कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
रामसुन्दर- भाई, सतीश, मुझे तुम्हारा बहुत भरोसा है। पूर्ण आशा है कि यदि तुम- जैसे परोपकार-व्रती और देवोपममित्र ने प्रयत्न किया, तो मेरा यह कार्य- जिसके कारण मेरी निद्रा और मेरी भूख, दोनों नष्ट हो गई हैं- जरूर सिद्ध हो जायगा। मित्र, तुलसीदासजी ने ठीक ही कहा है-
सबतें कठिन जाति-अपनाना।’
नाव धीरे-धीरे किनारे पर आ लगी और ये दोनों नवयुवक उससे उतरकर कालेज की ओर चल दिये।
सरला की माता को मरे दो वर्ष बीत गये। सरला निश्चिन्ततापूर्वक डाक्टर बाबू के यहाँ रहती है। उसको अपनी माता की याद आती है जरूर; पर डाक्टर और उसकी वृद्धा माता के सद्व्यवहार से उसको कोई कष्ट नहीं। बल्कि यह कहना चाहिये कि कोई ऐसा सुख नहीं, जो उसको प्राप्त न हो। राजा बाबू उसको अपनी ही पुत्री समझते हैं। उसने भी अपने गुणों से उनको खूब प्रसन्न कर रक्खा है।
राजा बाबू ने दो वर्ष बाद उस लिफाफे को खोला, जिसको पढ़ने की आज्ञा सरला की माता, मरते समय दे गई थी। उसमें दो लिफाफे थे। जिस पर नम्बर एक पड़ा था, उसको खोलकर डाक्टर साहब पढ़ने लगे। उसमें लिखा था–
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