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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


किशवरकुशा दोयम ने बाग़ियों को कुचलने के लिए अब की एक ज़बर्दस्त फ़ौज रवाना की और मीरशुजा को उसका सिपहसालार बनाया जो लड़ाई के मैदान में अपने वक़्त का इसफ़ंदियार था। सरदार नमकख़ोर ने यह ख़बर पायी तो हाथ-पाँव फूल गये। मीरशुजा के मुकाबले में आना अपनी हार को बुलाना था। आख़िरकार यह राय तय पाई कि इस जगह से आबादी का निशान मिटाकर हम लोग क़िलेबन्द हो जायँ। उस वक़्त नौजवान मसऊद ने उठकर बड़े पुरजोष लहजे में कहा—

‘नहीं, हम क़िलेबन्द न होंगे, हम मैदान में रहेंगे और हाथोंहाथ दुश्मन का मुक़ाबला करेंगे। हमारे सीनों की हड्डियाँ ऐसी कमज़ोर नहीं हैं कि तीर-तुपुक के निशाने बर्दाश्त न कर सकें। किलेबन्द होना इस बात का एलान है कि हम आमने-सामने नहीं लड़ सकते। क्या आप लोग, जो शाह बामुराद के नामलेवा हैं, भूल गये कि इसी मुल्क़ पर उसने अपने ख़ानदान के तीन लाख सपूतों को फूल की तरह चढ़ा दिया? नहीं, हम हरगिज़ किलेबन्द न होंगे। हम दुश्मन के मुक़ाबले में ताल ठोककर आएँगे और अगर खुदा इंसाफ़ करनेवाला है तो ज़रूर हमारी तलवारें दुश्मनों से गले मिलेंगी और हमारी बर्छियाँ उनके पहलू में जगह पाएँगी।’

सैकड़ों निगाहें मसऊद के पुरज़ोर चेहरे की तरफ़ उठ गयीं। सरदारों की त्योरियों पर बल पड़ गये और सिपाहियों के सीने जोश से धड़कने लगे। सरदार नमकख़ोर ने उसे गले से लगा लिया और बोले—मसऊद, तेरी हिम्मत और हौसले की दाद देता हूँ। तू हमारी फ़ौज की शान है। तेरी सलाह मर्दाना सलाह है। बेशक हम क़िलेबन्द न होंगे। हम दुश्मन के मुक़ाबले में ताल ठोंककर आएँगे और अपने प्यारे जन्नतनिशाँ के लिए अपना खून पानी की तरह बहायेंगे। तू हमारे लिए आगे-आगे चलने वाली मशाल है और हम सब आज इसी रोशनी में क़दम आगे बढ़ायेंगे।

मसऊद ने चुने हुए सिपाहियों का एक दस्ता तैयार किया और कुछ इस दम-ख़म इस जोशोख़रोश से मीरशुजा पर टूटा कि उसका सारी फ़ौज में खलबली पड़ गयी। सरदार नमकख़ोर ने जब देखा कि शाही फ़ौज के क़दम डगमगा रहे हैं, तो अपनी पूरी ताक़त से बादल और बिजली की तरह लपका और तेग़ों से तेग़े और बर्छियों से बर्छियाँ खड़कने लगीं। तीन घंटे तक बला का शोर मचा रहा, यहाँ कि शाही फ़ौज के क़दम उखड़ गये और वह सिपाही जिसका तलवार मीरशुजा के गले मिली मसऊद था।

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