उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
इसमें सन्देह नहीं कि रमा को सौ रुपये के करीब ऊपर से मिल जाते थे, और वह किफायत करना जानता तो इन आठ महीनों में दोनों सराफों के कम-से-कम आधे रुपये अवश्य दे देता; लेकिन ऊपर की आमदनी थी तो ऊपर का खर्च भी था। जो कुछ मिलता था सैर-सपाटे में खर्च हो जाता था और सराफों का देना किसी एकमुश्त रकम की आशा में रुका हुआ था। कौड़ियों से रुपये बनाना वणिकों का ही काम है। बाबू लोग तो रुपये की कौड़ियाँ ही बनाते हैं।
कुछ रात जाने पर रमा ने एक बार फिर सराफे का चक्कर लगाया। बहुत चाहा, किसी सराफ को झाँसा दूँ; पर दाल न गली। बाज़ार में बेतार की खबरें चला करती हैं।
रमा को रात भर नींद नहीं आयी। यदि आज उसे एक हजार का रुक्का लिखकर कोई पाँच सौ रुपये भी दे देता तो वह निहाल हो जाता; पर अपनी जान पहचानवालों में उसे ऐसा कोई नज़र नहीं आता था। अपने मिलने वालों में उसने सभी से अपनी हवा बाँध रक्खी थी। खिलाने-पिलाने में खुले हाथों रुपया खर्च करता था। अब किस मुँह से अपनी विपत्ति कहे? वह पछता रहा था कि नाहक गंगू को रुपये दिये। गंगू नालिश करने तो जाता न था। इस समय यदि रमा को कोई भंयकर रोग हो जाता तो वह उसका स्वागत करता। कम-से-कम दस पाँच-दिन की मुहलत तो मिल जाती; मगर बुलाने से तो मौत भी नहीं आती ! वह तो उसी समय आती है, जब हम उसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं होते। ईश्वर कहीं से कोई तार ही भिजवा दे कोई ऐसा मित्र भी नजर नहीं आता था, जो उसके नाम फर्जी तार भेज देता। वह इन्हीं चिन्ताओं में करवटें बदल रहा था कि जालपा की आँख खुल गयी। रमा ने तुरन्त चादर से मुँह छिपा लिया, मानों बेखबर सो रहा है। जालपा ने धीरे से चादर हटाकर उसका मुँह देखा और उसे सोता पाकर ध्यान से उसका मुँह देखने लगी। जागरण और निद्रा का अन्तर उससे छिपा न रहा। धीरे से हिलाकर बोली–क्या अभी तक जाग रहे हो?
रमानाथ–क्या जाने, क्यों नींद नहीं आ रही है। पड़े-पड़े सोचता था, कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर चला जाऊँ। कुछ रुपये कमा लाऊँ।
जालपा–मुझे भी लेते चलोगे न?
रमानाथ–तुम्हें परदेश में कहाँ लिये-लिये फिरूँगा?
जालपा–तो मैं यहाँ अकेली रह चुकी। एक मिनट तो रहूँगी नहीं, मगर जाओगे कहाँ?
रमानाथ–अभी कुछ निश्चय नहीं कर सका हूँ।
जालपा–तो क्या सचमुच तुम मुझे छोड़कर चले जाओगे? मुझसे तो एक दिन भी न रहा जाये। मैं समझ गयी, तुम मुझसे मुहब्बत नहीं करते। केवल मुँह-देखे की प्रीति करते हो।
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