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उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास)

गोदान’ (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :758
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8458
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।


मेहता हँसे–उसी के लिए तो जमीन तैयार कर रहा हूँ।

‘मिस मालती से जोड़ा भी अच्छा है।’

‘शर्त यही है कि वह कुछ दिन आपके चरणों में बैठकर आपसे नारी-धर्म सीखें।’

‘वही स्वार्थी पुरुषों की बात! आपने पुरुष-कर्तव्य सीख लिया है?’

‘यही सोच रहा हूँ, किससे सीखूँ।’

‘मिस्टर खन्ना आपको बहुत अच्छी तरह सिखा सकते हैं।’

मेहता ने कहकहा मारा–नहीं, मैं पुरुष-कर्तव्य भी आप ही से सीखूँगा।

‘अच्छी बात है, मुझी से सीखिए। पहली बात यही है कि भूल जाइए कि नारी श्रेष्ठ है और सारी जिम्मेदारी उसी पर है, श्रेष्ठ पुरुष है और उसी पर गृहस्थी का सारा भार है। नारी में सेवा और संयम और कर्तव्य सब कुछ वही पैदा कर सकता है; अगर उसमें इन बातों का अभाव है, तो नारी में भी अभाव रहेगा। नारियों में आज जो यह विद्रोह है, इसका कारण पुरुष का इन गुणों से शून्य हो जाना है।’

मिर्ज़ा साहब ने आकर मेहता को गोद में उठा लिया और बोले–मुबारक!

मेहता ने प्रश्न की आँखों से देखा–आपको मेरी तकरीर पसन्द आयी?

‘तकरीर तो खैर जैसी थी, वैसी थी; मगर कामयाब खूब रही। आपने परी को शीशे में उतार लिया। अपनी तकदीर सराहिए कि जिसने आज तक किसी को मुँह नहीं लगाया, वह आपका कलमा पढ़ रही है।’

मिसेज खन्ना दबी जबान से बोली–जब नशा ठहर जाय, तो कहिए।

मेहता ने विरक्त भाव से कहा–मेरे जैसे किताब के कीड़ों को कौन औरत पसन्द करेगी देवीजी! मैं तो पक्का आदर्शवादी हूँ।

मिसेज खन्ना ने अपने पति को कार की तरफ जाते देखा, तो उधर चली गयीं। मिर्ज़ा भी बाहर निकल गये। मेहता ने मंच पर से अपनी छड़ी उठायी और बाहर जाना चाहते थे कि मालती ने आकर उनका हाथ पकड़ लिया और आग्रह-भरी आँखों से बोली–आप अभी नहीं जा सकते। चलिए, पापा से आपकी मुलाकात कराऊँ और आज वहीं खाना खाइए।

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