उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
झुनिया ने दिल्लगी की–तो यहाँ रुपये की कौन कमी है। तुम महाजन से जरा हँसकर बोल दो, देखो सारे रुपए छोड़ देता है कि नहीं। सच कहती हूँ, दादा का सारा दुख-दलिद्दर दूर हो जाय।
सोना ने दोनों हाथों से उसका मुँह दबाकर कहा–बस, चुप ही रहना, नहीं कहे देती हूँ। अभी जाकर अम्माँ से मातादीन की सारी कलई खोल दूँ तो रोने लगो।
झुनिया ने पूछा–क्या कह दोगी अम्माँ से? कहने को कोई बात भी हो। जब वह किसी बहाने से घर में आ जाते हैं, तो क्या कह दूँ कि निकल जाओ, फिर मुझसे कुछ ले तो नहीं जाते। कुछ अपना ही दे जाते हैं। सिवाय मीठी-मीठी बातों के वह झुनिया से कुछ नहीं पा सकते! और अपनी मीठी बातों को महँगे दामों बेचना भी मुझे आता है। मैं ऐसी अनाड़ी नहीं हूँ कि किसी के झाँसे में आ जाऊँ। हाँ, जब जान जाऊँगी कि तुम्हारे भैया ने वहाँ किसी को रख लिया है, तब की नहीं चलाती। तब मेरे ऊपर किसी का कोई बन्धन न रहेगा। अभी तो मुझे विश्वास है कि वह मेरे हैं और मेरे ही कारन उन्हें गली-गली ठोकर खाना पड़ रहा है। हँसने-बोलने की बात न्यारी है, पर मैं उनसे विश्वासघात न करूँगी। जो एक से दो का हुआ, वह किसी का नहीं रहता।
शोभा ने आकर होरी को पुकारा और पटेश्वरी के रुपए उसके हाथ में रखकर बोला–भैया, तुम जाकर ये रुपए लाला को दे दो। मुझे उस घड़ी न जाने क्या हो गया था। होरी रुपए लेकर उठा ही था कि शंख की ध्वनि कानों में आयी। गाँव के उस सिरे पर ध्यानसिंह नाम के एक ठाकुर रहते थे। पल्टन में नौकर थे और कई दिन हुए, दस साल के बाद रजा लेकर आये थे। बगदाद, अदन, सिंगापुर, बर्मा–चारों तरफ घूम चुके थे। अब ब्याह करने की धुन में थे। इसीलिए पूजा-पाठ करके ब्राह्मणों को प्रसन्न रखना चाहते थे।
होरी ने कहा–जान पड़ता है सातों अध्याय पूरे हो गये। आरती हो रही है।
शोभा बोला–हाँ, जान तो पड़ता है, चलो आरती ले लो।
होरी ने चिन्तित भाव से कहा–तुम जाओ, मैं थोड़ी देर में आता हूँ।
ध्यानसिंह जिस दिन आये थे, सब के घर सेर-सेर भर मिठाई बैना भेजी थी। होरी से जब कभी रास्ते मिल जाते, कुशल पूछते। उनकी कथा में जाकर आरती में कुछ न देना अपमान की बात थी।
आरती का थाल उन्हीं के हाथ में होगा। उनके सामने होरी कैसे खाली हाथ आरती ले लेगा! इससे तो कहीं अच्छा है कि वह कथा में जाये ही नहीं। इतने आदमियों में उन्हें क्या याद आयेगी कि होरी नहीं आया। कोई रजिस्टर लिये तो बैठा नहीं है कि कौन आया, कौन नहीं आया। वह जाकर खाट पर लेट रहा।
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