ऐसे आदमी रह सकेंगे, जिन्हें आदमी आदमी नहीं मानता।
वि.दा. : ऐसे लोगों का तादाद ज़्यादा है, जो जानवरों जैसी ज़िन्दगी बिता
रहे हैं। तुम्हारे सूबे में वे सब कैसे आयेंगे ?
शोर : इस पर बाद में विचार करेंगे।
लोमड़ी : फिलहाल क्या किया जाये ?
शेर : यही तो सोचना है।
लोमड़ी : मेरे विचार से हमसबको एक यूनियन बनानी चाहिए। जानवर-यूनियन।
लड़ने के लिए।
शेर : लड़ने के लिए ? नहीं, नहीं। लड़ाई करना तो शहरी आदमियों का काम
है।
लोमड़ी : तुम अहिंसा में विश्वास करने लगे हो ? लड़ने से मेरा मतलब
ख़ून-खराबे से नहीं है। मैं मांगो के लिए लड़ने की बात कर रही हूँ। हमें
इस बारे में आदमी की सर्वोत्तम सत्ता से मिलना चाहिए।
शेर : उसे देने के लिए माँग-पत्र की ज़रूरत होती है। तुम कहो, तो मैं अभी
एक माँग-पत्र तैयार करवाऊँ। सभी सरकारों ने हमें बचाने और जंगल लगाने के
लिए कई कानून बना रखे हैं।
लोमड़ी : फिर ये जंगल क्यों काटे जा रहे हैं ?
वि.दा :इनके सारे काम उलटे होते हैं। वनमहोत्सव का नाम सुना है कभी ? उस
दिन पेड़ लगाये जाते हैं जंगल उगाये जाते हैं। भाषण होते हैं। तसवीरें
खिंचती हैं।
लोमड़ी : फिर जंगल काट डाले जाते हैं।
वि. दा. :ताकि डवलपमेण्ट ऑथेरिटी और हाऊसिंग बोर्ड के मकान बनाये जा सकें।
जंगल साफ़ होते हैं। मकानों की नींव रखी जाती है। भाषण होते हैं। तस्वीरें
खींची जाती हैं।
शेर : जंगल लगाये जाते हैं। भाषण होते हैं। तसवीरें खिंचती हैं। जंगल काटे
जाते हैं। भाषण होते हैं। तस्वीरें खिंचती हैं।
वि.दा. : यही है वह गणित की पहेली, जिसमे आदमी का सारा कुनबा डूब गया था।
(शेर से) अगर कुछ दो, तो तुम्हार माँग-पत्र तैयार कर दूँ।
शेर : लेकिन उसे देने कौन जायेगा ?
वि.दा. : तुममें से किसी को जाना चाहिए। मेरा खयाल है, तुम्हें जाना
चाहिए। अच्छा रोब रहेगा। देखते ही सारी माँग मान
लेंगे।
शेर : सत्ता बड़ी डरपोक चीज़ है। मैं चला तो जाऊँ, पर सोचता हूँ, मुझे
देखते ही गश आ गया तो क्या होगा ? सत्ता सच्चे, ईमानदार और ताकतवर जीव को
देखने की आदी नहीं। तुम चली जाओ, लोमड़ी ! अच्छी बुरी बात तुम दूर से ही
सूँघ लेती हो।
लोमड़ी : सत्ता मेरी ही तरह स्त्रीलिंग है। दो स्त्रियों का किसी बात पर
एकमत होना मुश्किल है। किसी और नाम पर विचार करें, जैसे गधा।
वि. दा. : वे उसकी बात ध्यान से नहीं सुनेंगे, क्योंकि उसके बारे में
उन्होंने एक निश्चित इमेज बना ली है।
शेर : तुम ठीक कहते हो। उसके बारे में लोगों के विचार दूसरे हैं। उल्लू
कैसा रहेगा ? आबादी अच्छी नहीं लगती उसे। असर उनपर भी पड़ेगा।
लोमड़ी : मेरे विचार से तो ठीक नहीं रहेगा। सब एक-दूसरे को विनोद में
उल्लू कहते हैं।
शेर : हाँ, उल्लू अँधेरे में देखता है। अँधेरे में काम कर सकता है।
वि.दा. :सबको अँधेरे में ही दूर की सूझती है। सब एक-दूसरे को अँधेरे में
रखकर काम निकालते हैं।
लोमड़ी : बन्दर कैसा रहेगा ?
शेर : इनसान अपने पुराने रिश्ते की वजह से उससे झेंपता है।
लोमड़ी : गेंडा....हाथी....शुतुरर्मुग....ऊँट....भालू....हाँ, भालू...भालू
कैसा रहेगा ?
शेर : भालू ? भालू ठीक रहेगा।
वि.दा. : हाँ। उसकी कोई गलत इमेज भी नहीं है। लेकिन भालू का अकेले जाना
ठीक नहीं। उसके साथ सवाल का फौरन जवाब देने के लिए कोई चालाक प्राणी होना
चाहिए।
लोमड़ी : साथ मैं चली जऊँगी।
शेर : तो माँग-पत्र तैयार करें। (शेर लोमड़ी को चौकी के
इर्द-गिर्द घूमता माँग-पत्र लिखाता है। लोमड़ी उसके पीछे-पीछे चलती
माँग-पत्र लिखने का मूकाभिनय करती है।)
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