उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
होरी ने मुस्कराकर कहा–क्यों, उसके बाल-बच्चे नहीं हैं?
‘उसके बाल-बच्चों को देखें कि अपने बाल-बच्चों को देखें? वह तो दो-दो मेहरियों को आराम से रखता है, यहाँ तो एक को रूखी रोटी भी मयस्सर नहीं, सारी जमा ले लेगा। एक पैसा भी घर न लाने देगा।’
‘मेरी तो हालत और भी खराब है भाई, अगर रुपए हाथ से निकल गये, तो तबाह हो जाऊँगा। गोईं के बिना तो काम न चलेगा।’
‘अभी तो दो-तीन दिन ऊख ढोते लगेंगे। ज्यों ही सारी ऊख पहुँच जाय, जमादार से कहें कि भैया कुछ ले ले, मगर ऊख चटपट तौल दे, दाम पीछे देना। इधर झिंगुरी से कह देंगे, अभी रुपए नहीं मिले।’
होरी ने विचार करके कहा–झिंगुरीसिंह हमसे-तुमसे कई गुना चतुर है सोभा! जाकर मुनीम से मिलेगा और उसीसे रुपए ले लेगा। हम-तुम ताकते रह जायँगे। जिस खन्ना बाबू का मिल है, उन्हीं खन्ना बाबू की महाजनी कोठी भी है। दोनों एक हैं।
शोभा निराश होकर बोला–न जाने इन महाजनों से भी कभी गला छूटेगा कि नहीं। होरी बोला–इस जनम में तो कोई आशा नहीं है भाई! हम राज नहीं चाहते, भोग-विलास नहीं चाहते, खाली मोटा-झोटा पहनना, और मोटा-झोटा खाना और मरजाद के साथ रहना चाहते हैं। वह भी नहीं सधता।
शोभा ने धूर्तता के साथ कहा–मैं तो दादा, इन सबों को अबकी चकमा दूँगा। जमादार को कुछ दे-दिलाकर इस बात पर राजी कर लूँगा कि रुपए के लिए हमें खूब दौड़ायें। झिंगुरी कहाँ तक दौड़ेंगे।
होरी ने हँसकर कहा–यह सब कुछ न होगा भैया! कुशल इसी में है कि झिंगुरीसिंह के हाथ-पाँव जोड़ो। हम जाल में फँसे हुए हैं। जितना ही फड़फड़ाओगे, उतना ही और जकड़ते जाओगे।
‘तुम तो दादा, बूढ़ों की-सी बातें कर रहे हो। कटघरे में फँसे बैठे रहना तो कायरता है। फन्दा और जकड़ जाय बला से; पर गला छुड़ाने के लिए जोर तो लगाना ही पड़ेगा। यही तो होगा झिंगुरी घर-द्वार नीलाम करा लेंगे; करा लें नीलाम! मैं तो चाहता हूँ कि हमें कोई रुपए न दे, हमें भूखों मरने दे, लातें खाने दे, एक पैसा भी उधार न दे; लेकिन पैसावाले उधार न दें तो सूद कहाँ से पायें। एक हमारे ऊपर दावा करता है, तो दूसरा हमें कुछ कम सूद पर रुपए उधार देकर अपने जाल में फँसा लेता है। मैं तो उसी दिन रुपये लेने जाऊँगा, जिस दिन झिंगुरी कहीं चला गया होगा।’
होरी का मन भी विचलित हुआ–हाँ, यह ठीक है।
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