कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
‘हाँ करूँगा।’
‘स्त्री को उसके घर भेज दो।’
पालू को ऐसा प्रतीत हुआ मानो किसी ने विष का प्याला सामने रख दिया हो। यदि उससे यह कहा जाता, कि तुम घर से बाहर चले जाओ और एक-दो वर्ष वापस न लौटो, तो वह सिर न हिलाता; परन्तु इस बात से, जो उसकी भूलों की निकृष्टतर स्वीकृति थी, उसके अन्तःकरण को दारुण दुःख हुआ उसे ऐसा प्रतीत हुआ, मानो उसका पिता उसे दण्ड दे रहा है और उससे प्रतिकार ले रहा है। वह दण्ड भुगतने को तैयार था, परन्तु उसका पिता इस बात को जान पाये, यह उसे स्वीकार न था। वह इसे अपने लिए अपमान का कारण समझता था; इसलिए कुछ क्षण चुप रहकर उसने क्रोध से काँपते हुए उत्तर दिया–
‘यह न होगा।’
‘मेरी कुछ भी परवा न करोगे?’
‘करूँगा; पर स्त्री को उसके घर न भेजूँगा।’
‘तो मैं तुम्हें पराँवठे न खिलाता रहूँगा। कल से किनारा करो।’
जब मनुष्य को क्रोध आता है, तो सबसे पहले जीभ बेकाबू होती है। पालू ने भी उचित-अनुचित का विचार न किया और अकड़कर उत्तर दिया–मैं इसी से खाऊँगा और देखूँगा कि मुझे चौके से कौन उठा देता है?
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