कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
लाहौर में मियाँ तानसेन के ख़ानदान के कई ऊँचे कलाकार हैं जो राग और रागनियों में बातें करते हैं। वह श्यामा का गाना पसन्द नहीं करते। वह कहते हैं कि श्यामा का गाना अक्सर ग़लत होता है। उसे राग और रागनियों का ज्ञान नहीं। मगर उनकी इस आलोचना का किसी पर कुछ असर नहीं होता। श्यामा गलत गाये या सही गाये वह जो कुछ गाती है उसे सुनकर लोग मस्त हो जाते हैं। उसका भेद यह है कि श्यामा हमेशा दिल से गाती है और जिन भावों को वह प्रकट करती है उन्हें खुद भी अनुभव करती है। वह कठपुतलियों की तरह तुली हुई अदाओं की नकल नहीं करती। अब उसके बग़ैर महफिलें सूनी रहती हैं। हर महफ़िल में उसका मौजूद होना लाजमी हो गया है। वह चाहे श्लोक ही गाये मगर उसके संगीत प्रेमियों का जी नहीं भरता। तलवार की बाढ़ की तरह वह महफ़िलों की जान है। उसने साधारणजनों के हृदय में यहाँ तक घर कर लिया है कि जब वह अपनी पालकी पर हवा खाने निकलती है तो उस पर चारों तरफ़ से फूलों की बौछार होने लगती है। महाराज रनजीतसिंह को काबुल से लौटे हुए तीन महीने गुजर गये, मगर अभी तक विजय की खुशी में कोई जलसा नहीं हुआ। वापसी के बाद कई दिन तक तो महाराज किसी कारण से उदास थे, उसके बाद उनके स्वभाव में यकायक एक बड़ा परिवर्तन आया, उन्हें काबुल की विजय की चर्चा से घृणा-सी हो गयी। जो कोई उन्हें इस जीत की बधाई देने जाता उसकी तरफ़ से मुँह फेर लेते थे। वह आत्मिक उल्लास जो मौंजा माहनगर तक उनके चेहरे से झलकता था, अब वहाँ न था। काबुल को जीतना उनकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी आरजू थी। वह मोर्चा जो एक हजार साल तक हिन्दू राजाओं की कल्पना से बाहर था, उनके हाथों सर हुआ। जिस मुल्क ने हिन्दोस्तान को एक हजार बरस तक अपने मातहत रक्खा वहाँ हिन्दू कौम का झण्डा रनजीतसिंह ने उड़ाया। ग़जनी और काबुल की पहाड़ियाँ इन्सानी ख़ून से लाल हो गयीं, मगर रनजीतसिंह खुश नहीं हैं। उनके स्वभाव की कायापलट का भेद किसी की समझ में नहीं आता। अगर कुछ समझती है तो वृन्दा समझती है।
तीन महीने तक महाराज की यही कैफ़ियत रही। इसके बाद उनका मिज़ाज अपने असली रंग पर आने लगा। दरबार की भलाई चाहनेवाले इस मौके के इन्तज़ार में थे। एक रोज उन्होंने महाराज से एक शानदार जलसा करने की प्रार्थना की। पहले तो वह बहुत क्रुद्ध हुए मगर आख़िरकार मिज़ाज समझने वालों की घातें अपना काम कर गयीं।
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