लोगों की राय

उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास)

ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

438 पाठक हैं

ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


बासन्ती–बिष की गाँठ तो तू है ही।

शहजादी–तुम भी तो ससुराल से सालभर बाद आयी हो, कौन-कौन सी नयी चीजें बनवा लायीं?

बासन्ती–और तुमने तीन साल में क्या बनवा लिया?

शहजादी–मेरी बात छोड़ो, मेरा खसम तो मेरी बात ही नहीं पूछता।

राधा–प्रेम के सामने गहनों का कोई मूल्य नहीं।

शहजादी–तो सूखा प्रेम तुम्ही को फले।

इतने में मानकी ने आकर कहा–तुम तीनों यहाँ बैठी क्या कर रही हो, चलो वहाँ लोग खाना खाने आ रहे हैं।

तीनों युवतियाँ चली गयीं। जालपा माता के गले में चन्द्रहार की शोभा देखकर मन-ही-मन सोचने लगी–गहनों से इनका जी अब तक नहीं भरा !

[६]

महाशय दयानाथ जितनी उमंगों से ब्याह करने गये थे, उतना ही हतोत्साह होकर लौटे। दीनदयाल ने खूब दिया, लेकिन वहाँ से जो कुछ मिला, वह सब नाच-तमाशे नेग-चार में खर्च हो गया। बार-बार अपनी भूल पर पछताते, क्यों दिखावे और तमाशे में इतने रुपये खर्च किये। इसकी जरूरत ही क्या थी, ज़्यादा-से-ज्यादा लोग यही तो कहते–महाशय बड़े कृपण हैं। उतना सुन लेने में क्या हानि थी? मैंने गाँववालों को तमाशा दिखाने का ठेका तो नहीं लिया था। यह सब रमा का दुस्साहस है। उसी ने सारे खर्च बढ़ा-चढ़ाकर मेरा दिवाला निकाल दिया। और सब तकाजें तो दस-पाँच दिन टल भी सकते थे, पर सराफ किसी तरह न मानता था। शादी के सातवें दिन उसे एक हजार रुपये देने का वादा था। सातवें दिन सराफ आया; मगर यहाँ रुपये कहाँ थे? दयानाथ में लल्लो-चप्पो की आदत न थी; मगर आज उन्होंने उसे चकमा देने की खूब कोशिश की। किस्त बाँधकर सब रुपये छः महीने में अदा कर देने का वादा किया। फिर तीन महीने पर आये; मगर सराफ भी एक घुटा हुआ आदमी था, उसी वक्त टला, जब दयानाथ ने तीसरे दिन बाकी रकम की चीजें लौटा देने का वादा किया और यह भी उसकी सज्जनता ही थी। वह तीसरा दिन भी आ गया  और अब दयानाथ को लाज रखने का कोई उपाय न सूझता था। कोई चलता हुआ आदमी शायद इतना व्यग्र न होता, हीले-हवाले करके महाजन को महीनों टालता रहता; लेकिन दयानाथ इस मामले में अनाड़ी थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book