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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


महात्मा वास्तव में एक दिव्यपुरुष थे। संसार से विरक्त होकर वर्षों उन्होंने कठिन तपस्या की थी। बहुत दिनों तक साधना को सफलीभूत करके अब मानव-समाज के उपकार की कामना से इस ओर आ गये थे। योगिराज की इच्छा एक आश्रम बनाने की थी, जिससे भटकते हुए प्राणियों को शान्ति और अध्यात्मवाद का अध्ययन का अवसर मिले, साथ ही निर्धनों के लिए वे एक चिकित्सालय भी खोलना चाहते थे। उन्हें अनेक संजीवनी जड़ी-बूटियों का ज्ञान था।

बैरिस्टर दीक्षित ने अपनी सम्पत्ति का आधा भाग देकर योगिराज की इच्छा पूरी की और स्वयं भी उनके साथ आश्रम में रहकर सेवा और उपासना में तन्मय हो गये।

योगिराज की कृपादृष्टि से उन्हें पूर्ण शान्ति भी प्राप्त हुई, और थोड़े ही दिनों में कठिन अभ्यास और तपस्या के द्वारा वे एक महान तपस्वी बन गये। योगिराज के अनेक शिष्यों में बैरिस्टर दीक्षित का स्थान सर्वप्रथम था। चारों ओर उनकी ख्याति फैल रही थी। उन पर भी लोगों को श्रद्धा-भक्ति उनके गुरु से कम न थी।

योगिराज के शरीर छोड़े देने पर आश्रम ने गुरुदेव के पद के योग्य बैरिस्टर दीक्षित को ही समझा और उसी दिन से उन्हें महात्मा की पदवी भी मिल गई।

अब वे बैरिस्टर दीक्षित नहीं, एक प्रसिद्ध महात्मा थे।

सुरीला को आश्रम की सीढ़ियों पर बिठाकर उसके पिता गुरुदेव के दर्शन करने गये थे। सुरीला सुदूर तक गंगा की उज्जवल जलधारा का अवलोकन करती हुई अपने विचारों में निमग्न थी–पिता मुझे संन्यास लिवाना चाहते हैं, कहते हैं, इन महात्मा की कृपा से मुझे कृष्ण भगवान के दर्शन हो जायेंगे, मुझे शान्ति मिलेगी जिन नटनागर के स्वप्न मैं अपनी कविताओं में अंकित करती रहती हूँ, उनके दर्शन पाने से बढ़कर और क्या सौभाग्य हो सकता है, किन्तु पिता से विलग होना भी तो आसान नहीं है। और अपने अन्दर अशान्ति तो मुझे कुछ प्रतीत होती नहीं। लोग मुझे दुखिया समझकर मुझ पर करुणा का भाव दिखलाते हैं, दुःख पर आँसू बहाते हैं, पर मैं तो बहुत सुखी हूँ। पिता मुझे कितना प्यार करते हैं।

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