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उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास)

गोदान’ (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :758
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8458
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।


तश्तरी में पान आ गये थे। राय साहब ने मेहमानों को पान और इलायची देते हुए कहा–बुद्धि अगर स्वार्थ से मुक्त हो, तो हमें उसकी प्रभुता मानने में कोई आपित्त नहीं। समाजवाद का यही आदर्श है। हम साधु-महात्माओं के सामने इसीलिए सिर झुकाते हैं कि उनमें त्याग का बल है। इसी तरह हम बुद्धि के हाथ में अधिकार भी देना चाहते हैं, सम्मान भी, नेतृत्व भी; लेकिन सम्पत्ति किसी तरह नहीं। बुद्धि का अधिकार और सम्मान व्यक्ति के साथ चला जाता है, लेकिन उसकी सम्पत्ति विष बोने के लिए, उसके बाद और भी प्रबल हो जाती है। बुद्धि के बगैर किसी समाज का संचालन नहीं हो सकता। हम केवल इस बिच्छू का डंक तोड़ देना चाहते हैं।

दूसरी मोटर आ पहुँची और मिस्टर खन्ना उतरे, जो एक बैंक के मैनेजर और शक्करमिल के मैनेजिंग डाइरेक्टर हैं। दो देवियाँ भी उनके साथ थीं। राय साहब ने दोनों देवियों को उतारा। वह जो खद्दर की साड़ी पहने बहुत गम्भीर और विचारशील-सी हैं, मिस्टर खन्ना की पत्नी, कामिनी खन्ना हैं। दूसरी महिला जो ऊँची एड़ी का जूता पहने हुए हैं और जिनकी मुख-छवि पर हँसी फूटी पड़ती है, मिस मालती हैं। आप इंगलैंड से डाक्टरी पढ़ आयी हैं और अब प्रैक्टिस करती हैं। ताल्लुकेदारों के महलों में उनका बहुत प्रवेश है। आप नवयुग की साक्षात् प्रतिमा हैं। गात कोमल, पर चपलता कूट-कूट कर भरी हुई। झिझक या संकोच का कहीं नाम नहीं, मेक-अप में प्रवीण, बला की हाजिर-जवाब, पुरुष-मनोविज्ञान की अच्छी जानकार, आमोद-प्रमोद को जीवन का तत्व समझनेवाली, लुभाने और रिझाने की कला में निपुण। जहाँ आत्मा का स्थान है, वहाँ प्रदर्शन; जहाँ हृदय का स्थान है, वहाँ हाव-भाव; मनोद्गारों पर कठोर निग्रह, जिसमें इच्छा या अभिलाषा का लोप-सा हो गया। आपने मिस्टर मेहता से हाथ मिलाते हुए कहा–सच कहती हूँ, आप सूरत से ही फिलासफर मालूम होते हैं। इस नयी रचना में तो आपने आत्मवादियों को उधेड़कर रख दिया। पढ़ते-पढ़ते कई बार मेरे जी में ऐसा आया कि आपसे लड़ जाऊँ। फिलासफरों में सहृदयता क्यों गायब हो जाती है?  

मेहता झेंप गये। बिना-ब्याहे थे और नवयुग की रमिणयों से पनाह माँगते थे। पुरुषों की मंडली में खूब चहकते थे; मगर ज्योंही कोई महिला आयी और आपकी जबान बन्द हुई। जैसे बुद्धि पर ताला लग जाता था। स्त्रियों से शिष्ट व्यवहार तक करने की सुधि न रहती थी।

मिस्टर खन्ना ने पूछा–फिलासफरों की सूरत में क्या खास बात होती है देवीजी?

मालती ने मेहता की ओर दया-भाव से देखकर कहा–मिस्टर मेहता बुरा न मानें, तो बतला दूँ।

खन्ना मिस मालती के उपासकों में थे। जहाँ मिस मालती जाय, वहाँ खन्ना का पहुँचना लाजिम था। उनके आस-पास भौंरे की तरह मँडराते रहते थे। हर समय उनकी यही इच्छा रहती थी कि मालती से अधिक-से-अधिक वही बोलें, उनकी निगाह अधिक-से-अधिक उन्हीं पर रहे।

खन्ना ने आँख मारकर कहा–फिलासफर किसी की बात का बुरा नहीं मानते। उनकी यही सिफत है।

‘तो सुनिए, फिलासफर हमेशा मुर्दा-दिल होते हैं, जब देखिए, अपने विचारों में मगन बैठे हैं। आपकी तरफ ताकेंगे, मगर आपको देखेंगे नहीं; आप उनसे बातें किये जायँ, कुछ सुनेंगे नहीं। जैसे शून्य में उड़ रहे हों।’

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