कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
221 पाठक हैं |
उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
एक दिन प्रकाश का पत्र आया। करुणा ने उसे उठा कर फेंक दिया। फिर थोड़ी देर के बाद उसे उठा कर फाड़ डाला, और चिड़ियों को दाना चुगाने लगी; मगर जब निशा-योगिनी ने अपनी धूनी जलायी, और वेदनाएँ उससे वरदान माँगने के लिए विकल हो-होकर चलीं तो करुणा की मनोवेदना भी सजग हो उठी–प्रकाश का पत्र पढ़ने के लिए उसका मन व्याकुल हो उठा। उसने सोचा, प्रकाश मेरा कौन है? मेरा उससे क्या प्रयोजन? हाँ, प्रकाश मेरा कौन है? हाँ, प्रकाश मेरा कौन है? हृदय ने उत्तर दिया, प्रकाश तेरा सर्वस्व है, वह तेरे उस अमर प्रेम की निशानी है, जिससे तू सदैव के लिए वंचित हो गयी। वह तेरे प्राणों का प्राण है, तेरे जीवन-में दीपक का प्रकाश, तेरी वंचित कामनाओं का माधुर्य, तेरे अश्रुजल में विहार करनेवाला हंस। करुणा उस पत्र के टुकड़ों को जमा करने लगी, मानो उसके प्राण बिखर गये हों। एक-एक टुकड़ा उसे अपने खोये हुए प्रेम का एक-एक पदचिह्न-सा मालूम होता था। जब सारे पुरजे जमा हो गये, तो करुणा दीपक के सामने बैठकर उसे जोड़ने लगी, जैसे कोई वियोगी हृदय प्रेम के टूटे हुए तारों को जोड़ रहा हो। हाय री ममता! वह अभागिनी सारी रात उन पुरजों को जोड़ने में लगी रही। पत्र दोनों ओर लिखा था, इसलिए पुरजों को ठीक स्थान पर रखना और भी कठिन था। कोई शब्द, कोई वाक्य बीच में गायब हो जाता। उस एक टुकड़े को वह फिर खोजने लगती। सारी रात बीत गयी; पर पत्र अभी तक अपूर्ण था।
दिन चढ़ आया, मुहल्ले के लौंडे मक्खन और दूध की चाट में एकत्र हो गये, कुत्तों ओर बिल्लियों का आगमन हुआ, चिड़ियाँ आ-आकर आंगन में फुदकने लगीं, कोई किसी ओखली पर बैठी, कोई तुलसी के चौतरे पर, पर करुणा को सिर उठाने की फुरसत नहीं।
दोपहर हुआ, करुणा ने सिर न उठाया। न भूख थीं, न प्यास। फिर संध्या हो गयी। पर वह पत्र अभी तक अधूरा था। पत्र का आशय समझ में आ रहा था–प्रकाश का जहाज कहीं-से-कहीं जा रहा है। उसके हृदय में कुछ उठा हुआ है। क्या उठा हुआ है? पर करुणा न सोच सकी। प्यास से तड़पते हुए आदमी की प्यास क्या ओस से बुझ सकती है? करुणा पुत्र की लेखनी से निकले हुए एक-एक शब्द को पढ़ना और उसे हृदय पर अंकित कर लेना चाहती थी।
इस भाँति तीन दिन गुजर गये। सन्ध्या हो गयी थी। तीन दिन की जागी आँखें जरा झपक गयीं। करुणा ने देखा, एक लम्बा-चौड़ा कमरा है, उसमें मेजें और कुर्सियाँ लगी हुई हैं, बीच में एक ऊँचे मंच पर कोई आदमी बैठा हुआ है। करुणा ने ध्यान से देखा, प्रकाश था।
|