उपन्यास >> ग़बन (उपन्यास) ग़बन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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ग़बन का मूल विषय है महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव
रमा करवट पौढ़ गया; पर ऐसा जान पड़ता था, मानों चिन्ता और शँका दोनों आँखों में बैठी हुई निद्रा के आक्रमण से उनकी रक्षा कर रही हैं। जगते हुए दो बज गये। सहसा जालपा उठ बैठी और सुराही से पानी उँड़ेलती हुए बोली–बड़ी प्यास लगी थी, क्या तुम अभी तक जाग ही रहे हो?
रमानाथ–हाँ जी, नींद उचट गयी है। मैं सोच रहा था, तुम्हारे पास दो सौ रुपये कहाँ से आ गये? मुझे इसका आश्चर्य है।
जालपा–ये रुपये मैं मायके से लायी थी, कुछ बिदाई में मिले थे, कुछ पहले से रक्खे थे।
रमानाथ–तब तो तुम रुपये जमा करने में बड़ी कुशल हो। यहाँ क्यों नहीं कुछ जमा किया?
जालपा ने मुस्कराकर कहा–तुम्हें पाकर अब रुपये की परवाह नहीं रही।
रमानाथ–अपने भाग्य को कोसती होगी !
जालपा–भाग्य को क्यों कोसूँ, भाग्य को वह औरतें रोयें, जिनका पति, निखट्टू हो, शराबी हो, दुराचारी हो, रोगी हो तानों से स्त्री को छेदता रहे बात-बात पर बिगड़े। पुरुष मन का हो तो स्त्री उसके साथ उपवास करके भी प्रसन्न रहेगी।
रमा ने विनोद-भाव से कहा–तो मैं तुम्हारे मन का हूँ।
जालपा ने प्रेमपूर्ण गर्व से कहा–मेरी जो आशा थी, उससे तुम कहीं बढ़कर निकले। मेरी तीन सहेलियाँ हैं। एक का भी पति ऐसा नहीं। एक एम० ए० हैं पर सदा रोगी। दूसरा विद्वान भी है और धनी भी, पर वेश्यागामी। तीसरा घरघुस्सू है और बिलकुल निखट्टू।
रमा का हृदय गद्गद हो उठा। ऐसी प्रेम की मूर्ती दया की देवी के साथ उसने कितना बड़ा विश्वास घात किया। इतना दुराव रखने पर भी जब इसे मुझसे इतना प्रेम है, तो मैं अगर उससे निष्कपट होकर रहता, तो मेरा जीवन कितना आनन्दमय होता !
[१९]
प्रातःकाल रमा ने रतन के पास अपना आदमी भेजा। खत में लिखा, मुझे बड़ा खेद है कि कल जालपा ने आपने के साथ ऐसा व्यवहार किया, जो उसे न करना चाहिए था। मेरा विचार यह कदापि न था कि रुपये आपको लौटा दूँ, मैंने सराफ की ताकीद करने के लिए उससे रुपये ले लिये थे। कंगन दो-चार रोज़ में अवश्य मिल जायेंगे। आप रुपये भेज दें। उसी थैली में दो सौ मेरे भी थे। वह भी भेजियेगा। अपने सम्मान की रक्षा करते हुए जिनती विनम्रता उससे हो सकती थी, उसमें कोई कसर न रक्खी। जब तक आदमी लौटकर न आया वह बड़ी व्यग्रता से उसकी राह देखता रहा। कभी सोचता, कहीं बहाना न कर दे, या घर पर मिले ही नहीं, या दो चार दिन के बाद का वादा करे। सारा दामोमदर रतन के रुपये पर, था। अगर रतन ने साफ जवाब दे दिया, तो फिर सर्वनाश ! उसकी कल्पना से ही रमा के प्राण सूखे जा रहे थे। आखिर नौ बजे आदमी लौटा। रतन ने दो सौ रुपये तो दे दिये थे; मगर खत का कोई जवाब न दिया था।
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