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ग़बन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :544
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8444
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव


रमा ने पुर्जा फाड़कर फेंक दिया। मतबली कहीं का ! अगर सब-इन्सपेक्टर ने माँगा होता तो पुर्जा देखते ही रुपये लेकर दौड़े जाते। खैर देखा जायेगा। चुंगी के लिए माल तो आयगा ही। इसकी कसर तब निकल जायेगी।

इतने में गोपी भी लौटा। रमेश ने लिखा था–मैंने अपने जीवन में दो-चार नियम बना लिये हैं और बड़ी कठोरता से उनका पालन करता हूँ। उनमें से एक नियम यह भी है कि मित्रों से लेन-देन का व्यवहार न करूँगा। अभी तुम्हें अनुभव नहीं हुआ है लेकिन कुछ दिनों में हो जायेगा कि जहाँ मित्रों से लेन-देन शुरू हुआ, वहाँ मनमुटाव होते देर नहीं लगती। तुम मेरे प्यारे दोस्त हो, मैं तुमसे दुश्मनी नहीं करना चाहता। इसलिए मुझे क्षमा करो।

रमा ने इस पत्र को भी फाड़कर फेंक दिया और कुर्सी पर बैठकर दीपक की ओर टकटकी बाँधकर देखने लगा। दीपक उसे दिखायी देता था, इसमें सन्देह है। इतनी ही एकाग्रता से वह कदाचित् आकाश की काली, अभेद्य मेघ राशि की ओर ताकता !

मन की एक दशा वह भी होती है, जब आँखें खुली होती है और कुछ नहीं सूझता; कान खुले रहते हैं और कुछ नहीं सुनायी देता।

[१८]

संध्या हो गयी थी, म्युनिसिपैलिटी के अहाते में सन्नाटा छा गया था। कर्मचारी एक-एक  करके जा रहे थे। मेहतर कमरों में झाड़ू लगा रहा था। चपरासियों ने भी जूते पहनना शुरू कर दिया था। खोंचेंवाले दिन भर की बिक्री के पैसे गिन रहे थे। पर रमानाथ अपनी कुर्सी पर बैठा रजिस्टर लिख रहा था।

आज भी प्रातःकाल आया था, पर आज भी कोई बड़ा शिकार न फँसा, वही दस रुपये मिलकर रह गये। अब अपनी आबरू बचाने का उसके पास और क्या उपाय था ! रमा ने रतन को झाँसा देने की ठान ली। वह खूब जानता था कि रतन की यह अधीरता केवल इसलिए है कि शायद उसके रुपये मैंने खर्च कर दिये। अगर उसे मालूम हो जाये कि उसके रुपये तत्काल मिल सकते हैं, तो वह शान्त हो जायेगी। रमा उसे रुपये से भरी हुई थैली दिखाकर उसका सन्देह मिटा देना चाहता था। वह खजांची साहब  के चले जाने की राह देख रहा था। उसने आज जान-बुझकर देर की थी। आज की आमदनी के आठ सौ रुपये उसके पास थे। इसे वह अपने घर ले जाना चाहता था। खजांची ठीक चार बजे उठा। उसे क्या गरज थी कि रमा से आज की आमदनी माँगता। रुपये गिनने से ही छुट्टी मिली। दिन भर बही लिखते-लिखते और रुपये गिनते-गिनते बेचारे की कमर दुख रही थी। रमा को जब मालूम हो गया कि खजांची साहब दूर निकल गये होंगे, तो उसने रजिस्टर बन्द किया और चपरासी से बोला थैली उठाओ। चलकर जमा कर आयें।

चपरासी ने कहा–खजांची बाबू तो चले गये !

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