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गोदान’ (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :758
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8458
आईएसबीएन :978-1-61301-157

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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।


मेहता शराब पीकर मस्त हो जाते थे। उस मस्ती में उनका दर्शन उड़ जाता था और विनोद सजीव हो जाता था। लपककर मिसेज खन्ना के पास गये और पाँच मिनट ही में मुँह लटकाये लौट आये।

मिर्ज़ा ने पूछा–अरे क्या खाली हाथ?

राय साहब हँसे–काजी के घर चूहे भी सयाने।

मिर्ज़ा ने कहा–हो बड़े खुशनसीब खन्ना, खुदा की कसम!

मेहता ने कहकहा मारा और जेब से सौ-सौ रुपए के पाँच नोट निकाले।

मिर्ज़ा ने लपककर उन्हें गले लगा लिया।

चारों तरफ से आवाजें आने लगीं–कमाल है, मानता हूँ उस्ताद, क्यों न हो, फिलासफर ही जो ठहरे!

मिर्ज़ा ने नोटों को आँखों से लगाकर कहा–भई मेहता, आज से मैं तुम्हारा शागिर्द हो गया। बताओ, क्या जादू मारा?

मेहता अकड़कर, लाल-लाल आँखों से ताकते हुए बोले–अजी कुछ नहीं। ऐसा कौन-सा बड़ा काम था। जाकर पूछा, अन्दर आऊँ? बोलीं–आप हैं मेहताजी, आइए! मैंने अन्दर जाकर कहा, वहाँ लोग ब्रिज खेल रहे हैं। अँगूठी एक हजार से कम की नहीं है। आपने तो देखा है। बस वही। आपके पास रुपए हों, तो पाँच सौ रुपए देकर एक हजार की चीज ले लीजिए। ऐसा मौका फिर न मिलेगा। मिस मालती ने इस वक्त रुपए न दिये, तो बेदाग निकल जायँगी। पीछे से कौन देता है, शायद इसीलिए उन्होंने अँगूठी निकाली है कि पाँच सौ रुपए किसके पास धरे होंगे। मुसकराईं और चट अपने बटुवे से पाँच नोट निकालकर दे दिये, और बोलीं–मैं बिना कुछ लिये घर से नहीं निकलती। न जाने कब क्या जरूरत पड़े।

खन्ना खिसियाकर बोले–जब हमारे प्रोफेसरों का यह हाल है, तो यूनिवसिर्टी का ईश्वर ही मालिक है।

खुर्शेद ने घाव पर नमक छिड़का–अरे, तो ऐसी कौन-सी बड़ी रकम है जिसके लिए आपका दिल बैठा जाता है। खुदा झूठ न बुलवाये तो यह आपकी एक दिन की आमदनी है। समझ लीजिएगा, एक दिन बीमार पड़ गये और जायगा भी तो मिस मालती ही के हाथ में। आपके दर्द-ए-जिगर की दवा मिस मालती ही के पास तो है।

मालती ने ठोकर मारी–देखिए मिर्ज़ाजी, तबेले में लतिआहुज अच्छी नहीं।

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