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उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास)

गोदान’ (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :758
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8458
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।


धनिया बोली–हाँ, मेरी सलाह है। अब सौ पचास बरस तो जीओगे नहीं। समझ लेना इतनी ही उमिर थी।

होरी ने अब की जोर से फटकारा–चुप रह, बड़ी आयी है वहाँ से सतवन्ती बनके। जबरदस्ती चिड़िया तक तो पिंजड़े में रहती नहीं, आदमी क्या रहेगा। तुम उसे छोड़ दो भोला और समझ लो, मर गयी और जाकर अपने बाल-बच्चों में आराम से रहो। दो रोटी खाओ और राम का नाम लो। जवानी के सुख अब गये। वह औरत चंचल है, बदनामी और जलन के सिवा तुम उससे कोई सुख न पाओगे।

भोला नोहरी को छोड़ दे, असम्भव! नोहरी इस समय भी उसकी ओर रोष-भरी आँखों से तरेरती हुई जान पड़ती थी; लेकिन नहीं, भोला अब उसे छोड़ ही देगा। जैसा कर रही है, उसका फल भोगे।

आँखों में आँसू आ गये। बोला–होरी भैया, इस औरत के पीछे मेरी जितनी साँसत हो रही है, मैं ही जानता हूँ। इसी के पीछे कामता से मेरी लड़ाई हुई। बुढ़ापे में यह दाग भी लगना था, वह लग गया। मुझे रोज ताना देती है कि तुम्हारी तो लड़की निकल गयी। मेरी लड़की निकल गयी, चाहे भाग गयी; लेकिन अपने आदमी के साथ पड़ी तो है, उसके सुख-दुख की साथिन तो है। उसकी तरह तो मैंने औरत ही नहीं देखी। दूसरों के साथ तो हँसती है, मुझे देखा तो कुप्पे-सा मुँह फुला लिया। मैं गरीब आदमी ठहरा, तीन-चार आने रोज की मजूरी करता हूँ। दूध-दही, मांसमछली, रबड़ी-मलाई कहाँ से लाऊँ!

भोला यहाँ से प्रतिज्ञा करके अपने घर गये। अब बेटों के साथ रहेंगे, बहुत धक्के खा चुके; लेकिन दूसरे दिन प्रातःकाल होरी ने देखा, तो भोला दुलारी सहुआईन की दुकान से तमाखू लिए चले जा रहे थे।

होरी ने पुकारना उचित न समझा। आसक्ति में आदमी अपने बस में नहीं रहता। वहाँ से आकर धनिया से बोला–भोला तो अभी वहीं है। नोहरी ने सचमुच इन पर कोई जादू कर दिया है।

धनिया ने नाक सिकोड़कर कहा–जैसी बेहया वह है, वैसा ही बेहया यह है। ऐसे मर्द को तो चुल्लू-भर पानी में डूब मरना चाहिए। अब वह सेखी न जाने कहाँ गयी। झुनिया यहाँ आयी, तो उसके पीछे डंडा लिए फिर रहे थे। इज़्ज़त बिगड़ी जाती थी। अब इज़्ज़त नहीं बिगड़ती!

होरी को भोला पर दया आ रही थी। बेचारा इस कुलटा के फेर में पड़कर अपनी जिन्दगी बरबाद किये डालता है। छोड़कर जाय भी, तो कैसे? स्त्री को इस तरह छोड़कर जाना क्या सहज है?  यह चुड़ैल उसे वहाँ भी तो चैन से न बैठने देगी! कहीं पंचायत करेगी, कहीं रोटी-कपड़े का दावा करेगी। अभी तो गाँव ही के लोग जानते हैं। किसी को कुछ कहते संकोच होता है। कनफुसकियाँ करके ही रह जाते हैं। तब तो दुनिया भी भोला ही को बुरा कहेगी। लोग यही तो कहेंगे, कि जब मर्द ने छोड़ दिया, तो बेचारी अबला क्या करे? मर्द बुरा हो, तो औरत की गर्दन काट लेगा। औरत बुरी हो, तो मर्द के मुँह में कालिख लगा देगी। इसके दो महीने बाद एक दिन गाँव में यह खबर फैली कि नोहरी ने मारे जूतों के भोला की चाँद गंजी कर दी।

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