उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
उसने झपटकर खान की कमर पकड़ी और ऐसा अड़ंगा मारा कि खान चारों खाने चित्त जमीन पर आ रहे और लगे पश्तों में गालियाँ देने होरी उनकी छाती पर चढ़ बैठा और जोर से दाढ़ी पकड़कर खींची। दाढ़ी उसके हाथ में आ गयी। खान ने तुरन्त अपनी कुलाह उतार फेंकी और जोर मारकर खड़ा हो गया। अरे! यह तो मिस्टर मेहता हैं। वही! लोगों ने चारों तरफ से मेहता को घेर लिया। कोई उनके गले लगता, कोई उनकी पीठ पर थपकियाँ देता था और मिस्टर मेहता के चेहरे पर न हँसी थी, न गर्व; चुपचाप खड़े थे, मानो कुछ हुआ ही नहीं।
मालती ने नकली रोष से कहा–आपने यह बहुरूपपन कहाँ सीखा? मेरा दिल अभी तक धड़-धड़ कर रहा है।
मेहता ने मुस्कराते हुए कहा–जरा इन भले आदमियों की जवाँमर्दी की परीक्षा ले रहा था। जो गुस्ताखी हुई हो, उसे क्षमा कीजिएगा।
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यह अभिनय जब समाप्त हुआ, तो उधर रंगशाला में धनुष-यज्ञ समाप्त हो चुका था और सामाजिक प्रहसन की तैयारी हो रही थी; मगर इन सज्जनों को उससे विशेष दिलचस्पी न थी। केवल मिस्टर मेहता देखने गये और आदि से अन्त तक जमे रहे। उन्हें बड़ा मजा आ रहा था। बीच-बीच में तालियाँ बजाते थे और ‘फिर कहो, फिर कहो’ का आग्रह करके अभिनेताओं को प्रोत्साहन भी देते जाते थे। राय साहब ने इस प्रहसन में एक मुकदमेबाज़ देहाती ज़मींदार का खाका उड़ाया था। कहने को तो प्रहसन था; मगर करुणा से भरा हुआ। नायक का बात-बात में कानून की धाराओं का उल्लेख करना, पत्नी पर केवल इसलिए मुकदमा दायर कर देना कि उसने भोजन तैयार करने में जरा-सी देर कर दी, फिर वकीलों के नखरे और देहाती गवाहों की चालाकियाँ और झाँसे, पहले गवाही के लिए चट-पट तैयार हो जाना; मगर इजलास पर तलबी के समय खूब मनावन कराना और नाना प्रकार की फरमाइशें करके उल्लू बनाना, ये सभी दृश्य देखकर लोग हँसी के मारे लोटे जाते थे। सबसे सुन्दर वह दृश्य था, जिसमें वकील गवाहों को उनके बयान रटा रहा था। गवाहों का बार-बार भूलें करना, वकील का बिगड़ना, फिर नायक का देहाती बोली में गवाहों को समझाना और अन्त में इजलास पर गवाहों का बदल जाना, ऐसा सजीव और सत्य था कि मिस्टर मेहता उछल पड़े और तमाशा समाप्त होने पर नायक को गले लगा लिया और सभी नटों को एक-एक मेडल देने की घोषणा की। राय साहब के प्रति उनके मन में श्रद्धा के भाव जाग उठे। राय साहब स्टेज के पीछे ड्रामे का संचालन कर रहे थे। मेहता दौड़कर उनके गले लिपट गये और मुग्ध होकर बोले–आपकी दृष्टि इतनी पैनी है, इसका मुझे अनुमान न था।
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