उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
अभी तक रमा को पार्टी की तैयारियों से इतनी फुरसत नहीं मिली थी कि गंगू की दूकान तक जाता। उसने समझा था, गंगू को छः सौ रुपये दे दूँगा तो पिछले हिसाब में जमा हो जायेंगे। केवल ढाई सौ रुपये और रह जायेंगे। इस नये हिसाब में छः सौ मिलाकर फिर साढ़े आठ सौ रह जायेंगे। इस तरह उसे अपनी साख जमाने का सुअवसर मिल जायेगा। दूसरे दिन रमा खुश होता हुआ गंगू की दूकान पर पहुँचा और रोब से बोला–क्या रंग-ढंग है महाराज, कोई नयी चीज बनवायी है इधर?
रमा के टालमटोल से इतना विरक्त हो रहा था कि आज कुछ रुपये मिलने की आशा भी उसे प्रसन्न न कर सकी। शिकायत के ढंग से बोला–बाबू साहब, चीजें कितनी बनी और कितनी बिकीं। आपने तो दुकान पर आना ही छोड़ दिया। इस तरह की दुकानदारी हम लोग नहीं करते। आठ महीने हुए, आपके यहाँ से एक पैसा भी नहीं मिला।
रमानाथ–भाई, खाली हाथ दुकान पर आते शर्म आती है। हम उन लोगों में नहीं हैं, जिनसे तकाजा करना पड़े। आज यह छः सौ रुपये जमा कर लो, और एक अच्छा-सा कंगन तैयार कर दो।
गंगू ने रुपये लेकर सन्दूक में रखे और बोला–बन जायेंगे। बाकी रुपये कब तक मिलेंगे?
रमानाथ–बहुत जल्द।
गंगू–हाँ बाबूजी, अब पिछला साफ कर दीजिए।
गंगू ने बहुत जल्द कंगन बनवाने का वचन दिया; लेकिन एक बार सौदा करके उसे मालूम हो गया था यहाँ से जल्द रुपये वसूल होने वाले नहीं। नतीजा यह हुआ कि रमा रोज करता और गंगू रोज़ हीले करके टालता। कभी कारीगर बीमार पड़ जाता, कभी अपनी स्त्री को दवा कराने ससुराल चला जाता, कभी उसके लड़के बीमार हो जाते। एक महीना गुजर गया और कंगन न बने। रतन के तकाजों के डर से रमा ने पार्क जाना छोड़ दिया, मगर उसने घर तो देख ही रक्खा था। इस एक महीने में एक बार तकाजा करने आयी। आखिर जब सावन का महीना आ गया तो उसने एक दिन रमा से कहा–वह सुअर नहीं बनाकर देता तो तुम किसी और कारीगर को क्यों नहीं देते?
रमानाथ–उस पाजी ने ऐसा धोखा दिया कि कुछ न पूछो, बस रोज आज-कल किया करता है। मैंने बड़ी भूल की जो उसे पेशगी रुपये दे दिये। अब उससे रुपये निकलना मुश्किल है।
रतन–आप मुझे उसकी दुकान दिखा दीजिए, मैं उसके बाप से वसूल कर लूँगी। तावान अलग। ऐसे बेईमान आदमी को पुलिस में देना चाहिए।
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