उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
उसने वहीं खड़े होकर कहा–तुम दानी कब से हो गये लाला! पाओ तो दूसरों की थाली की रोटी उड़ा जाओ। आज बड़े आमवाले हुए हैं। मुझसे छेड़ की तो अच्छा न होगा, कहे देती हूँ।
ओ हो! इस अहीरिन का इतना मिजाज! नोखेराम को क्या फाँस लिया, समझती है सारी दुनिया पर उसका राज है। बोले–तू तो ऐसी तिनक रही है नोहरी, जैसे अब किसी को गाँव में रहने न देगी। जरा जबान सँभालकर बातें किया कर, इतनी जल्द अपने को न भूल जा।
‘तो क्या तुम्हारे द्वार कभी भीख माँगने आयी थी?’
‘नोखेराम ने छाँह न दी होती, तो भीख भी माँगती।’
नोहरी को लाल मिर्च-सा लगा। जो कुछ मुँह में आया बका–दाढ़ीजार, लम्पट, मुँह झौंसा और जाने क्या-क्या कहा और उसी क्रोध में भरी हुई कोठरी में गयी और अपने बरतन-भाँड़े निकाल-निकालकर बाहर रखने लगी।
नोखेराम ने सुना तो घबराये हुए आये और पूछा–वह क्या कर रही है नोहरी, कपड़े-लत्ते क्यों निकाल रही है? किसी ने कुछ कहा है?
नोहरी मर्दों को नचाने की कला जानती थी। अपने जीवन में उसने यही विद्या सीखी थी। नोखेराम पढ़े-लिखे आदमी थे। कानून भी जानते थे। धर्म की पुस्तकें भी बहुत पढ़ी थीं। बड़े-बड़े वकीलों, बैरिस्टरों की जूतियाँ सीधी की थीं; पर इस मूर्ख नोहरी के हाथ का खिलौना बने हुए थे। भौंहें सिकोड़कर बोली–समय का फेर है, यहाँ आ गयी; लेकिन अपनी आबरू न गवाऊँगी।
ब्राह्मण सतेज हो उठा। मूँछें खड़ी करके बोला–तेरी ओर जो ताके उसकी आँखें निकाल लूँ।
नोहरी ने लोहे को लाल करके घन जमाया–लाला पटेसरी जब देखो मुझसे बेबात की बात किया करते हैं। मैं हरजाई थोड़े ही हूँ कि कोई मुझे पैसे दिखाये। गाँव-भर में सभी औरतें तो हैं, कोई उनसे नहीं बोलता। जिसे देखो, मुझी को छेड़ता है।
नोखेराम के सिर पर भूत सवार हो गया। अपना मोटा डंडा उठाया और आँधी की तरह हरहराते हुए बाग में पहुँचकर लगे ललकारने–आ जा बड़ा मर्द है तो। मूँछें उखाड़ लूँगा, खोदकर गाड़ दूँगा। निकल आ सामने। अगर फिर कभी नोहरी को छेड़ा तो खून पी जाऊँगा। सारी पटवारगिरी निकाल दूँगा। जैसा खुद है, वैसा ही दूसरों को समझता है। तू है किस घमंड में?
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