उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
खन्ना ने अफगान के तेवर देखे तो चुपके से उठे कि निकल जायँ। सरदार ने ज़ोर से डाँटा–काँ जाता तुम? कोई कई नयीं जा सकता, नयीं अम सबको कतल कर देगा। अबी फैर कर देगा। अमारा तुम कुछ नयीं कर सकता। अम तुम्हारा पुलिस से नयीं डरता। पुलिस का आदमी अमारा सकल देखकर भागता है। अमारा अपना कांसल है, अम उसको खत लिखकर लाट साहब के पास जा सकता है। अम याँ से किसी को नयीं जाने देगा। तुम अमारा एक हजार रुपया लूट लिया। अमारा रुपया नयीं देगा, तो अम किसी को जिन्दा नहीं छोड़ेगा। तुम सब आदमी दूसरों के माल को लूट करता है और याँ माशूक के साथ शराब पीता है। मिस मालती उसकी आँख बचाकर कमरे से निकलने लगीं कि वह बाज की तरह टूटकर उनके सामने आ खड़ा हुआ और बोला–तुम इन बदमाशों से अमारा माल दिलवाये, नयीं अम तुमको उठा ले जायगा और अपनी कोठी में जशन मनायेगा। तुम्हारा हुस्न पर अम आशिक हो गया। या तो अमको एक हजार अबी-अबी दे दे या तुमको अमारे साथ चलना पड़ेगा। तुमको अम नहीं छोड़ेगा। अम तुम्हारा आशिक हो गया है। अमारा दिल और जिगर फटा जाता है। अमारा इस जगह पचीस जवान है। इस जिला में हमारा पाँच सौ जवान काम करता है। अम अपने कबीले का खान है। अमारे कबीला में दस हज़ार सिपाही हैं। अम काबुल के अमीर से लड़ सकता है। अँग्रेज सरकार अमको बीस हजार सालाना खिराज देता है। अगर तुम हमारा रुपया नयीं देगा, तो अम गाँव लूट लेगा और तुम्हारा माशूक को उठा ले जायगा। खून करने में अमको लुतफ आता है। अम खून का दरिया बहा देगा!
मजलिस पर आतंक छा गया। मिस मालती अपना चहकना भूल गयीं। खन्ना की पिंडलियाँ काँप रही थीं। बेचारे चोट-चपेट के भय से एक मंजिले बँगले में रहते थे। जीने पर चढ़ना उनके लिए सूली पर चढ़ने से कम न था। गरमी में भी डर के मारे कमरे में सोते थे। राय साहब को ठकुराई का अभिमान था। वह अपने ही गाँव में एक पठान से डर जाना हास्यास्पद समझते थे, लेकिन उसकी बन्दूक को क्या करते। उन्होंने जरा भी चीं-चपड़ किया और इसने बन्दूक चलायी। हूश तो होते ही हैं ये सब, और निशाना भी इन सबों का कितना अचूक होता है; अगर उसके हाथ में बन्दूक न होती, तो राय साहब उससे सींग मिलाने को भी तैयार हो जाते। मुश्किल यही थी कि दुष्ट किसी को बाहर नहीं जाने देता। नहीं, दम-के-दम में सारा गाँव जमा हो जाता और इसके पूरे जत्थे को पीट-पाटकर रख देता।
आखिर उन्होंने दिल मजबूत किया और जान पर खेलकर बोले–हमने आपसे कह दिया कि हम चोर-डाकू नहीं हैं। मैं यहाँ की कौंसिल का मेम्बर हूँ और यह देवीजी लखनऊ की सुप्रसिद्ध डाक्टर हैं। यहाँ सभी शरीफ और इज्जतदार लोग जमा हैं। हमें बिलकुल खबर नहीं, आपके आदमियों को किसने लूटा? आप जाकर थाने में रपट कीजिए।
खान ने जमीन पर पैर पटके, पैंतरे बदले और बन्दूक को कन्धे से उतारकर हाथ में लेता हुआ दहाड़ा–मत बक-बक करो। काउंसिल का मेम्बर को अम इस तरह पैरों से कुचल देता है। (जमीन पर पाँव रगड़ता है) अमारा हाथ मजबूत है, अमारा दिल मजबूत है, अम खुदा ताला के सिवा और किसी से नयीं डरता। तुम अमारा रुपया नहीं देगा, तो अम (राय साहब की तरफ इशारा कर) अभी तुमको कतल कर देगा।
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