उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
‘यह राय साहब का इलाका है।’
‘तो तुझे उन्हीं राय साहब के हाथों हंटरों से पिटवाऊँगी।’
‘मुझे पिटवाने से तुम्हें सुख मिले तो पिटवा लेना बाईजी! कोई रानी-महारानी थोड़ी हूँ कि लस्कर भेजनी पड़ेगी।’
मेहता ने दो-चार कौर निगले थे कि मालती की यह बातें सुनीं। कौर कंठ में अटक गया। जल्दी से हाथ धोया और बोले–वह नहीं जायगी। मैं जा रहा हूँ। मालती भी खड़ी हो गयी–उसे जाना पड़ेगा।
मेहता ने अँग्रेजी में कहा–उसका अपमान करके तुम अपना सम्मान बढ़ा नहीं रही हो मालती!
मालती ने फटकार बतायी–ऐसी ही लौंडियाँ मर्दों को पसन्द आती हैं, जिनमें और कोई गुण हो या न हो, उनकी टहल दौड़-दौड़कर प्रसन्न मन से करें और अपना भाग्य सराहें कि इस पुरुष ने मुझसे यह काम करने को तो कहा। वह देवियाँ हैं, शक्तियाँ हैं, विभूतियाँ हैं। मैं समझती थी, वह पुरुषत्व तुममें कम-से-कम नहीं है; लेकिन अन्दर से, संस्कारों से, तुम भी वही बर्बर हो।
मेहता मनोविज्ञान के पण्डित थे। मालती के मनोरहस्यों को समझ रहे थे। ईर्ष्या का ऐसा अनोखा उदाहरण उन्हें कभी न मिला था। उस रमणी में, जो इतनी मृदु-स्वभाव, इतनी उदार, इतनी प्रसन्नमुख थी, ईर्ष्या की ऐसी प्रचंड ज्वाला! बोले–कुछ भी कहो, मैं उसे न जाने दूँगा। उसकी सेवाओं और कृपाओं का यह पुरस्कार देकर मैं अपनी नजरों में नीच नहीं बन सकता।
मेहता के स्वर में कुछ ऐसा तेज था कि मालती धीरे से उठी और चलने को तैयार हो गयी। उसने जलकर कहा–अच्छा, तो मैं ही जाती हूँ, तुम उसके चरणों की पूजा करके पीछे आना।
मालती दो-तीन कदम चली गयी, तो मेहता ने युवती से कहा–अब मुझे आज्ञा दो बहन; तुम्हारा यह नेह, तुम्हारी निःस्वार्थ सेवा हमेशा याद रहेगी।
युवती ने दोनों हाथों से, सजलनेत्र होकर उन्हें प्रणाम किया और झोपड़ी के अन्दर चली गयी।
दूसरी टोली राय साहब और खन्ना की थी। राय साहब तो अपने उसी रेशमी कुरते और रेशमी चादर में थे। मगर खन्ना ने शिकारी सूट डाटा था, जो शायद आज ही के लिए बनवाया गया था; क्योंकि खन्ना को असामियों के शिकार से इतनी फुरसत कहाँ थी कि जानवरों का शिकार करते। खन्ना ठिंगने, इकहरे, रूपवान आदमी थे; गेहुँआ रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, मुँह पर चेचक के दाग; बात-चीत में बड़े कुशल।
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