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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है

आधुनिक गल्प लेखन-कला हिन्दी में अभी बाल्यावस्था में है; इसलिए इससे पाश्चात्य प्रौढ़ गल्पों की तुलना करना अन्याय होगा। फिर भी इस थोड़े-से काल में हिन्दी-गल्प-कला ने जो उन्नति की है, उस पर वह गर्व करें, तो अनुचित नहीं। हिन्दी में अभी टालस्टाय, चेकाफ, परे, डाडे, मोपाँसा का आविर्भाव नहीं हुआ है; पर बिरवा के चिकने पात देखकर कहा जा सकता है कि यह होनहार है। इस संग्रह में हमने चेष्टा की है कि रचनाओं की बानगी दे दी जाय। हम कहाँ तक सफल हुए हैं, इसका निर्णय पाठक और समालोचक-गण ही कर सकते हैं। हमें खेद है, कि इच्छा रहते हुए भी हम अन्य लेखकों की रचनाओं के लिए स्थान निकाल सके; पर इतना हम कह सकते हैं कि हमने जो सामग्री उपस्थित की है वह हिन्दी-गल्प-कला की वर्तमान परिस्थिति का परिचय देने के लिए काफी है। इसके साथ ही हमने मनोरंजकता और शिक्षा का भी ध्यान रखा है, विश्वास है, कि पाठक इस दृष्टि से भी इस संग्रह में कोई अभाव न पावेंगे। गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है, जिसमें जीवन के किसी एक अंग का या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य होता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास सब उसी एक भाव का पुष्टीकरण करते हैं। उपन्यास की भाँति उसमें मानव-जीवन का सम्पूर्ण तथा बृहद् रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता, न उपन्यास की भाँति उसमें सभी रसों का सम्मिश्रण होता है। वह रमणीक उद्यान नहीं, जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेल-बूटे सजे हुए हैं, वरन् एक गमला है, जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है। हम उन लेखक महोदयों के कृतज्ञ हैं, जिन्होंने उदारता-पूर्वक हमें अपनी रचनाओं के उद्धृत करने की अनुमति प्रदान की। हम सम्पादक महानुभावों के भी ऋणी हैं जिनकी बहुमूल्य पत्रिकाओं में से हमने कई गल्पें ली हैं। - प्रेमचन्द

अनुक्रम

1. अनाथ बालिका - पंडित ज्वालादत्त शर्मा
2. मधुआ - श्री जयशंकर प्रसाद
3. संन्यासी - श्री सुदर्शन
4. ताई - श्री विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक
5. शतरंज के खिलाड़ी - प्रेमचन्द
6. नशा - प्रेमचन्द
7. रानी सारन्धा - प्रेमचन्द
8. आत्माराम - प्रेमचन्द
9. झलमला - श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
10. बीती यादें - श्रीमती शिवरानी देवी
11. बाहुबली - श्री जैनेन्द्र कुमार
12. काकी - सियारामशरण गुप्त
13. एक सप्ताह - श्री चन्द्रगुप्त विद्यालंकार
14. प्रायश्चित - श्री भगवतीचरण वर्मा
15. स्वप्न - श्रीमती कमलादेवी चौधरी
16. शत्रु - श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
17. डाची - श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’

अनाथ बालिका

पंडित ज्वालादत्त शर्मा

(आप मुरादाबाद के निवासी हैं। संस्कृति, फारसी और उर्दू के अच्छे ज्ञाता हैं। आपने उर्दू के कई सुविख्यात कवियों पर आलोचनात्मक पुस्तकें लिखी हैं। आपकी वर्णन-शैली और भाषा सरस है।)

पण्डित राजनाथ, एम.डी. का व्यवसाय साधारण नहीं है। शहर के छोटे-बड़े-अमीर-गरीब सभी उनको अपनी बीमारी में बुलाते हैं। इसके कई कारण हैं। एक तो आप साधु पुरुष हैं, दूसरे बड़े स्पष्ट वक्ता हैं; तीसरे सदाचार की मूर्ति हैं। चालीस वर्ष की आवस्था हो जाने पर भी आपने अपना विवाह नहीं किया। ईश्वर की कृपा से आपके पास रुपये और मान की कमी नहीं। अतुल धन और अमित सम्मान के अधिकारी होने पर भी आप बड़े जितेन्द्रिय, निरभिमान और सदाचारी हैं। गोरखपुर में आपको डाक्टरी शुरू किये सिर्फ सात ही वर्ष हुए हैं; पर शहर के छोटे-बड़े सबकी ज़बान पर राजा बाबू का नाम इस तरह चढ़ गया है; मानों वे जन्म से ही वहाँ के निवासी हैं। आपका कद ऊँचा, शरीर छरहरा और चेहरा कान्ति-पूर्ण गोरा है। मरीज़ से बातचीत करते ही उसकी तकलीफ आप कम कर देते हैं। इस कारण साधारण लोग आपको जादूगर तक समझते हैं। आपके परिवार में सिर्फ वृद्धा माता हैं। एक भानजे का भरण-पोषण भी आप ही करते हैं। भानजा सतीश कालेज में पढ़ता है।

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