उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
राय साहब को ऐसा आवेश आ रहा था कि इस दुष्ट को गोली मार दें। इसी बदमाश ने सब्ज़ बाग दिखाकर उन्हें खड़ा किया और अब अपनी सफाई दे रहा है, पीठ में धूल भी नहीं लगने देता, लेकिन परिस्थिति जबान बन्द किये हुए थी।
‘तो अब आपके किये कुछ नहीं हो सकता?’
‘ऐसा ही समझिए।’
‘मैं पचास हजार पर भी समझौता करने को तैयार हूँ।’
‘राजा साहब किसी तरह न मानेंगे।’
‘पच्चीस हजार पर तो मान जायँगे?’
‘कोई आशा नहीं। वह साफ कह चुके हैं।’
‘वह कह चुके हैं या आप कह रहे हैं।’
‘आप मुझे झूठा समझते हैं?’
राय साहब ने विनम्र स्वर में कहा–मैं आपको झूठा नहीं समझता; लेकिन इतना जरूर समझता हूँ कि आप चाहते, तो मुआमला हो जाता।’
‘तो आप का ख़्याल है, मैंने समझौता नहीं होने दिया?’
‘नहीं, यह मेरा मतलब नहीं है। मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि आप चाहते तो काम हो जाता और मैं इस झमेले में न पड़ता।’
मिस्टर तंखा ने घड़ी की तरफ देखकर कहा–तो राय साहब, अगर आप साफ कहलाना चाहते हैं, तो सुनिए–अगर आपने दस हजार का चेक मेरे हाथ में रख दिया होता, तो आज निश्चय एक लाख के स्वामी होते। आप शायद चाहते होंगे, जब आपको राजा साहब से रुपए मिल जाते, तो आप मुझे हजार-दो-हजार दे देते। तो मैं ऐसी कच्ची गोली नहीं खेलता। आप राजा साहब से रुपए लेकर तिजोरी में रखते और मुझे अँगूठा दिखा देते। फिर मैं आपका क्या बना लेता? बतलाइए? कहीं नालिश-फरियाद भी तो नहीं कर सकता था।
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