कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
221 पाठक हैं |
उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
यह एक बड़ा गाँव था। पक्के मकान बहुत थे। मगर उनमें प्रेतात्माएँ आबाद थीं। कई साल पहले प्लेग ने आबादी के बड़े हिस्से को इस क्षणभंगुर संसार से उठाकर स्वर्ग में पहुँचा दिया था। इस वक़्त प्लेग के बचे-खुचे लोग गाँव के नौजवान और शौक़ीन ज़मींदार साहब और हलक़े के कारगुज़ार और रोबीले थानेदार साहब थे। उनकी मिली-जुली कोशिशों से गाँव में सतयुग का राज था। धन दौलत को लोग जान का अजाब समझते थे। उसे गुनाह की तरह छिपाते थे। घर-घर में रुपये रहते हुए लोग कर्ज़ ले-लेकर खाते और फटेहालों रहते थे। इसी में निबाह था। काजल की कोठरी थी, सफेद कपड़े पहनना उन पर धब्बा लगाना था। हुकूमत और ज़बर्दस्ती का बाज़ार गर्म था। अहीरों को यहाँ आँजन के लिए भी दूध न था। थाने में दूध की नदी बहती थी। मवेशीखाने के मुहर्रिर दूध की कुल्लियाँ करते थे। इसी अँधेरनगरी को मगनदास ने अपना घर बनाया। ठाकुर साहब ने असाधारण उदारता से काम लेकर उसे रहने के लिए एक मकान भी दे दिया। जो केवल बहुत व्यापक अर्थों में मकान कहा जा सकता था। इसी झोंपड़ी में वह एक हफ़्ते से ज़िन्दगी के दिन काट रहा है। उसका चेहरा ज़र्द है। और कपड़े मैले हो रहे हैं। मगर ऐसा मालूम होता है कि उसे अब इन बातों की अनुभूति ही नहीं रही। ज़िन्दा है मगर ज़िन्दगी रुख़सत हो गई है। हिम्मत और हौसला मुश्किल को आसान कर सकते हैं, आँधी और तूफ़ान से बचा सकते हैं मगर चेहरे को खिला सकना उनके सामर्थ्य से बाहर है। टूटी हुई नाव पर बैठकर मल्हार गाना हिम्मत का काम नहीं हिमाकत का काम है।
एक रोज़ जब शाम के वक़्त वह अँधरे में खाट पर पड़ा हुआ था। एक औरत उसके दरवाज़े पर आकर भीख मांगने लगी। मगनदास को आवाज़ परिचित जान पड़ी। बहार आकर देखा तो वही चम्पा मालिन थी। कपड़े तार-तार, मुसीबत की रोती हुई तसवीर। बोला—मालिन? तुम्हारी यह क्या हालत है। मुझे पहचानती हो?
|