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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


रात हो गयी! चारों ओर निबिड़ अंधकार छा गया। तोता न जाने पत्तों में कहाँ छिपा बैठा था। महादेव जानता था कि रात को तोता कहीं उड़कर नहीं जा सकता, और न पिंजरे ही में आ सकता है, फिर भी वह उस जगह से हिलने का नाम न लेता था। आज उसने दिन भर कुछ नहीं खाया। रात के भोजन का समय भी निकल गया, पानी की बूँद भी उसके कंठ में न गयी, लेकिन उसे न भूख थी, न प्यास! तोते के बिना उसे अपना जीवन निस्सार, शुष्क और सूना जान पड़ता था। वह दिन-रात काम करता था; इसलिए कि यह उसकी अंत:प्रेरणा थी; जीवन के और काम इसलिए करता था कि आदत थी। इन कामों में उसे अपनी सजीवता का लेश-मात्र भी ज्ञान न होता था।

तोता ही वह वस्तु था, जो उसे चेतना की याद दिलाता था। उसका हाथ से जाना जीव का देह-त्याग करना था। महादेव दिन-भर का भूख-प्यासा, थका-माँदा, रह-रह कर झपकियाँ ले लेता था; किन्तु एक क्षण में फिर चौंक कर आँखें खोल देता और उस विस्तृत अंधकार में उसकी आवाज सुनायी देती–‘सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता।’ आधी रात गुजर गयी थी। सहसा वह कोई आहट पा कर चौंका। देखा, एक दूसरे वृक्ष के नीचे एक धुँधला दीपक जल रहा है, और कई आदमी बैंठे हुए आपस में कुछ बातें कर रहे हैं। वे सब चिलम पी रहे थे। तमाखू की महक ने उसे अधीर कर दिया। उच्च स्वर से बोला–‘सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता’ और उन आदमियों की ओर चिलम पीने चला गया; किन्तु जिस प्रकार बंदूक की आवाज सुनते ही हिरन भाग जाते हैं उसी प्रकार उसे आते देख सब-के-सब उठ कर भागे। कोई इधर गया, कोई उधर। महादेव चिल्लाने लगा–‘ठहरो-ठहरो!’ एकाएक उसे ध्यान आ गया, ये सब चोर हैं। वह जोर से चिल्ला उठा–‘चोर-चोर, पकड़ो-पकड़ो!’ चोरों ने पीछे फिर कर न देखा। महादेव दीपक के पास गया, तो उसे एक कलशा रखा हुआ मिला जो मोर्चे से काला हो रहा था। महादेव का हृदय उछलने लगा। उसने कलसे में हाथ डाला, तो मोहरें थीं। उसने एक मोहरे बाहर निकाली और दीपक के उजाले में देखा। हाँ मोहर थी। उसने तुरंत कलशा उठा लिया, और दीपक बुझा दिया और पेड़ के नीचे छिप कर बैठ रहा। साह से चोर बन गया।

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