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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


‘बेटी, ये तुम्हारे भाई रामसुन्दर हैं। तुम्हारी तलाश में बहुत दूर तक घूम आये हैं। तुम उस दिन कहती थी कि तुम्हारी माता तुमसे कभी-कभी जिक्र किया करती थीं कि सरला, तुम्हारे एक भाई है। वह अवश्य एक दिन तुमको मिलेगा। आज तुम्हारी स्वर्गीय माता की भविष्यवाणी पूरी हुई।’

चार मास के बाद डाक्टर राजनाथ ने नीचे लिखा हुआ निमन्त्रण-पत्र अपने मित्रों के नाम भेजा–

‘प्रिय महोदय,
मेरे भानजे श्री सतीशचन्द्र विद्यानिधि, एम.ए. का विवाह जौनपुर के सुप्रसिद्ध रईस स्वर्गीय पण्डित शिवप्रसादजी की कन्या के साथ होना निश्चय हुआ है। आपसे प्रार्थना है कि वसन्त पंचमी के दिन शाम को मेरे निवास-स्थान पर पधार कर भोज में सम्मिलित हूजिए और दूसरे दिन प्रात: काल नौ बजे की ट्रेन से बारात में सम्मिलित होकर मेरी मान-वृद्धि कीजिए।
निवेदक–
राजनाथ।’

कहने कि जरूरत नहीं कि सरला का विवाह सतीश के साथ बड़ी धूम-धाम से हो गया। रामसुन्दर ने उसकी कुल सम्पत्ति दहेज में सरला को अर्पण कर दी। आज तक रामसुन्दर और सतीश मित्रता के ही जबरदस्त पाश में बद्ध थे। अब वे मित्रता और आत्मीयता के डबल पाश में बेतरह जकड़ गये!

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