उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
7 पाठकों को प्रिय 54 पाठक हैं |
‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
चौधरी तीक्ष्ण स्वर में बोला–और तुम क्या भाइयों के थोड़े-से पैसे दबाकर राजा हो जाओगे? ढाई रुपये पर अपना ईमान बिगाड़ रहे थे, उस पर मुझे उपदेस देते हो। अभी परदा खोल दूँ, तो सिर नीचा हो जाय।
होरी पर जैसे सैकड़ों जूते पड़ गये। चौधरी तो रुपए सामने जमीन पर रखकर चला गया; पर वह नीम के नीचे बैठा बड़ी देर तक पछताता रहा। वह कितना लोभी और स्वार्थी, इसका उसे आज पता चला। चौधरी ने ढाई रुपए दे दिये होते, तो वह खुशी से कितना फूल उठता। अपनी चालाकी को सराहता कि बैठे-बैठाये ढाई रुपए मिल गये। ठोकर खाकर ही तो हम सावधानी के साथ पग उठाते हैं।
धनिया अन्दर चली गयी थी। बाहर आयी तो रुपए जमीन पर पड़े देखे, गिनकर बोली–और रुपए क्या हुए, दस न चाहिए?
होरी ने लम्बा मुँह बनाकर कहा–हीरा ने पन्द्रह रुपए में दे दिये, तो मैं क्या करता।’ हीरा पाँच रुपए में दे दे। हम नहीं देते इन दामों।’
‘वहाँ मार-पीट हो रही थी। मैं बीच में क्या बोलता।’
होरी ने अपनी पराजय अपने मन में ही डाल ली, जैसे कोई चोरी से आम तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़े और गिर पड़ने पर धूल झाड़ता हुआ उठ खड़ा हो कि कोई देख न ले। जीतकर आप अपनी धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं; जीत से सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है।
धनिया पति को फटकारने लगी। ऐसे सुअवसर उसे बहुत कम मिलते थे। होरी उससे चतुर था; पर आज बाजी धनिया के हाथ थी। हाथ मटकाकर बोली–क्यों न हो, भाई ने पन्द्रह रुपये कह दिये, तो तुम कैसे टोकते। अरे राम-राम! लाड़ले भाई का दिल छोटा हो जाता कि नहीं। फिर जब इतना बड़ा अनर्थ हो रहा था कि लाड़ली बहू के गले पर छुरी चल रही थी, तो भला तुम कैसे बोलते। उस बखत कोई तुम्हारा सरबस लूट लेता, तो भी तुम्हें सुध न होती।
होरी चुपचाप सुनता रहा। मिनका तक नहीं। झुँझलाहट हुई, क्रोध आया, खून खौला, आँख जली, दाँत पिसे; लेकिन बोला नहीं। चुपके-से कुदाल उठायी और ऊख गोड़ने चला। धनिया ने कुदाल छीनकर कहा–क्या अभी सबेरा है जो ऊख गोड़ने चले? सूरज देवता माथे पर आ गये। नहाने-धोने जाव। रोटी तैयार है।
होरी ने घुन्नाकर कहा–मुझे भूख नहीं है। धनिया ने जले पर नोन छिड़का–हाँ काहे को भूख लगेगी। भाई ने बड़े-बड़े लड्डू खिला दिये हैं न! भगवान् ऐसे सपूत भाई सबको दें।
|